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Facebook का अर्थशास्त्र भाग 8

उत्तरा न्यूज डेस्क
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दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है पेश है आठ्वा भाग

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जोए की ना का मतलब अरबों की भूल

वेब 2.0 सम्मेलन 2010 में जकरबर्ग ने फेसबुक में मौजूद मैसेजिंग की सुविधा को बयां करते हुए कहा, “मैसेजिंग ई-मेल का स्थानापन्न तो नहीं है, लेकिन ई-मेल दैनंदिन की बातचीत के लिए अब खत्म हो जाएगा। दुनिया कहीं ज्यादा तेज हो गई है। एसएमएस या मैसेज में ई-मेल की तरह कोई विषय नहीं लिखना पड़ता। इनमें हे मॉम या हे डैड लिखने की अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती और आखिर में रिगार्ड्स भी लिखने की जरूरत महसूस नहीं होती। इसके अलावा पैराग्राफ बदलने के झंझट से भी मुक्ति मिल जाती है। यही छोटी-छोटी आजादी और सुविधा है जो यूजर्स की पसंद तय करती हैं।”

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फेसबुक की शुरुआत से लेकर अब तक मार्क ने लगातार आर्थिक उन्नति को ही देखा है लेकिन इसके बावजूद वे ऐसी छोटी-छोटी चीजों को लेकर खुशियां मनाते हैं जो एक अरबपति के लिए कोई मायने नहीं रखतीं। हॉर्वर्ड से जब मार्क ने कैलिफॉर्निया आकर रहने लगे तो उनका वॉशिंगटन जाना-आना पहले के मुकाबले कम होता।

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ऐसे ही एक मौके पर जकरबर्ग की मुलाकात अपने पुराने रुम-मेट जोए ग्रीन से हुई। उन्होंने जोए को मारे खुशी के दोहरे होते बताया कि उन्होंने अपने पैसे से एक घर खरीद लिया है। जोए की अरसे बाद मार्क से मुलाकात हुई थी। मार्क जब फेसबुक की शुरुआत करने को लेकर कंपनी बनाने की सोच रहे थे तो उन्होंने जोए से भी संपर्क साधकर अपने साथ आने का अनुरोध किया था।

उस वक्त जोए ने अपने पिताजी के दबाव में मार्क को ना कहा था। हॉर्वर्ड में फेसमैस का सबसे ज्यादा मजा लेने वाले लोगों में से एक जोए ग्रीन को उनके प्रोफेसर पिता ने मार्क के साथ जाने से रोका था। असल में फेसमैस की शरारत में उस वक्त जोए ग्रीन को दो बार तलब किया गया था। जोए के पिता ने उन्हें मार्क की बजाए ठीक संगत में रहने की सलाह दे डाली।

मार्क के भीतर उन दिनों हॉर्वर्ड के कई प्रोफेसरों को एक आवारागर्द बांका युवा दिखता था जो कॉलेज की मस्ती की बदौलत परिसर में तो मशहूर हो जाते हैं लेकिन भविष्य में इन मस्तियों को याद कर बहुत रोते हैं कि थोड़ा पढ़ लिए होते तो जीवन कुछ अलग होता! बहरहाल जब जोए ग्रीन से मार्क की मुलाकात हुई तो मार्क ने उनसे कहा, “तुमने मुझे ना कहकर अरबों की भूल कर दी।”

अलग-अलग प्रोफेसर, अलग-अलग राय

ऐसा नहीं था कि हॉर्वर्ड के सारे प्रोफेसरों के बीच मार्क की मान्यता एक-सी थी। वास्तव में जिन प्रोफेसरों के साथ कक्षा में मार्क मुखातिब होते, मार्क के प्रति उन सारे प्रोफेसरों की राय बाकी शिक्षकों की तुलना में अलग थी। जकरबर्ग को हॉवर्ड में कंप्यूटर विज्ञान पढ़ाने वाले प्रो. हैरी लेविस को तो शुरू में यह आभास तक नहीं था कि सालों पहले जिस बिल गेट्स को उन्होंने कंप्यूटर विज्ञान पढ़ाया ठीक वैसा ही जुनून वाला कोई शख्स हॉर्वर्ड में फिर आ धमकेगा और जो सचमुच गेट्स की तरह ही कंप्यूटर जगत की बुलंदियों को छुएगा।

कुछ ही हफ्तों में हैरी की नजर मार्क पर टिक गई। असल में कक्षा में मार्क के पास पूछने को सवालों के अंबार होते थे। आलम ये हो जाता कि कक्षा के बाहर भी वो हैरी लेविस का पीछा करते रहते। हैरी को इस तरह के जिज्ञासु छात्र हमेशा से पसंद रहे हैं। हॉर्वर्ड के दिनों को लेविस अब याद करते कहते हैं, “जकरबर्ग में सीखने की जबर्दस्त भूख थी। कुछ पूछने से वह बिल्कुल भी नहीं शर्माता था। आम छात्रों में यह फैशन देखा जाता है कि आसान चीजे पूछने में उन्हें लगता है कि उनकी इज्जत दांव पर लग गई हो। मार्क में ऐसा नहीं था। वह आसान से आसान और दिमाग चकराने वाले कठिन से कठिन सवाल पूछता रहता था। यही स्वभाव आपको विलक्षण बनाता है। सालों पहले मैंने यही चमक बिल गेट्स के भीतर देखी थी।”

मार्क की मेहनत का नतीजा है कि 258 एकड़ में फैले एक नामचीन अमेरिकी विश्वविद्यालय के एक साधारण से कमरे से निकले फेसबुक ने दुनिया भर में अपना साम्राज्य फैला लिया है और इस पूरे सफर को तय करने में महज आठ साल लगे। आभासी धरती पर मार्क की कब्जेदारी लगातार फैलती जा रही है। गति के लिहाज से देखे तो दुनिया के किसी भी देश ने इतने विशाल भौगोलिक दायरे में इतने सीमित काल में कभी भी विस्तार हासिल नहीं किया। औपनिवेशिक युग की पराकाष्ठा के दौर में भी नहीं। आज दुनिया में चीन और भारत के बाद तीसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला मंच फेसबुक है। अमेरिका और यूरोपीय संघ की सम्मिलित आबादी से ज्यादा लोग फेसबुक पर अब तक लॉग इन कर चुके हैं और एक खाते के साथ फेसबुक को इस स्थिति तक पहुंचाने में मैंने भी मदद की है !  क्या आपका खाता है         फेसबुक पर ? …………………………………………..जारी

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