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पांच रुपये अड़तीस पैसे रोज मिलते हैं सरकार से हमें इलाज के लिए

Newsdesk Uttranews
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देहरादून। प्रदेश की लचर स्वास्थ्य सेवाओं की बानगी में एक सच यह भी है कि उत्तराखण्ड राज्य के हर निवासी के हिस्से में पांच रुपये अड़तीस पैसे आते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी बजट में आम आदमी के स्वास्थ्य पर खर्च होने वाली इस रकम का खुलासा एसडीसी फाउंडेशन ने किया है। देहरादून में राज्य सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने पर आमादा आम आदमी पार्टी के नेता कर्नल (से.नि.) अजय कोठियाल ने यह जानकारी दी।

उत्तराखंड में स्वास्थ्य स्वाओं को लचर बताते हुए प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा इस बार कैग रिपोर्ट 2019-20 में उत्तराखंड हिमालय राज्यों में स्वास्थ्य के नाम पर सबसे कम बजट खर्च करने वाला राज्य निकला। खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड का हेल्थ सेक्टर हिमालयी राज्यों में सबसे पीछे है। जो इस प्रदेश के लिए बहुत ही दुर्भाग्य की बात है। 

उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों के सापेक्ष उत्तराखंड राज्य में स्वास्थय सेवाओं पर सबसे कम बजट खर्च किया जाता है। विधानसभा के पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट 2019–2020 में राज्य में चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य में पूंजीगत व्यय पहले की तुलना में घटा है। इसका असर सीधे सीधे आम जनता की सेहत पर पडा है। 2018 -2019 में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 188 करोड का बजट दिया गया, जबकि अगले वर्ष 2019 – 2020 में यह बजट घटाकर 97 करोड कर दिया गया। कैग ने खुद सरकार को इस सेक्टर में बजट बढ़ाने का सुझाव सरकार को दिया है।

उन्होंने कहा कि एक संस्था एसडीसी के मुताबिक उत्तराखंड में जो बजट हैल्थ सैक्टर पर खर्च किया जाता है वो हिमालय राज्यों में सबसे कम 6.8 प्रतिशत है, जबकि जम्मू कश्मीर में ये खर्च 7.7 प्रतिशत, हिमाचल में 7. 6 प्रतिशत तो दिल्ली में ये बजट 16.7 प्रतिशत है। यानि की उत्तराखंड में स्वास्थ्य का बजट सबसे कम है। उन्होंने कहा कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल हैं। आज भी कई अस्पताल ऐसे हैं जहां डाक्टरों के अभाव में मरीजों को कई मील दूर जाना पडता है। आज भी प्रदेश में इलाज ना मिल पाने और अस्पताल में सुविधाएं ना मिल पाने के एवज में कई प्रसूताएं रास्ते में ही बच्चों को जन्म दे देती हैं, या फिर दम तोड देती हैं।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में एयर एंबुलेंस की सुविधाएं नहीं होने से आज भी कई लोग दम तोड देते हैं। लेकिन अगर कोई बडा नेता या वीआईपी हो तो उसको ये सुविधा आसानी से उपलब्ध हो जाती है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पलायन की एक मुख्य वजह भी खराब स्वास्थ्य व्यवस्था है। इसके चलते यहां के लोगों को पलायन करना मजबूरी बन गई है। प्रदेश के कई अस्पताल ऐसे हैं जहां ऑपरेटर हैं, तो मशीनें नहीं हैं और अगर मशीनें हैं तो बिना आपरेटर के जंग और धूल खा रही हैं। यहां हर महीने सरकार कर्मचारी की तनख्वाह और पेंशनरर्स की पेंशन से एक निधार्रित रकम गोल्डन कार्ड के लिए काटी जाती है, लेकिन जब उस कार्ड को अस्पतालों में लेकर जाओ तो कई अस्पताल उस कार्ड पर इलाज नहीं करते। पूरा पैसा नकद वसूलते हैं और कोराना काल में ऐसे कई मामले मीडिया ने उजागर भी किए।

उन्होंने एसडीसी फाउंडेशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन 5 रु 38 पैसे खर्च किया जाता है जो हिमालयी राज्यों में सबसे कम है।