shishu-mandir

स्मृति शेष : क्या अटल जी से सीख लेगें आज के राजनेता

Newsdesk Uttranews
3 Min Read
Screenshot-5

रविन्द्र देवलियाल

new-modern
gyan-vigyan


बात 2002 की है। मैं उन दिनों पत्रकारिता का ककहरा सीख रहा था और सरोवरनगरी में कार्यालय संवाददाता के तौर पर राष्ट्रीय दैनिक हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी जी उन दिनों देश के प्रधानमंत्री थे और वे गुजरात के कच्छ-भुज में आयी भीषण त्रासदी व भूंकप के चलते बेहद दुखी थे। उन्होंने तब इसे राष्ट्रीय त्रासदी घोषित करते हुए होली नहीं मनाने का फैसला लिया था और वे नैनीताल के एकांतवास पर आ गये थे। वे तब यहां तीन दिन के प्रवास पर ऐतिहासिक राजभवन में रहे।

saraswati-bal-vidya-niketan

अल्मोड़ा की हेमा देवी ने जीता एलईडी टीवी

इसी दौरान राजभवन में एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया गया। देश व विदेश के पत्रकार इस संवाददाता सम्मेलन को कवर करने आये थे। मैं भी तब अटल जी से रू-ब-रू हुआ। अटल जी अपनी बेबाकी के लिये जाने जाते थे। वह दिन मेरे लिये ऐतिहासिक था। उन्हीं दिनों की बात है कि अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में उत्तराखंड के गठन के बाद भी भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड का पहला विधानसभा चुनाव हार गयी थी। कांग्रेस उत्तराखंड के इस ऐतिहासिक चुनाव को जीती थी और पं0 नारायण दत्त तिवारी राज्य के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने थे।

सीएम धामी ने किया Almora के शटलर lakshya sen को सम्मानित

मैंने अटल जी से पूछा कि उत्तराखंड राज्य बनाने के बाद भी आप अप्रत्याशित रूप से चुनाव हार गये। वह बतौर प्रधानमंत्री इसे केन्द्र सरकार की असफलता नहीं मानते? तो मैं जवाब सुनकर सन्न रह गया। अपनी बेबाकी के लिये जाने वाले अटल जी ने तब यह स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं किया था कि इसके लिये केन्द्र सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। यह उस दिन की पहली खबर थी। सभी प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया की हेडलाइन बनी थी। धन्य हो अटल जी! काश आज के राजनेताओं में भी ऐसी बेबाकीपन व सरलता होती। विनम्र श्रद्धांजलि।

Theme based home garden के माध्यम से दिखाएं अपनी रचनात्मकता

रविन्द्र देवलियाल नैनीताल में यूएएनआई के वरिष्ठ संवाददाता के पद पर कार्यरत हैं।