इमोशनल पॉलिटिक्स— सैनिकों के वोट तो चाहिए, लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं,भाजपा कांग्रेस ने प्रदेश में नहीं दिया किसी सैनिक को टिकट

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा। प्रदेश सहित पूरे देश में देशप्रेम और सैनिकों को सलाम नाम से एक माहौल बनाया जा रहा है। उत्तराखंड जैसे सैन्य बाहुल्य प्रदेश सैनिकों की वीरगाथा का वाहक रहा है। इनके वोट तो राजनैतिक दलों को चाहिए लेकिन इन्हे जन​प्रतिनिधि बनाना इन दलों को गंवारा नहीं है। उत्तराखंड जैसे सैन्य बाहुल्य प्रदेश में राष्ट्रीय दल कहे जाने वाले भाजपा और कांग्रेस को पूरे प्रदेश में एक सैनिक प्रत्याशी नहीं मिला जिसे सैन्य बाहुल्य प्रदेश से प्रतिनिधि बनाकर संसद भेजा जा सके। उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीट हैं। इसमें अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी, हरिद्वार और टिहरी लोकसभा से पांच सांसद चुने जाते हैं। इस प्रदेश से पहले जनरल बीसी खंडूरी और टीपीएस रावत जरूर लोकसभा पहुंचे हैं। उत्तराखंड बनने के बाद लंबे समय तक खंडूरी सैन्य समाज के प्रतिनिधि के रूप में चुनाव मैदान में रहे। खंडूरी के प्रदेश की राजनीति में आने के बाद अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारी टीपीएस रावत को संसद जाने का मौका मिला। 2014 में दोबारा खंडूरी संसद पहुंचे। लेकिन बीसी खंडूरी इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे है। टीपीएस नेपथ्य में हैं। उसके बाद पहली बार एक रिक्तता सी आई है जब पांच सीटों में से एक पर भी सैन्य परिवेश का प्रत्याशी राजनीतिक दलों ने मैदान में उतरना उचित नहीं समझा। जबकि हर जनसभा या रैली में राजनीतिक दल देश की आनबान और शान के वाहक रहे सैनिकों के शौर्य की गाथा गाना नहीं भूल रहे हैं। लोगों को कहना है कि यह राजनीतिक दलों का एक सेंटीमेंटल गेम है। उन्हे सैनिकों के वोट तो चाहिए लेकिन सैनिक को जनप्रतिनिधि बनाकर भेजना उन्हें गंवारा नहीं है।