पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच तनातनी की अटकलें चल रही हैं। इस बीच एक और कहानी सामने आ रही है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेतृत्व उत्तर प्रदेश का विभाजन कर अलग पूर्वांचल राज्य बनाने पर विचार कर रहा है। मामले पर बहस भी तेज हो गई है।
भाजपा हमेशा से छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय ही मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड और बिहार से अलग होकर झारखंड बना था। वहीं अब उत्तर प्रदेश से अलग होकर पूर्वांचल राज्य बनाने की अटकलें जारी हैं।
संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत अलग राज्य के गठन का अधिकार केंद्र सरकार को है। वह किसी भी राज्य का क्षेत्र बढ़ा या घटा सकती है। सीमाएं बदल सकती है। केंद्र सरकार राज्य का नाम भी बदल सकती है।
पहले विधानसभा नए राज्य के गठन का प्रस्ताव पास करती है। फिर इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भेजा जाता है। इस पर केंद्र कदम उठा सकता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा नवंबर, 2011 में राज्य के चार हिस्सों- बुंदेलखंड, पूर्वांचल, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में बंटवारे का प्रस्ताव पास कर चुकी है। यह राष्ट्रपति के पास से पहले ही गृह मंत्रालय तक पहुंच चुका है। सरकार फैसला ले, तो गृह मंत्री संसद में नए राज्य के गठन का प्रस्ताव पेश करते हैं। इसमें यह भी तय होता है कि नए राज्य में कितने जिले, विधानसभा और लोकसभा सीटें होंगी।
बता दें कि नवंबर, 2011 में तत्कालीन मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश को पूर्वाचल, बुंदेलखंड, पश्चिमी प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराकर केंद्र को भेजा था, लेकिन इस पर केंद्र की मुहर नहीं लगी थी। इस प्रस्ताव के मुताबिक, पूर्वांचल में 32, पश्चिम प्रदेश में 22, अवध प्रदेश में 14 और बुंदेलखण्ड में 7 जिले शामिल होने थे।
बता दें कि इसमें क्षेत्र के विधायक नए राज्य के विधायक होंगे। नए राज्य की प्रोविजनल विधानसभा होगी। स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव होगा। यहां बहुमत वाली पार्टी को सरकार बनाने का न्योता मिलेगा, जबकि यूपी की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 8 महीने बचा है।

