सीबीएसई बोर्ड से जुड़े स्कूलों में अब बच्चों को उनकी अपनी भाषा में पढ़ाई कराने की तैयारी शुरू हो गई है। बोर्ड ने इसके लिए सभी स्कूलों को एक सर्कुलर भेजकर कहा है कि बच्चों की मातृभाषा को जल्द से जल्द चिन्हित किया जाए ताकि उनकी पढ़ाई उसी भाषा में शुरू करवाई जा सके। अभी तक देखा जाता था कि ज्यादातर निजी स्कूलों में अंग्रेजी को ही पढ़ाई का मुख्य जरिया बनाया जाता है और बच्चों की अपनी भाषा को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन अब बोर्ड का साफ कहना है कि बच्चों को शुरुआती पढ़ाई उसी भाषा में कराई जानी चाहिए जिसे वो घर में बोलते हैं और समझते हैं।
यह फैसला देश की नई शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में उठाया गया है। जिसमें ये बात कही गई है कि बच्चों को आठ साल की उम्र तक उसी भाषा में पढ़ाया जाए जिसमें वो सबसे ज्यादा सहज महसूस करते हैं। बोर्ड ने कहा है कि नर्सरी से लेकर दूसरी क्लास तक का जो फाउंडेशनल स्टेज होता है उसमें पढ़ाई घरेलू भाषा में होनी चाहिए। इसे ही R1 कहा गया है। यानी वह भाषा जो बच्चे के लिए जानी पहचानी हो और बेहतर तरीके से समझ में आती हो।
सिर्फ इतना ही नहीं। तीसरी से पांचवीं क्लास तक भी बच्चे उसी भाषा में पढ़ाई जारी रख सकते हैं या फिर कोई दूसरी भाषा भी चुन सकते हैं। लेकिन बोर्ड का जोर इसी बात पर है कि पहले पांच साल बच्चों को उनकी अपनी भाषा में पढ़ाया जाए ताकि उनकी समझ मजबूत हो सके और वो जल्दी सीख सकें।
बोर्ड की तरफ से ये भी कहा गया है कि हर स्कूल को मई के आखिर तक एक एनसीएफ लागू करने वाली कमेटी बनानी होगी। जो बच्चों की मातृभाषा और भाषा से जुड़ी जरूरतों को चिन्हित करेगी। इसके साथ ही स्कूलों को जल्द से जल्द भाषा से जुड़ी जानकारी इकट्ठा कर बोर्ड को सौंपनी होगी। ताकि जुलाई से मातृभाषा में पढ़ाई की प्रक्रिया शुरू की जा सके।