Uttarakhand- 529 पत्रों और कई बार मुख्यमंत्रियों से मुलाकात के बाद भी नहीं हुई उत्तराखंड की राजभाषा संस्कृत की सुनवाई

editor1
3 Min Read
uttra news special

देहरादून। उत्तराखंड में जिस संस्कृत भाषा को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, उसके शिक्षक भर्ती करने, स्कूलों की दशा सुधारने जैसे अनेक कामों के लिए उत्तराखंड शासन को भेजी गई 529 पत्र कहां गये, पत्रों पर क्या कार्यवाही हुई, कोई पता नहीं यह कहना है संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक संघ का। आज यह हालत है कि उत्तराखंड के 99% संस्कृत स्कूलों में प्रभारी प्राचार्य ही गेट खोल रहे हैं, घंटी बजा रहे हैं और पढ़ा भी रहे हैं। कई स्कूल तो बंद होने की कगार तक पहुंच गए हैं।

new-modern

उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा के 97 विद्यालय और महाविद्यालय संचालित हो रहे हैं। इनमें से 22 विद्यालय-महाविद्यालय ऐसे हैं, जिनमें एक भी सरकारी शिक्षक नहीं है। मजबूरी में व्यवस्था के तहत अल्प वेतनमान में शिक्षक रखे गए हैं। अधिकांश स्कूलों में शिक्षक ही प्राचार्य का दायित्व निभा रहे हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और लिपिक तक के पद खाली हैं। नतीजतन हर साल संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों की संख्या घट रही है।

संगठन के प्रदेश महामंत्री डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि संस्कृत शिक्षा के मेधावियों को बड़े स्तर पर सम्मानित करना तो दूर उन्हें छात्रवृत्ति, लैपटॉप, टैबलेट देने की बात तक कभी नहीं की गई। उल्टा अच्छे रिजल्ट की उम्मीद जरूर की जाती है। जब सुविधाएं ही बच्चों को नहीं दी जाएंगी तो सफलता की उम्मीद करना भी बेमानी है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामभूषण बिजल्वाण का कहना है कि संस्कृत शिक्षा और उससे जुड़े शिक्षकों की बेहतरी के लिए वे अब तक 21 बार मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर चुके हैं। सबसे पहले उन्होंने तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से 9 बार मुलाकात की। उनके बाद सीएम बने तीरथ सिंह रावत से 5 बार और अब के सीएम पुष्कर सिंह धामी से भी 9 बार मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं।

मामले पर डॉ.शिव प्रसाद खाली, निदेशक, संस्कृत शिक्षा, उत्तराखंड का कहना है कि उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा की नियमावली को अस्तित्व में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो कि अपने अंतिम चरण में है। इसके बाद इसे शासन के समक्ष रखा जाएगा। नियमावली लागू होते ही संस्कृत शिक्षा के शिक्षकों के प्रमोशन और नई नियुक्तियां की जाएंगी।