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यह है अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल जो आजादी के आंदोलन की रही है गवाह,पहले प्रधानमंत्री सहित 423 क्रांतिकारी रहे इस जेल में बंद पढ़े पूरी खबर

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में दो बार बंद रहे पंडित नेहरू

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अल्मोड़ा:— आजादी के संघर्ष के दौरान भले ही अल्मोड़ा की जेल दमन का परिचायक रही हो लेकिन इस उतार चढ़ाव और आजादी के संघर्ष को देखने की गवाह भी यही जेल रही है। इस जेल में देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू दो बार बंद रहे, यहां कुल 423 आजादी के आंदोलन के रणबाकुंरे बंद रहे जिनकी याद वहां मौजूद ​सूचना पट्ट आज भी दिलाते हैं।
 

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एनटीडी मार्ग में स्थित अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल (जिला जेल)आजादी के इतिहास से जुडी हुई है,यह अंग्रेज़ो के ज़ुल्म की गवाह रही है, यहाँ आज़ादी के दीवानों में जननायक पंडित जवाहर लाल नेहरू, भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंंत, सीमांत गांधी के रूप में जाने जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान, हर गोविन्द्र पंत, विक्टर मोहन जोशी,बद्रीदत्त पांडे,पंडित हरगोबिन्द पंत, सरला बहन,आचार्य नरेंद्र देव,चन्द्र सिंह गढ़वाली,कामरेड पूर्ण चंद जोशी,गोबिंद चरणकर, मोहन लाल साह,दुर्गा सिंह रावत सहित अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने इस ऐतिहासिक जेल की काल कोठरियों में गुज़ारे है। यहाँ महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी रखा गया था।

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अल्मोड़ा की यह ऐतिहासिक जेल 1872 में बनाई गई थी, जिसमें आजादी के अनेक वीरों को यहां रखा गया था। यह जेल उत्तराखंड सबसे पुरानी जेलों में शुमार है।

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू दो बार जेल में रहे है। एक बार 28 अक्टूबर 1934 से 3 सितम्बर 1935 तक। दूसरी बार छह दिन यानी 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक रहे। नेहरू ने अपनी आत्मकथा डिस्कवरी आफ इंडिया के कुछ अंश भी यहां लिखे थे।

स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ी हुई अनेक ऐतिहासिक यादें आज भी इस जेल में संजो कर रखी गई है, जिन्हे देख कर आज भी सब कुछ जीवंत हो उठता है। यहां एक कैदी के रूप में नेहरू को मिले बर्तन, लोटा, गिलास,थाली,चरखा, दीपक,कुर्सी सहित पुस्तकालय भवन भी है।   अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

1942 में देश की आजादी को लेकर फूटे अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की गवाह रही यह जेल जीर्ण क्षीर्ण होती जा रही है। इन ऐतिहासिक यादों को समेंटे इस जेल को संरक्षित किए जाने की की ज़रुरत है। यहां कई बार इस जेल को संरक्षित करने, इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने और पर्यटन के लिए खोलने की तक बात होती रही है लेकिन कोई भी घोषणा अमलीजामा तक नहीं पहुंच पाई है। मुख्य जेल में आज भी चार जनपदों के कैदी रखे जाते हैं। नेहरू वार्ड इससे लगा है जहां साल में केवल एक बार रश्मी तौर पर कार्यक्रमों का आयोजन होता है। हालांकि अब नेहरू वार्ड के आंगन में एक स्मारक जरूर बनाया है जिसमें क्रांतिकारियों के नाम लिखे गए हैं। अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

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अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जनपदों के कैदियों को रखा जाता है। यहाँ कैदियों की संख्या लगातार बढ़ने से भी इस जेल की हालत खस्ता होती  है। आजादी के दौर की गवाह रही यह जेल इतिहास के पन्नो में दर्ज है।
सरकार इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए गंभीर दिखाई नहीं देती। फिलहाल अगस्त क्रान्ति के अवसर पर इस जेल में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल


नेहरू वार्ड के मुख्य भवन के ठीक सामने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मृति पटल भी बना है। इसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम लिखे हैं।

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में पंडित नेहरू के अलावा खान अब्दुल गफ्फार खान, गोविंद बल्लभ पंत, आचार्य नरेंद्र देव, हरगोविंद पंत, विक्टर मोहन जोशी, देवीदत्त पंत, बद्रीदत्त पांडे, सैयद अली जहीर, दुर्गा सिंह रावत आदि स्वतंत्रता सेनानी भी रहे।

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल को लंबे समय से राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग की जा रही है, ताकि यह एक अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सके, लेकिन लंबे समय बाद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।हालांकि नए अधीक्षक एसके सुखीजा ने परिसर को रंगरोगन, साफ सफाई और मुख्य भवन की मरम्मत जैसे कार्य अपने कार्यकाल में किए हैं।

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल
अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल
photo almora jail
photo suchana patt

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