अल्मोड़ा:: ग्राम पंचायतों के प्रधान पदों की आरक्षण सूची की त्रुटियों पर उठाए सवाल

अल्मोड़ा:: स्यालदे विकासखंड के बरंगल के पूर्व प्रधान डॉ. केएन बलोदी ने पंचायत चुनावों के लिए तैयार की गई आरक्षण सूची को त्रुटिपूर्ण करार दिया…

Panchayat Elections 2025: Circle-Wise Schedule Announced in Almora, Know When and Where Voting Will Take Place



अल्मोड़ा:: स्यालदे विकासखंड के बरंगल के पूर्व प्रधान डॉ. केएन बलोदी ने पंचायत चुनावों के लिए तैयार की गई आरक्षण सूची को त्रुटिपूर्ण करार दिया है।


उन्होंने जिलाधिकारी अल्मोड़ा को ज्ञापन देकर कहा कि प्रकाशित सूची सामाजिक प्रतिनिधित्व की अवधारणा में असंतुलन दिख रहा है।


उन्होंने कहा कि उक्त अनंतिम सूची के परीक्षण एवं अध्ययन के उपरांत कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पुनः विचार किया जाना आवश्यक है, जिसके तहत
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जनपद अल्मोड़ा में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुपात में लगभग 294 ग्राम पंचायतों के प्रधान पद अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित होने चाहिए थे। किंतु, 13 जून 2025 को प्रकाशित सूची में केवल 241 पद ही आरक्षित किए गए हैं।

ग्राम प्रधानों के पदों पर आरक्षण हेतु विकासखंडो को इकाई मानते हुए भी जनपद के सभी विकासखंडो में अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित किये गए पद, वास्तव में आरक्षित की जाने वाली संख्या से कम हैं। यह अंतर स्पष्ट रूप से मानकों की उपेक्षा एवं सामाजिक प्रतिनिधित्व में असंतुलन को इंगित कर रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 243D की भावना के प्रतिकूल नजर आता है।


उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या का पृथक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट नहीं है कि ब्लॉक जनपद स्तर पर ग्राम पंचायतों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का निर्धारण किस विधि, स्रोत या जनसांख्यिकीय मानक के आधार पर किया गया है। यदि इसके लिए किसी विशेष जनसांख्यकी मानक / या अन्य किसी विधि को आधार बनाया गया है तो इसकी जानकारी सार्वजानिक नहीं है।

कहा कि इस प्रकार आधारहीन आरक्षण की प्रक्रिया, पारदर्शिता और विधिक वैधता दोनों के लिए चिंताजनक है। इसके साथ ही आरक्षण सूची के परीक्षण से यह प्रतीत हो रहा है कि समस्त विकासखंडों में अनुसूचित जातियों के संभावित आरक्षित पदों में से ही, कुछ को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया है। यदि ऐसा है तो यह स्थिति न केवल अनुच्छेद 243D के साथ असंगत है, बल्कि इससे अनुसूचित जातियों को उचित प्रतिनिधित्व से वंचित कर अन्यायपूर्ण दोहराव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।


उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के ‘ट्रिपल टेस्ट व्यवस्था निर्देशों के आलोक में यह स्पष्ट है कि आरक्षण चक्र (जो संभवतः OBC आरक्षण के संदर्भ में है) राज्य में प्रथम बार लागू किया गया है। किन्तु अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित पदों के परिपेक्ष्य में सर्वाधिक जनसँख्या अनुपात वाली ग्राम पंचायतों को बारंबार आरक्षण देकर कुछ पंचायतों में वर्ष 1992 में 73वां संविधान संशोधन लागू होने से अतिथि तक अनुसूचित जातियों हेतु प्रधान पद पर आरक्षण नहीं देने से, उन्हें इस पद पर प्रतिनिधित्व से पूर्णतः वंचित रखा गया है। विशेष रूप से वे पंचायतें जहाँ अनुसूचित
जातियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, वहां इस प्रकार की व्यवस्था के कारण भविष्य में भी कभी प्रतिनिधित्व का अवसर प्राप्त नहीं होने सकने से स्थायी वंचना (Permanent Disenfranchisement) की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जो राजनीतिक समानता के विरुद्ध तो है ही, साथ ही सामाजिक न्याय के सिद्धांत के प्रतिकूल है।
आरक्षण प्रस्तावों की अनंतिम सूची के प्रकाशन के उपरांत, आपत्तियां दर्ज करने के हेतु आमजन को मात्र दो दिवसों का समय दिया गया है, जो पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने उपर्युक्त तथ्यों व आपत्तियों पर यथोचित संज्ञान लेते हुए, दिनांक 13 जून 2025 को प्रकाशित आरक्षण सूची की पुनः समीक्षा कर संशोधित एवं न्यायसंगत सूची का प्रकाशन करने की मांग की है।