160 साल की रामलीला के इतिहास में पहली बार अल्मोड़ा की रामलीला नए रंग में, कोरोना काल में आँन लाइन दिखाई जा रही है रामलीला

Newsdesk Uttranews
5 Min Read

For the first time in the history of 160-year-old Ramlila, Ramlila of Almora in a new color, Ramlila is being shown in the Corona era

Screenshot-5

समाचार से संबंधित वीडियो यहां देखें

holy-ange-school
160-year-old Ramlila, Ramlila of Almora

ezgif-1-436a9efdef

अल्मोड़ा, 18 अक्टूबर— अल्मोड़ा की रामलीला को 160 वर्ष पूरे हो गए हैं विभिन्न आयामों, बदलाओं और तकनीकों से गुजरते हुए पहली बार अल्मोड़ा में रामलीला का स्वरूप आन लाइन तक जा पहुंचा है।
माना जाता है कि कुमाऊं में सबसे पहले सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की पीठ पर शुरू हुआ था। गीत-नाट्य शैली पर आधारित इस मंचन की परंपरा 160 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी। 1860 में सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के बद्रेश्वर में सबसे पहले मंचन किया गया। इसे तत्कालीन डिप्टी कलक्टर स्वर्गीय देवीदत्त जोशी ने प्रारंभ किया था। तब वर्षों तक बद्रेश्वर रामलीला का मंचन का केंद्र रहा। बाद में बाद के वर्षों 1950-51 से यह नंदादेवी के प्रांगण में हुई।
तब आयोजकों में उत्साह तो काफी था इसलिए पूर्व में बद्रेश्वर में होने वाली रामलीला छिलकों की रोशनी में की जाती थी। बाद में उजाले की व्यवस्था पेट्रोमेक्स से की जाने लगी। वर्तमान में आधुनिक तकनीक का प्रयोग रामलीलाओं में किया जाने लगा है।

160-year-old Ramlila, Ramlila of Almora

इस रामलीला के मंचन से नृत्य सम्राट पं.उदय शंकर भी प्रभावित रहे। उन्होंने भी इस रामलीला के मंचन में अनेक प्रयोग किए। बाद में उन्होंने छाया चलचित्रों के माध्यम से मंचन को और आकर्षक बनाया। इसका प्रभाव आज भी दिखता है। वर्तमान में रामलीला के अनेक दृश्य छायाचित्रों के माध्यम से दिखाए जाते हैं। हारमोनियम की सुरीली धुन, तबले की गमक और मंजीरे की खनक के साथ पात्रों का गायन कर्णप्रिय होता है। धीरे धीरे अल्मोड़ा नगर के लक्ष्मी भंडार, राजपुरा, कर्नाटक खोला, सरकार की आली, एनटीडी, धारानौला सहित अनेक स्थानों में रामलीला का मंचन होना शुरू हो गया।

कोरोना काल में अल्मोड़ा मे केवल एक स्थान पर हो रही है रामलीला

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में पहली बार वर्चुअल माध्यम से लोग रामलीला देख रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल में सिर्फ एक ही स्थान रामलीला हो रही है। कोरोना संक्रमण से सब कुछ बदल कर रख दिया है इसका असर रामलीला मंचन पर भी पड़ा है। इस बार सिर्फ कर्नाटकखोला में रामलीला हो रही है वह भी बिना दशकों के। ऐसी स्थिति में रामलीला का लोग वर्चुअल माध्यम से आनन्द ले रहे है. जिला प्रशासन ने भी भीड़ कम हो इसके लिए कम ही संख्या में लोगों के शामिल होने की अनुमति दे रखी है। हालांकि आयोजक और कलाकार इस नई परंपरा को लेकर रोमांचित भी हैं और इसे चुनौती के रूप में भी ले रहे हैं।

160-year-old Ramlila, Ramlila of Almora

कर्नाटकखोला के रामलीला कमेटी के अध्यक्ष बिट्टू कर्नाटक का कहना है कि सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की रामलीला पहचान है। कोरोनाकाल में किसी भी स्थान पर रामलीला नही हो रही थी। लेकिन हमारी रामलीला कमेटी ने रामलीला करने की ठानी थी। यह एक चुनौती भी है और कमेटी दर्शकों को रामलीला वर्चुवल माध्यम से दिखाई जा रही है।
कोरोना काल में भी कलाकारों में जोश की कमी नही है। एक माह की तालीम करने के बाद कलाकार खुद गायन के साथ ही रामलीला का मंचन भी कर रहे है। कोरोनाकाल में भी कलाकारों ने रामलीला की तालीम लेने में किसी तरह की कोई कमी नही छोड़ी।
राम की पात्र दिव्या पाटनी का कहना है कि वह पिछले तीन सालों से रामलीला में पहले सीता का किरदार निभाती थी अब दो वर्षों से राम का पात्र बन रही हैं।

रामलीला को देखने के लिए एक समय में दूर-दूर गांव से लोग पहुचते थे. समय बदलने के साथ ही रामलीला के मंचन में बदलाव आये लेकिन लोगों की श्रद्धा में कही कमी नही आई. कोरोना संक्रमण काल में भी रामलीला का मंचन किया जाना श्रद्धा और विश्वास को बढ़ाता है।

पहले दिन रावण तपस्या राम जन्म सचित कई प्रचलित प्रसंगों का हुआ मंचन

अल्मोड़ा में पहले दिन के मंचन में रावण तपस्या, ऋषि गणों के साथ अत्याचार,राम जन्म सहित कई प्र​चलित प्रसंगों का मंचन हुआ। कलाकारों ने काफी उत्साह के साथ अपने अभिनय का प्रस्तुतिकरण किया। इस प्रस्तुतिकरण को आन लाइन माध्यमों से प्रसारित किया गया। रामलीला का वर्चुअल उद्घाटन पूर्व सीएम हरीश रावत ने किया उन्होंने लोगों से भगवान राम के आदर्शों को अपनाने का आह्वान किया।
इधर आयोजक मंडल के अनुसार आज सीता स्वयंवर, धनुष यज्ञ, रावण वाणासुर संवाद, राम सीता विवाह, परशुराम लक्ष्मण संवाद का मंचन किया जाएगा।

Joinsub_watsapp