सऊदी में फंसे हैं बिहार और यूपी के सैकड़ों मजदूर, आठ महीने से ना मजदूरी मिली ना खाना, अब लौटना चाह रहे तो कंपनी रोक रही है

रोज़गार की तलाश में विदेश गए भारतीय मज़दूरों की बेबसी एक बार फिर सामने आई है। सऊदी अरब के यानबू शहर में मौजूद सेंडन इंटरनेशनल…

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रोज़गार की तलाश में विदेश गए भारतीय मज़दूरों की बेबसी एक बार फिर सामने आई है। सऊदी अरब के यानबू शहर में मौजूद सेंडन इंटरनेशनल नाम की कंपनी में काम करने गए बिहार और उत्तर प्रदेश के 400 से ज़्यादा मज़दूर आज खुद को जैसे किसी जेल में बंद महसूस कर रहे हैं।

इन मज़दूरों में ज़्यादातर लोग बिहार के गोपालगंज, सीवान और छपरा जैसे ज़िलों से हैं। उन्होंने अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए विदेश का रुख किया था। लेकिन अब वहां ना तो काम मिल रहा है, ना पैसा और ना ही पेट भर भोजन।

बताया जा रहा है कि इन्हें पिछले आठ महीने से एक भी पैसे की मज़दूरी नहीं दी गई है। मज़दूरों का आरोप है कि जब उन्होंने वापस लौटने की बात कही, तो कंपनी ने उन्हें रोक लिया। उनका पासपोर्ट तक वापस नहीं किया गया है। जाने की इजाज़त भी नहीं दी जा रही है।

अपनी हालत से परेशान मज़दूरों ने वीडियो जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से वतन वापसी की गुहार लगाई है। वे लगातार भारतीय दूतावास से संपर्क कर रहे हैं। ईमेल और फोन कॉल्स के ज़रिए मदद मांग रहे हैं। लेकिन अब तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला है।

मज़दूरों को डर सता रहा है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। क्योंकि वहां न तो खाने की व्यवस्था है और न ही किसी तरह की चिकित्सा सुविधा। पीड़ितों में गोपालगंज के धामपाकड़ के राजकिशोर कुमार, भगवानपुर एकडंगा के बलिंदर सिंह, फतेहपुर दीघा के दिलीप चौहान, राजेंद्र नगर के शैलेश चौहान, बालेपुर बथुआ बाज़ार के ओमप्रकाश सिंह और सीवान के कई अन्य लोग शामिल हैं।

इनके परिवार स्थानीय प्रशासन और गोपालगंज के सांसद डॉ. आलोक कुमार सुमन से भी मदद की अपील कर चुके हैं। लेकिन अभी तक उन्हें सिर्फ़ आश्वासन ही मिला है।

सेंडन इंटरनेशनल नाम की यह कंपनी वर्ष 1994 से काम कर रही है। इसका मुख्यालय यानबू में है। कंपनी तेल, गैस, बिजली और परिवहन जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है। अच्छी प्रतिष्ठा के बावजूद कंपनी में फंसे भारतीय मज़दूर क़ैदियों जैसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं।

देश में जब रोज़गार को लेकर सियासी घमासान मचा है, ऐसे में विदेशों में फंसे इन भारतीय मज़दूरों की आवाज़ कौन सुनेगा। यह सवाल अब पूरे देश के सामने है।