भारत में रोज स्कूल जाने वाले लाखों बच्चे ऐसी यूनिफॉर्म पहनते हैं , जिनका कपड़ा ज्यादातर पॉलीएस्टर होता है , यह वही फैब्रिक है जो पेट्रोलियम से तैयार होता है , और इसे चमक देने , दाग रोकने या सिकुड़न कम करने के लिए कई तरह के रसायन मिलाए जाते हैं , यही वजह है कि विशेषज्ञ अब बच्चों के स्वास्थ्य पर इनके असर को लेकर चिंता जता रहे हैं ।
हाल में सामने आए अध्ययनों में पता चला है कि कई स्कूल यूनिफॉर्म में ऐसे तत्व मौजूद हैं , जो लंबे समय में गंभीर दिक्कतें दे सकते हैं । अलग अलग टेस्ट में एजो डाई जैसे रंगों का इस्तेमाल पाया गया है , जो सस्ता रंग तो देते हैं , लेकिन त्वचा पर रैश और कैंसर के खतरे जैसे असर छोड़ सकते हैं । कुछ यूनिफॉर्म में पीएफएएस जैसे केमिकल भी मिले हैं , जिन्हें हमेशा रहने वाले केमिकल कहा जाता है , और ये पानी और दाग रोकने वाली परत चढ़ाने में इस्तेमाल होते हैं , इनका संबंध थायरॉयड और कैंसर जैसी बीमारियों से जोड़ा गया है । कई जगह नॉनिलफिनॉल भी पाया गया है , जो प्रोसेसिंग या डिटर्जेंट में इस्तेमाल होता है , और शरीर के हार्मोन बिगाड़ देता है । फॉर्मेल्डिहाइड भी कई बार मिल जाता है , यह वही रसायन है जिससे कपड़ा बिना सिकुड़न वाला दिखता है , लेकिन आंखों में जलन , सांस की परेशानी और कैंसर तक की आशंका खड़ी कर देता है । लोगो और बैज में फ्थेलेट और हैवी मेटल की मौजूदगी भी देखी गई है , जो बच्चों की किडनी , हार्मोन और सीखने की क्षमता पर बुरा असर डाल सकते हैं ।
यूरोप , कनाडा , जापान , फ्रांस और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने इन रसायनों पर सख्त रोक लगा दी है , वहीं भारत में 2025 के एक अध्ययन ने साफ किया कि हर तीसरी यूनिफॉर्म में अब भी एनपीई जैसे खतरनाक तत्व मौजूद हैं , यही नहीं ऐसे क्षेत्रों के पास बहने वाली नदियों में भी इनका असर दिखाई दे रहा है । विशेषज्ञ बताते हैं कि इनसे होने वाला नुकसान तुरंत दिखाई नहीं देता , यह धीरे धीरे असर करने वाला जहर है , जैसे धुआं या ज्यादा मीठा खाने का असर समय के साथ सामने आता है , यूरोप ने लंबी रिसर्च के बाद इन पर रोक लगाई थी , भारत इस दिशा में अभी काफी पीछे है ।
फिलहाल अभिभावकों के पास यही रास्ता है कि नए कपड़े को बच्चों को पहनाने से पहले दो तीन बार धोकर इस्तेमाल करें , दाग नहीं लगने वाले या बिना सिकुड़न वाले कपड़ों के टैग से दूरी बनाएं , जहां तक संभव हो सौ फीसदी कॉटन या हैंडलूम का कपड़ा चुनें , या फिर ऐसे फैब्रिक लें जो ओको टेक्स या जीओटीएस जैसी मान्यता रखते हों , साथ ही पीवीसी वाले प्रिंट से बचना बेहतर है , उसकी जगह कढ़ाई या सिलाई वाले बैज ज्यादा सुरक्षित होते हैं ।
सस्ते कपड़ों से बची रकम आज भले कम लगे , लेकिन आगे चलकर यही खर्च बच्चों की तबीयत , इलाज और प्रदूषित नदियों के रूप में कहीं ज्यादा होकर सामने आता है , इसलिए रोकथाम ही बेहतर रास्ता मानी जा रही है । बच्चों की यूनिफॉर्म सुरक्षित बनाने की मुहिम अब धीरे धीरे आवाज उठा रही है , और कई लोग चाहते हैं कि देश में ऐसी नीति बने जिससे हर बच्चा बिना किसी रसायनिक खतरे के स्कूल जा सके ।
