ब्रेन-डेड मां की कोख में पलती रही उम्मीद: अस्पताल ने तीन महीने तक नहीं किया लाइफ सपोर्ट बंद

अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इंसानियत के साथ-साथ कानून की पेचीदगियों को भी सवालों के घेरे में ला…

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अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इंसानियत के साथ-साथ कानून की पेचीदगियों को भी सवालों के घेरे में ला दिया है। एक महिला जिसे डॉक्टरों ने फरवरी में ब्रेन डेड घोषित कर दिया था उसे पिछले तीन महीने से अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया है। वजह ये है कि उस महिला के गर्भ में बच्चा पल रहा है और कानून के मुताबिक उस भ्रूण की जिंदगी को बचाना जरूरी है।

इस महिला का नाम है एड्रियाना स्मिथ जो पेशे से एक नर्स थी और उसका पांच साल का एक बेटा भी है। फरवरी में उसे अचानक तेज सिरदर्द हुआ और जब परिवार वाले अस्पताल लेकर पहुंचे तो डॉक्टरों ने जांच में पाया कि उसके दिमाग में खून के थक्के जम चुके हैं। स्थिति इतनी गंभीर थी कि उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया यानी उसकी मौत हो चुकी थी।

लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। डॉक्टरों ने एड्रियाना की मां एप्रिल न्यूकिर्क को बताया कि वो महिला गर्भवती है और उसका बच्चा अब भी जिंदा है। चूंकि जॉर्जिया में ऐसा सख्त कानून है जो भ्रूण के दिल की धड़कन महसूस होते ही गर्भपात को रोक देता है इसलिए उस महिला को लाइफ सपोर्ट पर रखा गया ताकि बच्चा पूरी तरह विकसित हो जाए।

परिवार वालों का कहना है कि अस्पताल ने उन्हें बताया कि वो महिला अब शरीर से मर चुकी है लेकिन उसके शरीर से बच्चा जुड़ा हुआ है इसलिए मशीनें हटाई नहीं जा सकतीं। ये फैसला अस्पताल और कानून ने लिया लेकिन परिवार की मर्जी नहीं पूछी गई।

महिला की मां ने स्थानीय चैनल से बातचीत में बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें ये भी कहा है कि बच्चा जन्म ले भी ले तो शायद जिंदा न रह पाए। उसके दिमाग में तरल भर गया है। वो अंधा हो सकता है, चलने-फिरने लायक नहीं हो सकता या शायद पैदा होने के तुरंत बाद ही मर भी सकता है।

इस पूरे मामले में न तो अस्पताल खुलकर बोल रहा है और न ही राज्य के अधिकारी। अस्पताल ने एक बयान में बस इतना कहा है कि वो हर मामले में राज्य के कानून और चिकित्सा मानकों का पालन करता है और मरीजों की सुरक्षा ही उसकी प्राथमिकता है।

अब सवाल ये है कि जब महिला कानूनी रूप से मर चुकी है तो उसके शरीर को मशीनों पर रखना कितना सही है। और क्या एक मां का परिवार इस बात का फैसला नहीं कर सकता कि उसके शरीर से जुड़ी ऐसी गंभीर स्थिति में क्या करना चाहिए। डॉक्टर भी मानते हैं कि ये मामला बहुत जटिल है। ना सिर्फ नैतिक रूप से बल्कि चिकित्सा के नजरिए से भी।

इस वक्त एड्रियाना के शरीर से एक अनिश्चित भविष्य की उम्मीद जोड़ी जा रही है। मशीनें उसे चला रही हैं और बच्चा अंदर पल रहा है। लेकिन ये कहानी सिर्फ एक जान बचाने की कोशिश नहीं है बल्कि उन तमाम सवालों का आईना भी है जो कानून और इंसानियत के बीच की खाई को दिखा रही है।