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संस्मरण : जगत दा और उनकी यादें

Newsdesk Uttranews
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नही रहे साहित्य प्रेमी जगत दा

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प्रमोद चंद्र जोशी
बग्वालीपोखर (अल्मोड़ा)।
अपनी संस्कृति अपने संस्कारो को संजोकर रखने की चाहत के साथ 82 वर्षीय जगत दा ने आखिरकार सोमवार को ये नश्वर संसार छोड दिया। वह अपने पीछे अपना भरा पूरा परिवार छोड़कर गये है।दिल्ली के निगम बोध घाट पर उनकी
की गई ।जगत दा से मेरा बहुत लगाव रहा है मै अक्सर उन्हे ताऊ जी कहकर संबोधित करता था कभी गलती से यदि भंडारी जी शब्द मुह से निकल जाता था थो तो वे गुस्सा हो जाते थे।
मेरा उनके साथ मिलन वर्ष 2010 मे बग्वालीपोखर की श्री आदर्श रामलीला समिति से हुआ।तब मुझे महासचिव के रुप कार्य करने का मौका मिला था।रामलीला के प्रति ताऊ जी का लगाव बहुत पुराना रहा है। आप दिल्ली यूनिवर्सिटी मे रजिस्टार रहते हुए भी पहाड की चिन्ता करते थे।क्षेत्र में विभिन्न मुद्दों को लेकर काफी संघर्ष किया। बग्वालीपोखर के इण्टर कालेज के उच्चीकरण का मामला रहा हो या बालिका इण्टर कालेज बग्वालीपोखर के उच्चीकरण का । हमेशा जगत दा विकास कार्यो मे लगे रहते थे।आपने 1999 मे रिटायरमेन्ट के बाद अपनी माता जी के नाम से श्रीमती धनुली देवी जनता पुस्तकालय ट्रस्ट खोलकर क्षेत्रीय समाजसेवियो को एक मंच पर लाने की कोशिश की। उन्होंने दामोदर जोशी जी, हरीशरण शर्मा , कुन्दन सिंह मेहता, हरक सिंह भंडारी जी,वीरेंद्र सिंह भंडारी जी,शिवदत्त पाण्डेय, जसोद सिंह भंडारी, राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी आदि को ट्रस्टी बनाकर विभिन्न कार्य करवाये।उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी जी को अध्यक्ष बनाकर पुस्तकालय के द्वारा को आगे बढ़ाया गया।कालांतर में ट्रस्ट से लोगो का मोह भंग होता गया। 2011 मे उनके द्वारा मुझे ट्रस्टी बनाकर कनिष्ठ ट्रस्टी का कार्यभार सौफा गया।तत्पश्चात अत्यधिक कोशिशों के बाद जगत दा की पीड़ा को समझते हुए पुस्तकालय के अधूरे भवन का निर्माण करवाया गया।पुस्तकालय को अपने भवन मे स्थानांतरित कराने के बाद मैं भी व्यक्ति कारणो और बग्वालीपोखर छोडने के कारण जगत दा से सम्पर्क नही रख पाया।यदा कदा कभी दिल्ली उनके भजनपुरा दयाल पुर आवास पर मिलना होता रहा।विगत एक वर्ष से उन्हें फोन पर भी बात करने मे अत्यधिक कठिनाई होती थी।जगत दा जिनको मीठा बहुत अत्यधिक पसंद था अक्सर जलेबी खिला दिया करते थे कभी कभी बच्चो की तरह जिद करके प्रमोद जलेबी लेते आना कहकर आदेशित भी किया करते ।और अक्सर सुबह चाय पीने घर पर बुला लेते थे और ताई जी से चाय बनवाकर घण्टो उनके साथ बैठना और सामाजिक कार्यो पर चर्चा करना सब याद आता है।जगत दा अक्सर हम युवाओ को स्वरोजगार के लिए भी प्रेरित करते थे।वे हमेशा हमारे घटते रोजगार के प्रति भी चिन्तित रहते थे ।मोहन दा बलवीर पप्पू आदि से उनको विशेष लगाव रहता था।रामलीला की तैयारी के लिए अक्सर मै उन्हे फोन करके जल्दी बुला लेता था बच्चो को तालीम देने मे वास्तव मे उन्हे महारत हासिल थी।एक बार मैने बलवीर ने जगत के निर्देशन 40 लडकियो को कार्यक्रम के लिए तैयार कर दिया मोहन दा बच्चो को सम्भालते सम्भालते परेशान हो गये।ताऊ जी का रामलीला के अन्त तक बैठे रहना एक एक शब्द पर ध्यान देना ।और तुरंत उसके बाद कहना कि ये गलत था।हम बहुत ही सावधानी से कार्य करते थे।कुछ समय बाद मै व्यस्तता के चलते रामलीला से दूर हो गया।लेकिन जगत दा की नजरे हमेशा मुझे ढूंढती थी पर हम चाहकर भी जगत दा के करीब नही रह पाते थे।खैर जगत दा ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मै उनके साथ बिताये उन यादगार पलो को भुल नही सकता।जगत दा ने एक बार लवकुश काण्ड मे हम सबको आदेशित कर दिया आदरणीय श्री मनोहर सिंह जी राम श्री विनोद पंत जी सीता श्री हुकम भंडारी जी लक्ष्मण बलवीर भाई भरत तो मुझे शत्रुघ्न बनना पडा।
हिन्दी साहित्य मे जगत द्वारा रामकोट (काव्य ) काली से पाली तक (उपन्यास ) जय हिन्दुदायन (पैरोडी) कलंकिता ( उपन्यास ) आदि पुस्तके लिखी गयी ।जगत दा तुम हमेशा याद आते रहोगे।

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अल विदा जगत दा।