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हालात – शराब ने उजाड़ दिए हैं उत्तराखंड के गांव

Newsdesk Uttranews
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Gramodhyoh Vikas Sansthan raised the demand

उत्तराखंड के गांवों में शराब ने सब बर्बाद कर दिया है। रोजगार के लिए पलायन की वजह से पहले ही गांव खाली हो चुके हैं। जो लोग गांव में बचे हैं उनमें में से एक बड़े तबके को शराब ने अपने वश में ले लिया है।

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अभी सोमवार को नैनिहाल से मामा की लड़की की शादी से लौट कर दिल्ली लौट आया हूं.. गांव में शराब की माया देखकर हैरान हूं । लोग की शराब के लिए दीवानगी देखकर हैरान हूं।
मेरे मालाकोट (नैनिहाल) से शराब की दुकान करीब 9 किलोमीटर दूर है,लोग सिर्फ शराब लेने के लिए वहां जाते हैं।वो लोग जो कमा रहे हैं, उसका बड़ा हिस्सा शराब में गंवा रहे हैं।

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जो लोग खर्च नहीं कर सकते हैं वो बस इसी जुगाड़ में लगे रहते हैं कि पीने को मिल जाए।गांवों में आज भी शादियों में सामाजिक सहभागिता होती है और लोग एक दुसरे की जमकर मदद करते हैं,लेकिन शराब ने यहां भी अपनी पैठ बना ली है।काम से पहले शराब, काम के बीच में शराब और काम के बाद शराब,लगता है शराब सारी मुसीबतों को दूर करने की कोई दैवीय शक्ति है। इसके आते ही सारे काम हो जाते हैं।

कई लोग कहेंगे कि आप उत्तराखंड के गांवों को बदनाम कर रहे हैं लेकिन जो आंखों ने देखा वो लिख रहा हूं।मैं तो अल्मोड़़ा जिला मुख्यालय में रहता हूं और गांव जाना बहुत कम होता है। हर किसी आम पहाड़ी की तरह मैं भी अपने ईष्ट देवता को याद करने या फिर कोई खास शादी हो तभी गांव जा पाता हूं। मानता हूं कि दो दिन में रहकर गांव के बारे में ये धारणा बनाना गलत है लेकिन शराब ने कैसे पहाड़ बर्बाद कर दिए हैं इसकी एक झलक तो इस दौरान दिखती है।

उत्तराखंड देश के उन राज्यों में जहां शराब काफी महंगी है और उसके ऊपर से सरकारी संरक्षण से शराब कारोबारी जमकर जनता को लूटते हैं। अल्मोड़ा जिले के बारे में दावे से कह सकता हूं कि शायद ही कोई शराब की दुकान हो जहां ओवररेट में शराब ना मिलती हो. फ़िलहाल ये मुद्दा नहीं है। मैं किसी भी तरह की बंदी के सख्त खिलाफ हूं पर ऐसी हालत देखकर लगता है कि उत्तराखंड के गांवों को बचाना है तो इस और झांकना होगा और समस्या का कुछ उपाय करना होगा।

आबकारी विभाग उत्तराखण्ड में काफ़ी रसूख वाला विभाग माना जाता है और आमतौर पर सीएम इसे अपने पास रखते हैं।इस बार भी ये विभाग युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी के पास है।उनसे उम्मीद है कि वो ऐसी नीति बनाएंगे जिससे राजस्व तो मिले लेकिन लोग इसके पीछे पागल ना हों। जागरुकता और सख्त कानूनी कदम और सही रोड मैप ही सूबे को खासकर गांवों को इससे बचा सकता है।


लेखक हेमराज सिंह चौहान अल्मोड़ा के रहने वाले है और वर्तमान में दिल्ली में रह रहे है वह editorji में डिप्टी सब एडिटर के पद पर कार्य कर रहे है।