देश की मुद्रा व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अब दो रुपये, पांच रुपये और दो हजार रुपये के नोटों की छपाई बंद कर दी है। इस बदलाव का मकसद मुद्रा व्यवस्था को और मजबूत बनाना है। साथ ही डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना भी इसका अहम हिस्सा है। आरबीआई पहले ही दो हजार रुपये के नोटों को सिस्टम से धीरे धीरे हटाने की प्रक्रिया शुरू कर चुका था।
मार्च दो हजार पच्चीस तक कुल तीन लाख छप्पन हजार करोड़ के नोटों में से करीब अट्ठानबे फीसदी नोट बैंकिंग सिस्टम में लौट चुके हैं। अब यह नोट आम लोगों की जेबों से लगभग गायब हो चुके हैं। इस बीच पांच सौ रुपये के नोट सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। कुल चलन में इनकी संख्या करीब इकतालीस फीसदी है, वहीं मूल्य के हिसाब से देखें तो अकेला पांच सौ का नोट कुल कैश का छियासी फीसदी है।
सिर्फ नोटों की ही नहीं बल्कि सिक्कों के इस्तेमाल में भी आई है। मौजूदा साल में सिक्कों की संख्या में तीन दशमलव छह फीसदी और उनके कुल मूल्य में करीब दस फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।एक, दो और रुपये के सिक्के सबसे ज्यादा चलन में हैं। छोटे लेनदेन में इनकी अहम भूमिका है। दूसरी तरफ डिजिटल करेंसी यानी ई रुपये के इस्तेमाल में भी भारी उछाल आया है।
पिछले साल की तुलना में इसकी वैल्यू तीन सौ चौंतीस फीसदी बढ़ी है और अब यह एक हजार सोलह करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुकी है। इसमें डिजिटल पांच सौ रुपये की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। नकली नोटों की बात करें तो दस, बीस और दो हजार के नकली नोटों की संख्या में कमी आई है। लेकिन दो सौ और पांच सौ के नकली नोट पहले से ज्यादा पकड़े जा रहे हैं।
नोट छपाई का खर्च इस साल 6372 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया है। पुराने और गंदे नोटों को अब रिसाइकल कर फर्नीचर और पार्टिकल बोर्ड में बदला जाएगा। आरबीआई ने करेंसी प्रबंधन को और आधुनिक बनाने के लिए ‘स-मुद्रा’ नाम की नई योजना शुरू की है। इसमें नोटों की गिनती और ट्रैकिंग अब पूरी तरह डिजिटल होगी। इसके अलावा मनी ऐप और कॉइन मेला जैसी योजनाएं लोगों की सहूलियत और नकदी की आसान उपलब्धता के लिए चलाई जा रही हैं।
1 नवंबर दो हजार पच्चीस से बीआईएस सर्टिफाइड नोट सॉर्टिंग मशीनों का उपयोग भी जरूरी कर दिया गया है। माना जा रहा है कि ये सब कदम देश को एक कैशलेस इकोनॉमी की ओर ले जाने के लिए उठाए जा रहे हैं।