अल्मोड़ा: उद्दा का निधन एक लौ का बुझ जाना:: पुरानी किताबों का रियूज सिखा गए थे नई पीढ़ी को

अल्मोड़ा:: ठाकुर आनन्द सिंह उम्मेद सिंह बुकसेलर लाला बाजार अल्मोड़ा फर्म के मालिक उम्मेद सिंह उद्दा का निधन हो गया है। पिछले दिनों उनका निधन…

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अल्मोड़ा:: ठाकुर आनन्द सिंह उम्मेद सिंह बुकसेलर लाला बाजार अल्मोड़ा फर्म के मालिक उम्मेद सिंह उद्दा का निधन हो गया है।


पिछले दिनों उनका निधन हो गया और वह बाजार की एक यादगार के बीच कभी मुलाकात ना हो पाने वाली रिक्तता छोड़ गये।


बाजारवाद के इस दौर में जहां दिखावा चरम पर है।जो दिखेगा वह बिकेगा की रणनीति पर काम होता है, ग्राहक को दुकानदार एक अवसर समझ कर व्यवहार करता है वहीं उद्दा ने हमेशा मितव्ययता और चीजों सदुपयोग को अपने विजनेस‌ का फलसफा बनाया।


हर उम्र के लोग चाहे वयस्क हों या बच्चे उन्हें उद्दा के नाम से जाने जाते थे।

उनकी बुकसेलर की दुकान तो थी पर अन्य दुकानों की तरह नहीं बल्कि एक ऐसी दुकान जहां किताबों का एक प्रकार से रिनोवेसन कर उसे जरूरतमंद बच्चे के उपयोग लायक बनाया जाता था, यानि एक बच्चा जो आर्थिक अभाव में एक महंगी किताब को जब बाजार से खरीदने में खुद को असमर्थ पाता था तो उद्दा की दुकान उसका अगला पड़ाव होता था जहां उसे वही किताब बहुत कम कीमत में मिल जाती थी, यही नहीं उसके पास यदि कोई और किताब हो तो वह वहां दुकानदार (उद्दा) उसे खरीद लेते थे, जिसे रियायती कीमत पर दूसरे जरूरतमंद को उपलब्ध कराया जाता था। इस आदान प्रदान के बीच मामूली रकम जो बचती थी जो उनकी आजीविका चलाती थी।


उद्दा को गरीब विद्यार्थियों के मसीहा भी कई छात्र कहते थे, एक छात्र से खरीदी गई किताब को उद्दा बड़ी सिद्दत से रखते थे यदि कोई पन्ने फटे हों तो सलीके से चिपकाए जाते थे एक कंपलीट किताब एक से लेकर दूसरे को दी जाती थी।


किताबों को कूड़ेदानों या कबाड़ में फैकने की बजाय उसका सही उपयोग कैसे हो यह उद्दा ये अच्छी तरह शायद ही कोई जानता हो।एक छोटे और नगरीय‌ रूप में आजीविका से जोड़कर ही सही उम्मेद सिंह ने वह कार्य किया जो पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण पहल साबित हो सकती थी,तब हाईस्कूल, इंटर, स्नातक और स्नातकोत्तर की कक्षाओं के छात्र-छात्राओं का इस दुकान में हुजूम लगा रहता था, जो किताब आपको चाहिए उसे रियायती दाम पर ले जाइए और जो आपके अब जरूरत की नहीं उसे आधी कीमत पर दुकान में दे आइए।


इससे जरूरतमंद विद्यार्थियों को कम कीमत पर किताबें मिल जाती थी वहीं उपयोग में ला चुकी किताबों को वहां देकर उसे बिक्री किया जा सकता था। यह अनवरत सिलसिला दशकों तक रहा और किताबों का बेहतरीन उपयोग कैसे हो सकता है यह एक प्रत्यक्ष उदाहरण बन चुका था।

किताबें एक छोटे से प्रयास से किस तरह सर्वसुलभ हो सकती हैं यह उद्दा ने दिखा दिया था भले ही इस प्रयास में उनका व्यवसाय भी शामिल था फिर भी उनकी प्रयास‌ की मशाल ने अल्मोड़ा में एक नई अलख जगाई। यह अलख अब उद्दा के निधन के बाद एक रिक्तता बन गई है, जो शायद ही भरी जा सके।
व्यवसाय में भी नवाचार की सीख देने वाले उद्दा को भावभीनि श्रद्धांजलि।