मां का नाम आते ही आंखें भीग जाती हैं। वो जो बिना बोले सब समझ जाती है। वही मां जिसके लिए हम कभी वक्त नहीं निकाल पाते। मदर्स डे उसी ममता को सलाम करने का दिन है। हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में इस दिन को खास तरीके से मनाया जाता है। लेकिन ये चलन आखिर शुरू कहां से हुआ।
ये बात आज से करीब एक सदी पुरानी है जब अमेरिका की एना जार्विस नाम की महिला ने अपनी मां के गुजरने के बाद एक खास दिन की मांग उठाई। वो चाहती थीं कि हर इंसान को कम से कम साल में एक दिन तो अपनी मां के नाम करना चाहिए। उनकी मां एक समाजसेवी थीं और उनके काम से एना को बहुत प्रेरणा मिलती थी।
कई सालों तक उन्होंने इस मुहिम को आगे बढ़ाया। आखिरकार 1914 में अमेरिकी सरकार ने इसे मान्यता दी और मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे घोषित किया। फिर ये परंपरा दूसरे देशों में भी फैल गई।
भारत में भी अब इस दिन को बड़े प्यार और सम्मान से मनाया जाता है। बच्चे अपनी मां को तोहफे देते हैं, उनके साथ वक्त बिताते हैं। हालांकि हमारे देश में तो मां को भगवान से भी ऊंचा दर्जा मिला है लेकिन इस भागती जिंदगी में एक दिन अगर हम मां को दे सकें तो क्या बुरा है।
मदर्स डे सिर्फ एक तारीख नहीं है। ये मां के उस त्याग का प्रतीक है जिसे उसने बिना कुछ कहे हमारी खुशी में बदल दिया। वो मुस्कान जो हमेशा हमारे लिए जीती रही। मदर्स डे हमें ये याद दिलाने आता है कि मां के बिना सब अधूरा है।
