विकास के नाम पर पहाड़ी राज्यों से ‘ठगी’: सोनम वांगचुक का बड़ा आरोप, लद्दाख और उत्तराखंड के भविष्य पर जताई चिंता

Advertisements Advertisements देहरादून, 21 मई 2025: प्रख्यात वैज्ञानिक और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने पहाड़ी राज्यों में “विकास के नाम पर लोगों के साथ ठगी” का…

sonam wangchuk
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देहरादून, 21 मई 2025:

प्रख्यात वैज्ञानिक और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने पहाड़ी राज्यों में “विकास के नाम पर लोगों के साथ ठगी” का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जो विकास जनता से पूछ कर किया जाना चाहिए, वह अब कॉरपोरेट के दबाव में किया जा रहा है। वांगचुक ने इन राज्यों की जनता को इस कॉर्पोरेट-संचालित विकास को रोकने के लिए संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ने का आह्वान किया।

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वांगचुक ने ये बातें उत्तराखंड महिला मंच और उत्तराखंड इंसानियत मंच द्वारा शहीद स्मारक पर आयोजित एक विचार गोष्ठी में कहीं।

सामरिक महत्व और उपेक्षा का दर्द

सोनम वांगचुक ने सामरिक दृष्टि से भारत की तुलना चीन और पाकिस्तान से करते हुए कहा कि तीनों देश युद्ध के साजो-सामान में लगभग बराबर हैं, लेकिन भारत की स्थिति कहीं ज्यादा मजबूत है। उन्होंने भारत के लद्दाख और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के नागरिकों की देश के प्रति समर्पण भावना पर जोर दिया। इसके विपरीत, पाकिस्तान का बलूचिस्तान और चीन का तिब्बत हमेशा विद्रोह की स्थिति में रहते हैं। इसके बावजूद, वांगचुक ने चिंता जताई कि भारत सरकार लद्दाख और उत्तराखंड के इन्हीं समर्पित नागरिकों की उपेक्षा कर रही है, जो कि ठीक नहीं है।

धारा 370 और लद्दाख का ‘धोखा’

लद्दाख के अनुभवों को साझा करते हुए सोनम वांगचुक ने बताया कि जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई और लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाया, तो लद्दाख के लोगों को लगा कि इससे उनका विकास होगा। इसी उम्मीद में उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट भी दिया। लेकिन, उनके अनुसार, जब केंद्र शासित राज्य बनाने का जश्न खत्म हुआ, तब उन्हें पता चला कि यह लद्दाख के लोगों के साथ एक ‘धोखा’ था। अब इस क्षेत्र का कोई प्रतिनिधि लोकसभा या विधानसभा में नहीं होगा, जिससे स्थानीय आवाज कमजोर पड़ गई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह व्यवस्था संभवत: इसलिए की गई है ताकि कॉरपोरेट द्वारा संचालित परियोजनाएं स्थानीय लोगों की सहमति के बिना आसानी से बनाई जा सकें। वांगचुक का स्पष्ट कहना था कि उत्तराखंड सहित सभी पहाड़ी राज्यों में विकास कॉरपोरेट के दबाव में ही किया जा रहा है। यही वजह है कि लद्दाख की जनता अब ‘छठी अनुसूची’ में शामिल करने की मांग कर रही है, ताकि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना कोई भी बड़ी परियोजना लद्दाख में न बन सके।

पानी का संकट और 27 मई की अहम बैठक

पर्यावरणविद वांगचुक ने लद्दाख की दुर्गम भौगोलिक स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वहां के लोग दिन में सिर्फ 5 से 10 लीटर पानी इस्तेमाल करते हैं, जबकि शहरों से आने वाले लोगों को प्रतिदिन 200 से 500 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। वांगचुक ने चेतावनी दी कि लद्दाख इतनी बड़ी मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं करा पाएगा, जिससे भविष्य में तमाम विसंगतियां पैदा होंगी।

उन्होंने जानकारी दी कि इस संबंध में 27 मई को केंद्र सरकार के साथ उनकी एक महत्वपूर्ण बातचीत होनी है। वांगचुक ने स्पष्ट किया कि यदि यह बातचीत उनके पक्ष में नहीं हुई, तो लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा।

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उत्तराखंड में भी समान चुनौतियाँ

इस गोष्ठी में उत्तराखंड इंसानियत मंच के डॉ. रवि चोपड़ा ने भी लद्दाख और उत्तराखंड के बीच समानताओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि जो स्थितियां लद्दाख में हैं, कमोबेश वही स्थितियां उत्तराखंड में भी हैं। डॉ. चोपड़ा ने याद दिलाया कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन का साक्षी रहा है और उन्होंने घोषणा की कि लद्दाख के राज्य आंदोलन की लड़ाई में उत्तराखंड हमेशा उनके साथ खड़ा रहेगा।

उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत ने उत्तराखंड राज्य संघर्ष को याद करते हुए दुख व्यक्त किया कि जिस उद्देश्य के लिए इस राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी, वह आज भी पूरा नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड तमाम तरह की विसंगतियों से गुजर रहा है, राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर है। पंत ने यह भी चिंता जताई कि यहां की फिजा में सांप्रदायिक और क्षेत्रवाद का रंग घोला जा रहा है, जो इस राज्य के लिए बेहद खतरनाक साबित होने वाला है। कार्यक्रम के दौरान सतीश धौलाखंडी ने “नदी तू बहती रहना” जनगीत प्रस्तुत किया।

गोष्ठी में त्रिलोचन भट्ट, निर्मला बिष्ट, नंद नंदन पांडे, तुषार रावत, विजय भट्ट, रजिया बेग, हरिओम पाली, आरिफ खान, विजय नैथानी, हेमलता नेगी, सीमा नेगी, हिमांशु अरोड़ा, इला सिंह, हिमांशु चौहान सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।