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​ब्रिटिश अत्याचार की इंतिहा का गवाह है जलियांवाला बाग,100वी वर्षी पर शहीदों की शहादत को नमन

Newsdesk Uttranews
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डेस्क: ​ब्रितानी हुकूमत के अत्याचारों की इंतिहा को बयां करने वाला जालियांवाला बाग की घटना की आज 100वीं बरसी है।आज के ही दिन साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हजारों लोग मारे गए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के आंकड़ें में सिर्फ 379 की हत्या दर्ज की गई है। रॉलेज एक्ट का विरोध करने पहुंचे निहत्थे लोगों को बेरहमी से मौत की घाट उतारने की यह हत्याकांड ब्रिटिश भारत के इतिहास का काला अध्याय है।
99 साल पहले 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में मौजूद निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं, इस हत्याकांड में 1,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 1,500 से भी ज़्यादा घायल हुए थे, जिस दिन यह क्रूरतम घटना हुई, उस दिन बैसाखी थी,इसी निंदनीय हत्याकांड के बाद देश को ऊधम सिंह जैसा क्रांतिकारी मिला और भगत सिंह के दिलों में समेत कई युवाओं में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। जलियांवाला बाग हत्याकांड से जुड़ी कुछ खास बाते जो इस घटना के शहीदों को याद करने के साथ ही देश में क्रातिकारियों का तीर्थ बन चुके इस बाग के बारे में रोचक जानकारी देता है।
अमृतसर के प्रसिद्ध् स्वर्ण मंदिर,यानी गोल्डन टेंपल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे।
तब उस समय की ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया।
जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं, बताते हैं कि इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी यही नहीं जब सैनिकों की गोलियां खत्म हुई तभी उनके हाथ रुके।
इस क्षेत्र में कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है, यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का शिकार हो गए थे।
ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्मी हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए थे। जनरल डायर रॉलेट एक्ट का बहुत बड़ा समर्थक था, और उसे इसका विरोध मंज़ूर नहीं था, उसकी मंशा थी कि इस हत्याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश आंदोलित हो उठा। लेकिन देश में रॉलेट एक्ट को काला कानून बताया जा रहा था यह कानून भारत की ब्रिटानी सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रितानी सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर दे।
हत्याकांड की पूरी दुनिया में आलोचना हुई, आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया. कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया.
हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया, बाद में दबाव में ब्रिटिश सकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया, 1920 में डायर को इस्तीफा देना पड़ा.
21 वर्ष बाद जलियांवालाबाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए, वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया, उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
यह भी प्रमुख बात है कि जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को भीतर तक प्रभावित किया, बताया जाता है कि जब भगत सिंह को इस हत्याकांड की सूचना मिली तो वह अपने स्कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।

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