तन्वी द ग्रेट रिव्यू: हर इंसान को एक बार ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए, सिखा रही हिम्मत

कुछ फिल्में होती हैं जो पर्दे से उतरकर सीधा दिल में उतर जाती हैं। ‘तन्वी द ग्रेट’ वैसी ही फिल्म है। ये बस एक कहानी…

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कुछ फिल्में होती हैं जो पर्दे से उतरकर सीधा दिल में उतर जाती हैं। ‘तन्वी द ग्रेट’ वैसी ही फिल्म है। ये बस एक कहानी नहीं है, ये एक एहसास है। ऐसी फिल्में कम बनती हैं, लेकिन जब बनती हैं तो सिनेमा को उसका असली मतलब मिल जाता है।

ये फिल्म है एक ऐसी लड़की की, जो ऑटिज्म जैसी हालत से जूझ रही है। पिता फौज में थे, शहीद हो गए। दादा रिटायर्ड सैनिक हैं। लड़की को खुद के जूते के फीते बांधने तक नहीं आते, लेकिन फिर भी एक रात 2 बजकर 17 मिनट पर वो फैसला करती है कि उसे सेना में जाना है। क्यों जाना है, ये जानने के लिए आपको थिएटर जाना ही पड़ेगा।

फिल्म की शुरुआत से ही आंखें नम हो जाती हैं। जब लड़की अपने पापा से आखिरी बार बात करती है, वो पल सीधा दिल में चुभता है। फिर तो हर सीन में तन्वी की जिंदगी का हिस्सा बनते चले जाते हैं। इंटरवल भी ऐसा लगता है जैसे बीच में किसी ने धड़कन रोक दी हो।

ये फिल्म हौसला देती है। जिंदगी को दोबारा देखने का नजरिया देती है। फौज को सिर्फ ताकत का नाम नहीं बताती, बल्कि उसका दिल भी दिखाती है। हम सब जब बहाने बनाते हैं कि ये नहीं कर सकते, वो नहीं कर सकते, तब ये फिल्म सामने रखकर कहती है कि देखो, अगर मन हो तो कुछ भी मुमकिन है।

शुभांगी दत्त ने जो किरदार निभाया है, उसे देख लगता ही नहीं कि वो पहली बार कैमरे के सामने आई हैं। लगती ही नहीं कि कोई किरदार निभा रही हैं, लगती हैं जैसे खुद तन्वी ही हैं। अनुपम खेर ने दादा का रोल निभाया है, लेकिन इस बार एक्टर नहीं, डायरेक्टर के तौर पर उन्होंने ज्यादा बड़ा काम किया है।

बाकी कलाकारों में बोमन ईरानी हों या जैकी श्रॉफ, अरविंद स्वामी हों या इयान ग्लेन, सबने ऐसा काम किया है कि उनके बिना फिल्म अधूरी लगती। करण टैकर ने पिता के रोल में जान डाल दी है। छोटे से रोल में नसार भी दिल छू जाते हैं।

अनुपम खेर ने कहानी लिखी भी, फिल्म डायरेक्ट भी की और प्रोड्यूस भी। लेकिन उन्होंने अपने लिए नहीं, कहानी के लिए फिल्म बनाई। स्क्रीन पर जितना जरूरी था, उतना ही दिखे। बाकी जिम्मा कहानी पर छोड़ा और यहीं वो बाज़ी मार ले गए। कहानी और किरदारों को खुलकर सांस लेने दी, यही एक सच्चे डायरेक्टर की पहचान होती है।फिल्म का हर फ्रेम कहता है कि ये सिर्फ दिमाग से नहीं, दिल से बनी है।तो अगर दिल कुछ महसूस करना चाहता है, जिंदगी में एक नई आग चाहिए, तो ‘तन्वी द ग्रेट’ देखो। ये फिल्म सिर्फ देखी नहीं जाती, जी जाती है।