shishu-mandir

ब्रोकली(Brokley): पौष्टिक गुणों से भी भरपूर, स्वाद में भी स्वास्थ के लिए भी

Newsdesk Uttranews
10 Min Read
Screenshot-5

new-modern
gyan-vigyan

ब्रोकली (Brokley)का उत्पादन से हो सकती है अच्छी आजीविका

देहरादून, 5 मार्च 2020

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय

देहरादूनउत्तराखंड: ब्रोकली (Brokley)एक सब्जी है जो देखने में फूलगोभी जैसी होती है लेकिन रंग अलग होता है। फूलगोभी केवल सफ़ेद रंग की होती है पर ब्रोकली(Brokley) गाढ़े हरे रंगए बैंगनी और सफ़ेद रंगों में पायी जाती है।

Brokley

यह कच्ची और उबाल कर दोनों तरह से खाई जाती है। कई पौष्टिक गुणों से भरपूर ब्रोकली()Brokley में कैंसर निरोधी क्षमता भी होती है।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिको का कहना है कि ब्रोकली(Brokley) में कई ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर से लडऩे का काम करते हैं। इसके अलावा कैल्सियम, फास्फोरस और आयरन की मात्रा भी इसमें भरपूर होती है।

prakash ele 1

पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली(Brokley) अब देहरादून जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी। इसके लिए कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र काश्तकारों को उन्नत बीज और उत्पादन का तकनीकि का प्रशिक्षण देगा।

काश्तकारों को ब्रोकली ( Brokley ) की खेती के लिए करना होगा जागरुक

देहरादून जिले में अब तक गिने चुने क्षेत्रों में चुनिंदा काश्तकार ही ब्रोकली (Brokley)पैदा कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल से काश्तकार बड़े पैमाने पर ब्रोकली का उत्पादन कर उसे बाजार में बेच सकेंगे। कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र सुईं में विगत दस वर्षों से ब्रोकली पैदा की जा रही है।

science

अनुसंधान का लाभ काश्तकारों तक पहुंचाने के लिए केंद्र की ओर से जिले के 100 प्रगतिशील काश्तकारों को ब्रोकली(Brokley) उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उन्हें पर्वतीय परिवेश में पैदा होने वाला बीज उपलब्ध कराया जा रहा है लेकिन लाभ कम होने के कारण अधिकांश काश्तकार इसके उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

देहरादून केंद्र ने अब 100 और चुनिंदा काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का तकनीकि प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें बीज उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। गोभी के मुकाबले ब्रोकली का वजन काफी कम होने के कारण काश्तकार इसे लाभ का सौदा नहीं मान रहे हैं जिसके कारण इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

ब्रोकली के एक फूल का अधिकतम वजन 400 ग्राम तक हो सकता है जबकि गोभी का वजन अमूमन डेढ से दो किलो या उससे अधिक हो सकता है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र में ब्रोकली का क्रेज न होना भी इसके उत्पादन में कमी की मुख्य वजह है। जबकि सलाद के तौर पर खाई जानी वाली ब्रोकली पौष्टिक गुणों से भी भरपूर है।

ब्रोकली के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जाएगा ताकि लोग इसका अधिक से अधिक सेवन कर सकें। ब्रोकली का उत्पादन पॉलीहाउस में काफी अच्छा होता है। पॉलीहाउस के बाहर इसकी खेती करने का पूरा लाभ कास्तकारों को नहीं मिलता। पॉलीहाउस में यह डेढ़ से दो माह के भीतर खाने योग्य हो जाती है। इसका उत्पादन फूल गोभी की तरह ही होता है। पॉलीहाउस में साल भर में इसकी दो खेती की जा सकती हैं।

ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी। ब्रोकली(Brokley) के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है।

ब्रोकली(Brokley) के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई.नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है। पौधे का मुख्य गुच्छा लगभग 200—400 ग्राम तक होता है। और इसकी की कटाई के बाद दूसरी नई सखाओं से प्राप्त छोटे गुच्छे 100—150 ग्राम तक के होते हैं।

