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15 साल से जैव विविधता (Biodiversity)व पर्यावरण संरक्षण में जुटी है यह समिति, बांज और उतीस के वृक्षों को काटने से बचाने के लिए तैयार करवाया यह विकल्प

उत्तरा न्यूज डेस्क
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अल्मोड़ा: 05 जून 2020- आज विश्व पर्यावरण दिवस है, इस वर्ष की थीम जैव विविधता(Biodiversity) रखी गई है. और पूरा विश्व जैव विविधता(Biodiversity) को बचाए रखने के संकल्प के साथ इस दिवस को मना रहा है.

46 साल यानि 1974 से विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जा रहा है.
इस दिवस का मकसद सभी को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाने के साथ-साथ अपने पर्यावरण के संरक्षण के लिए आगे आने के लिए प्रेरित करना है.

लेकिन अल्मोड़ा की एक सामाजिक समिति पिछले 15 साल से जैव विविधता (Biodiversity) व पर्यावरण को बचाने के प्रयासों में जुटी हुई है.
स्याहीदेवी विकास समिति ने अपने प्रयासों के बीच सघन वनों की संपदा कहलाने वाले बांज और उतीस जैसे वृक्षों को बचाने के लिए एक मुहिम छेड़ते हुए कृषि उपकरणों के लिए पेड़ों को काटने की बजाय विकल्प के रूप में लौह हल तैयार करवाया वर्तमान में यह हल 80 प्रतिशत सरकारी अनुदान पर मिल रहा है.

इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है जैव विविधता(Biodiversity)

बताते चले कि जैव विविधता(Biodiversity) के अंदर जंगल, पेड़, पौधे,अनाज, दालें, नदियां, मिट्टी, कीडे़, मकोड़े, पशु पक्षी,हवा, पानी आदि जो भी दृश्यमान या अदृश्य है ,और जो हमारे जीवन के लिए अनिवार्य है वह सब आता है. एक घटक का संतुलन भी बिगड़ा तो पूरी जैव विविधता यानि बायोडायवर्सिटी(Biodiversity) प्रभावित हो जाती है.


जैव विविधता(Biodiversity) का प्रकृति में संतुलित जीवन के लिए बडा़ महत्व है, मगर जंगलों की कटाई, जंगलो की आग, निरंतर बढ़ते वायु प्रदूषण, सूखती नदियों और जल स्रोतों, प्लास्टिक के चिंताजनक प्रसार ने जैवविविधता के लिए खतरा पैदा कर दिया है.

जिससे मानव जीवन न केवल प्रभावित हो रहा है बल्कि कई बड़े संकट मानव सभ्यता पर आते दिख रहे हैं.
अल्मोड़ा जनपद में विकसित वी. एल.स्याही हल उत्तराखंड के आठ से अधिक जिलों में बांज आदि चौडी़ पत्ती प्रजाति के पेड़ों को बचाने में सहयोग कर जैवविविधता (Biodiversity)संरक्षण में बेहद मददगार साबित हो रहा है.
बांज को पहाड़ का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है. बांज के जंगलो में नमी विशेष रूप से पायी जाती है जिसके चलते बांज के जंगलों में जैवविविधता भी सर्वाधिक होती है. बांज के जंगलों में नाना प्रकार की जड़ी-बूटी, कीडे़ मकोड़े और वनस्पति पायी जाती है. एक तरह से बांज के जंगल जैवविविधता(Biodiversity) का भंडार होते हैं.
परंतु कृषि उपकरणों हल,दनेला, नहेड़, जुआ आदि के निर्माण के लिए भी बांज प्रजाति के पेड़ों का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन किया जाता रहा है जिससे जैवविविधता (Biodiversity)और जल स्रोतों को अपूरणीय क्षति पहुंची है.उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में व्याप्त जल संकट के पीछे मुख्य कारण बांज के जंगलो का सिकुड़ना रहा है।
वर्ष 2004-5 से कोसी नदी के प्रमुख रिचार्ज जोन स्याहीदेवी-शीतलाखेत में स्याहीदेवी विकास मंच, शीतलाखेत द्वारा महिला मंगल दलों और वन विभाग के सहयोग सेजंगल बचाओ-पानी बचाओ अभियान की शुरुआत की गई. कृषि उपकरणों के लिए बांज के पेड़ों के कटान को रोकने तथा ग्रामीणों की जंगलो पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से वैकल्पिक कृषि उपकरणों के प्रयोग की शुरुआत भी हुई.

बाद में स्याहीदेवी विकास मंच(अब स्याहीदेवी विकास समिति) के अनुरोध पर विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के तत्कालीन निदेशक डा.जे.सी. भट्ट ने लकडी़ के परंपरागत हल के धातु निर्मित विकल्प के विकास पर सहमति प्रदान की.

वर्ष 2012 में धातु निर्मित वी. एल.स्याही हल का प्रथम प्रोटोटाइप विकसित किया गया और फिर धीरे धीरे इसे किसानों के सुझावों और जरुरतों के अनुरूप परिष्कृत किया गया.

आज यह हल उत्तराखंड के सात जिलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, पिथौरागढ़, पौडी़, टिहरी तथा देहरादून के 5,000 से अधिक किसानों द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है और लकडी़ के परंपरागत हल के उपयुक्त विकल्प के रूप में सामने आया है,और हर साल हजारों की संख्या में बांज के पेड़ों को कटने से बचाकर वी.एल.स्याही हल ,उत्तराखंड राज्य की जैवविविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. अभी कृषि विभाग इस हल को 80 प्रतिशत अनुदान पर दे रहा है और इसे पहले की अपेक्षा काफी परिष्कृत बताया जा रहा है.

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वी. एल.स्याही हल के प्रचार प्रसार में,विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, कृषि विभाग, भूमि संरक्षण विभाग, आजीविका, ग्राम्या, अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग,स्याहीदेवी समिति, शीतलाखेत,चंडी प्रसादभट्ट पर्यावरण एवं विकास संस्थान गोपेश्वर, वन विभाग , राष्ट्रीय बीज निगम चंदन डांगी, डा़ दुर्गेश पंत,शिव सिंह आदि ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है. समिति का मानना है कि अभी इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य और किए जाने हैं.