जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन इलाके में मंगलवार को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस हमले में जहां 26 लोगों की जान गई, वहीं दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन इसी हमले से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एक इत्तेफाक, एक मामूली सी देरी और एक ढाबे वाले की ज़िद के चलते मौत के मुंह से लौट आए।
केरल के कोच्चि से आया एक 11 सदस्यीय परिवार उस दिन उसी रास्ते पर था, जहां आतंकी हमला हुआ। परिवार की सदस्य लावन्या ने उस डरावनी दास्तान को साझा किया, जो अब भी उनकी रूह कंपा देती है। उन्होंने बताया कि उनका परिवार पहलगाम की ओर जा रहा था और सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर था, जब उन्होंने रास्ते में एक ढाबे पर रुककर लंच करने का फैसला किया।
ढाबे पर ऑर्डर किए गए मटन रोगन जोश में नमक कुछ ज़्यादा था। जब उन्होंने स्टाफ से इसकी शिकायत की, तो ढाबे के कर्मचारियों ने बिना बहस के माफी मांगी और उसी व्यंजन को दोबारा बनाने की ज़िद पकड़ ली। लावन्या के अनुसार, उन्होंने ढाबे वालों से कहा कि देर हो रही है, लेकिन उन्होंने नया खाना परोसने पर ही ज़ोर दिया।
उसी दौरान, उन्होंने देखा कि 10-20 घोड़े नीचे की तरफ भागते हुए आ रहे थे। जानवरों की घबराहट ने उन्हें चौकन्ना कर दिया। जब पास के कुछ वाहनों ने हाथ के इशारे से उन्हें ऊपर न जाने की चेतावनी दी, तब उन्हें अहसास हुआ कि कुछ गंभीर हो चुका है।
धीरे-धीरे जब पूरे इलाके में हलचल बढ़ी, तब उन्होंने नीचे लौटने का फैसला किया। कुछ ही देर बाद उन्हें अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के कॉल्स आने लगे। जब उन्होंने न्यूज चैनलों पर देखा कि उसी रास्ते पर कुछ देर पहले आतंकी हमला हुआ था, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। लावन्या का कहना था— “अगर उस दिन ढाबे वाला जिद न करता, तो शायद हम अब ज़िंदा न होते।”
परिवार अभी श्रीनगर में है और 25 अप्रैल को केरल वापस लौटने की तैयारी में है। लेकिन उनके लिए यह यात्रा सिर्फ एक वेकेशन नहीं रही, बल्कि एक ऐसी याद बन गई है जो ज़िंदगी भर उनके साथ रहेगी— उस ढाबे वाले की जिद की तरह, जिसने अनजाने में कई ज़िंदगियां बचा लीं।