इस प्रकार से 1 पौधे से लगभग 800—1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली किसान को प्राप्त होती है। ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160—180 क्विंटल उपज मिल जाती है। ब्रोकली (Brokley)की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी। ब्रोकली के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है।

ब्रोकली(Brokley) के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई.नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है।

पौधे का मुख्य गुच्छा लगभग 200—400 ग्राम तक होता है। और इसकी की कटाई के बाद दूसरी नई सखाओं से प्राप्त छोटे गुच्छे 100—150 ग्राम तक के होते हैं। इस प्रकार से 1 पौधे से लगभग 800—1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली किसान को प्राप्त होती है।

ब्रोकली(Brokley) की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160—180 क्विंटल उपज मिल जाती है। ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी।

ब्रोकली(Brokley) के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है। ब्रोकली के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई.नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है।

पौधे का मुख्य गुच्छा लगभग 200—400 ग्राम तक होता है। और इसकी की कटाई के बाद दूसरी नई सखाओं से प्राप्त छोटे गुच्छे 100—150 ग्राम तक के होते हैं। इस प्रकार से 1 पौधे से लगभग 800—1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली किसान को प्राप्त होती है। ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160—180 क्विंटल उपज मिल जाती है।

बताते चलें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप डोनाल्ड ट्रंप को ब्रोकोली समोसा भी परोसा गया हैं सोशल मीडिया पर ये समोसा चर्चा में है ।

रिवर्स माइग्रेशन का उदाहरण बने पौड़ी के किसान सुधीर सुंद्रियाल कहते हैं कि स्थानीय लोग भरोसा करने को तैयार नहीं है कि इन बंजर खेतों में अब गोभीए ब्रोकोली के फूल दिख सकते हैं। पौड़ी के पोखड़ा और एकेश्वर ब्लॉक में कई किलोमीटर तक बंजर ही बंजर जमीन दिखती है। इस बंजर को आबाद करने की ताकत यहां के स्थानीय आदमी में नहीं है। इसलिए मौजूदा हालात में ये मॉडल जरूरी है।

​ये विदेशी सब्जियां भी हैं गुणों की खान

विदेशी सब्जियों में मुख्यतः एसपैरागस,परसले, ब्रुसल्स स्प्राउट, स्प्राउटिंग, ब्रोकली, लेट्यूस,सलाद स्विस चार्ड, लिक, पार्सनिप व लाल गोभी आदि प्रमुख हैं। ये सब्जियां कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से भी बचाव करती हैं। साथ ही शरीर में अंदरूनी घावों को भरने के लिए रामबाण का काम करती हैं।

इस कारण इन विदेशी सब्जियों की पैदावार पर विशेष ध्यान दिया जा रहा हैं। अधिक स्वादिष्ट होने के साथ.साथ ये सब्जियां अधिक गुणकारी व लाभदायक भी हैं। पांच सितारा होटलों और महानगरों में तो खासतौर से इनको काफी ऊँची कीमत मिल जाती हैं। पहले इन विदेशी सब्जियों को आयात करना पड़ता था लेकिन अब ये ठन्डे पहाड़ी क्षेत्रों में खूब उगाई जा रही हैं।

ऐसे प्रदेशों के किसान और सब्जी उत्पादक विदेशी सब्जियों को उगाकर अधिक धन कमा रहे हैं। एक ऐसी ही सब्जी है एसपैरागस। यह एक बहुवर्षीय विदेशी सब्जी है, जिसका ऊपर वाला भाग सर्दियों में सूख जाता है लेकिन जड़े जीवित रहती हैं।

पौधों की जड़ों में मुलायम तना निकलता है, जिसको स्पीयर्स कहते हैं। इसे सूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी सब्जी बनाकर भी खाया जाता है।

उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त के फसल उत्पादन कर देश.दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है।

अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है प्रदेश विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद को भी पेटेंट करवाया की जरूरत है

उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहीं, यहां के खान.पान में भी विविधता का समावेश है। ब्रोकली बहुत लोकप्रिय सब्जी नहीं है पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये गुणों का खजाना है।

लेखक उद्यान व अन्य क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुभव रखते हैं,वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

TAGGED: