हरिद्वार में जमीन घोटाले पर सरकार की बड़ी सर्जरी: डीएम से लेकर आईएएस और पीसीएस तक सस्पेंड, जांच में सामने आई चौंकाने वाली हकीकत

Advertisements Advertisements हरिद्वार में जमीन घोटाले का मामला अब तूल पकड़ चुका है। धामी सरकार ने इस मामले में बड़ी कार्रवाई की है और एक…

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हरिद्वार में जमीन घोटाले का मामला अब तूल पकड़ चुका है। धामी सरकार ने इस मामले में बड़ी कार्रवाई की है और एक साथ दो आईएएस और एक पीसीएस अफसर को निलंबित कर दिया गया है। हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह को उनके पद से हटा दिया गया है। उनके साथ नगर आयुक्त रह चुके आईएएस वरुण चौधरी और भगवानपुर के एसडीएम रहे पीसीएस अजयवीर पर भी निलंबन की गाज गिरी है।

जांच में सामने आया कि जमीन की खरीद में तय नियमों की अनदेखी हुई थी। आरोप है कि अफसरों ने न तो प्रक्रिया का पालन किया और न ही नगर निगम के हितों का ध्यान रखा। नगर निगम के अधिनियम को भी ताक पर रख दिया गया। जिस वक्त यह जमीन खरीदी गई उस वक्त कर्मेंद्र सिंह न केवल जिलाधिकारी थे बल्कि नगर निगम के प्रशासक भी थे।

शुरुआती जांच की जिम्मेदारी आईएएस रणवीर सिंह चौहान को दी गई थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया कि अफसरों ने लापरवाही बरती और सरकारी नियमों की अवहेलना की। इसके बाद शासन ने फौरन निलंबन का फैसला लिया। राज्यपाल की मंजूरी के बाद कर्मेंद्र सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

आईएएस वरुण चौधरी का भी नाम इस पूरे प्रकरण में सामने आया है। जांच में पाया गया कि उन्होंने नगर आयुक्त रहते हुए नियमों को नजरअंदाज किया। वहीं अजयवीर की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं जो उस वक्त भगवानपुर के एसडीएम थे। इन तीनों को अब सस्पेंड कर दिया गया है।

तीन जून को सरकार ने सात अफसरों को एक साथ निलंबित किया है। जिनमें जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह के अलावा नगर आयुक्त रहे वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर शामिल हैं। इनके अलावा नगर निगम की वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट भी सस्पेंड हुई हैं। तहसील के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, रजिस्ट्रार कानूनगो राजेश कुमार और वैयक्तिक सहायक विक्की भी निलंबन की सूची में हैं।

अब तक कुल बारह अफसरों पर कार्रवाई हो चुकी है। जिनमें से दस को सस्पेंड किया गया है। एक की सेवा समाप्त कर दी गई है और एक का सेवा विस्तार खत्म किया गया है। एक मई को शासन ने पहले ही नगर निगम की रिपोर्ट के आधार पर पांच अफसरों को निलंबित कर दिया था। इनमें अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल, कर और राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट, सहायक अभियंता आनंद सिंह मिश्रवान और अधिशासी अधिकारी रविंद्र कुमार दयाल के नाम शामिल हैं। वेदपाल जो संपत्ति लिपिक थे उनका सेवा विस्तार भी खत्म कर दिया गया है।

हरिद्वार जमीन घोटाला साल 2024 में सामने आया। उस वक्त नगर निगम चुनाव का दौर था और पूरा तंत्र नगर आयुक्त के हाथ में था। हरिद्वार नगर निगम ने आचार संहिता के दौरान 33 बीघा जमीन खरीदी थी। ये जमीन उस इलाके में थी जहां पहले से नगर निगम कूड़ा डंप कर रहा था।

आरोप है कि जिस जमीन की कीमत कुछ लाख रुपये प्रति बीघा थी उसे कृषि भूमि से बदलकर सरकारी बजट से पचपन करोड़ रुपये से भी ज्यादा में खरीद लिया गया। जब यह मामला धीरे धीरे सामने आया तो नगर निगम की मेयर किरण जैसल ने भी इस पर सवाल खड़े कर दिए। बात बढ़ती गई और मुख्यमंत्री तक पहुंच गई।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश दिए। सचिव रणवीर सिंह चौहान को इसकी जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर उन सभी बैंक खातों को फ्रीज करने के निर्देश दिए जिनमें जमीन खरीद का लेनदेन हुआ था।

जांच में गंभीर अनियमितता सामने आई तो पहले पांच अफसरों पर कार्रवाई हुई। फिर नगर निगम की वरिष्ठ वित्त अधिकारी से जवाब मांगा गया। आखिरकार रिपोर्ट शासन को सौंपी गई और उसी के आधार पर ये बड़ी कार्रवाई की गई।

निलंबित जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह को अब कार्मिक और सतर्कता विभाग से संबद्ध कर दिया गया है। यह मामला फिलहाल प्रदेश की नौकरशाही में हड़कंप मचा रहा है और कई अफसरों पर कार्रवाई की आंच अब भी बनी हुई है।