चारू तिवारी
उत्तराखंड आजकल चर्चाओं में है। किसी उपलब्धि के लिये नहीं। विकास के लिये नहीं। एक दलाल किस्म के पत्रकार के गिरफ्तार होने पर। ऐसा पत्रकार जिसके भाजपा-कांग्रेस सभी नेताओं के साथ संबंध थे। मुख्यमंत्री से लेकर विधायकों, मंत्रियों, पार्टी के बड़े नेताओं, आईएएस अधिकारियों से लेकर क्लर्को तक उसकी पहुंच थी। वह मुख्यमंत्रियों के साथ बेडमिंटन खेलता था। मुख्यमंत्री-मंत्री, नेता-अफसर, माफिया उसके बच्चे की बर्थ डे पार्टी में जाना अपना सौभाग्य समझते थे। वह पहाड़ के नेताओं के लिये बहुत प्रतिबद्ध पत्रकार था। उसका चैनल चलता है। बहुत सारे गपोड़ी पत्रकारों को उसने नौकरी दी थी। सचिवालय और विधानसभा में उसकी सीधी पहुंच थी। मुख्यमंत्रियों के बेडरूम तक में वह झांक सकता था। रमेश पोखरियाल निशंक जैसे ‘विश्व के सर्वश्रेष्ठ’ मुख्यमंत्री को उसे गिरफ्तार करना पड़ा।
वह ‘चतुर-सुजान’ मुख्यमंत्री हरीश रावत तक का स्टिंग आॅपरेशन कर सकता था। वह हरक सिंह रावत जैसे ‘दबंग’ नेता को अपने झांसे में ले सकता था। वह मदन बिष्ट जैसे ‘बलिष्ठ’ विधायक को कैमरे में कैद कर सकता था। वह अजय भट्ट जैसे ‘राष्ट्रभक्त’ और ‘संस्कारी-वाचाल’ को प्रभावित कर सकता है। जो प्रतिपक्ष के नेता रहकर उसे जनपक्षीय और प्रतिबद्ध पत्रकार होने का प्रमाण पत्र देते हैं। सरकार से उस पर लगे आपराधिक मामलों को वापस लेने की सिफारिश करते हैं।
उसकी सिफारिश में ‘सीधे-साधे-गधेरू’ नेता भगत सिंह कोश्यारी भी पत्र लिखते हैं।

यह कहानी उमेश कुमार नामक एक दलाल से शुरू जरूर होती है, लेकिन इसकी विषयवस्तु इन अठारह सालों में लुटते-पिटते उत्तराखंड की वह बानगी है जिसे नेता-अफसर-माफिया के गठजोड़ ने कहीं का नहीं छोड़ा। उमेश कुमार इसलिये नहीं पकड़ा गया है कि उत्तराखंड में किसी ईमानदार राजनेता का अवतार हो गया है। इसलिये भी नहीं कि त्रिवेन्द्र रावत भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, बल्कि इसलिये पकड़ा गया कि कल तक मुख्यमंत्राी जिस दलाल के बच्चे की बर्थ डे पार्टी में जा रहे थे वह उनके और उनके कुनबे के लिये खतरा बन रहा है। वह उनकी पोल-पट्टी खोलने के लिये ब्लेकमेलिंग पर उतर आया है। उसे क्यों पकड़ा गया उसका खुलासा भी होना चाहिये। यह बात भी सामने आनी चाहिये कि उसने इस बीच किस-किस के स्टिंग किये हैं। यह बात भी सामने आनी चाहिये कि इसके इन सब नेताओं के साथ क्या संबंध थे। इस तरह के और किन लोगों के साथ इन नेताओं के संबंध हैं। यह जानना इसलिये जरूरी है कि इन अठारह सालों में जिस तरह सत्ता में बैठे लोगों ने पहाड़ से लोगों को खदेड़ने का इंतजाम किया वह इस तरह के नापाक गठजोड़ का नतीजा है।
पिछले दिनों एक शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा मुख्यमंत्री के दरवार मे अपनी समस्या को लेकर गई। मुख्यमंत्री ने उसे बेइज्जत किया। धक्का मारकर बाहर करने का आदेश दिया। यह भी कहा कि इसे गिरफ्तार करो। इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उस शिक्षिका ने कहा कि तुम ‘चोर-उच्चके’ हो। मीडिया से लेकर ‘ससंदीय भाषा’ के ठेकेदारों ने कहा कि एक मुख्यमंत्री के प्रति शिक्षिका की भाषा संसदीय नहीं थी। अभी गांव के आदमी को गुस्सा आने वाला है। वह बतायेगा कि संसदीय भाषा क्या होती है। वह कोई शिक्षक या संसदीय भाषा का मर्मज्ञ नहीं है। समय आने दो वह आपकों अपनी भाषा से नवाजने वाला है। राहत इंदौरी ने इनके लिये ठीक ही कहा-
हादसा बनकर वह बाजार में आ जायेगा,
जो कहीं नहीं हुआ, वह अखबार में आ जायेगा।
‘चोर-उच्चकों’ की करो ‘कद्र’
पता नहीं कब कौन सरकार में आ जायेगा।
दरअसल, ये चोर-उच्चकों से ज्यादा कुछ नहीं थे। इनकी संगत और स्तर भी उमेश कुमार जैसा ही है। अजय भट्ट सीना तानकर बेशर्मी के साथ बोल रहे हैं कि हां मैंने लिखी चिट्ठी। उनसे पूछा जाना चाहिये कि अगर इतनी गर्मी तुमने पहाड़ के हित में दिखाई होती तो तुम्हारी ये गत नहीं होती। अजय भट्ट! तुम्हारा जनप्रतिनिधित्व उस समय क्यों नहीं जागा जब तुम्हारे आका केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह मुजफ्फरनगर कांड के डायर अनन्त कुमार सिंह को अपनी छत्र छाया में बचाते रहे। तुम जैसे पहाड़ के नेताओं को राजनाथ से मिलने के लिये अनन्त कुमार के पैर पकड़ने पड़ते थे। अजय भट्ट तुम्हारी यह हेकड़ी तब कहां गई जब तुम्हारे सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री मेजर जनरल खंडूडी के समय में मुजफ्फरनगर कांड के हत्यारे बुआ सिंह को देहरादून में रेड कारपेट सम्मान दिया गया।
अजय भट्ट! जनता तुमसे सवाल पूछती है कि तुम उस समय कहां रहते हो जब राज्य के तीन हजार से ज्यादा स्कूल बंद किये जाते हैं। तुम्हारी सरकार राज्य के पांच नवोदय विद्यालयों को बंद करने की घोषणा करती है।

