अल्मोड़ा: अल्मोड़ा जिले के कसून गांव निवासी रमेश बिष्ट शील मछली पालन के माध्यम से मोती का उत्पादन कर रहे हैं, उनके उत्साह को देख अब विभागीय स्तर पर सरकारी परियोजनाओं में कार्य कर रहे उपक्रम भी उन्हें मदद करने का मन बना रहे हैं।
इसी सन्दर्भ में विकासखंड हवालबाग के कसून में उद्यमी रमेश बिष्ट शील मछलियों का पालन कर उसके माध्यम से मोती उत्पादन कर रहे हैं। जिला परियोजना प्रबंधक ग्रामोत्थान रीप राजेश मठपाल ने बताया कि मुख्य विकास अधिकारी के दिशा निर्देशन सहायक प्रबंधक वैल्यू चैन, सहायक प्रबंधक लाइवलीहुड ग्रामोत्थान अल्मोड़ा, आजीविका समन्वयक ग्रामोत्थान ने ग्राम पंचायत कसून पातलीबगड़ के उद्यमी रमेश बिष्ट के मत्स्य तालाबों का निरीक्षण किया गया, श्री बिष्ट के द्वारा वर्तमान में 600 सील मछली के माध्यम से मोती उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। जिसमें उन्होंने बताया गया की प्रथम चरण में 600 सील मछली के द्वारा मोती उत्पादन का कार्य किया जा रहा है, यदि सफलता मिली तो इस कार्य को आगे बढ़ाने हेतु प्रयास किया जाएगा। साथ ही विकासखण्ड हवालबाग में समूह/सहकारिता के माध्यम से धामस क्षेत्र में सब्जी उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए सब्जी नर्सरी के लिए स्थलीय निरीक्षण भी किया गया।
उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा के विभिन्न विकासखण्डों में रीप/ग्रामोत्थान परियोजना कार्य कर रही है जिसमें परियोजना के माध्यम से अनेक प्रकार की कृषि एवं गैर कृषि आधारित गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है। उक्त गतिविधियों के संचालन हेतु विकासखण्ड स्तर पर अनेक एलसी/सीएलएफ/सहकारिताओं का गठिन किया गया है। उक्त स्वयं सहायता समूहों का गठन सहकारिताओं के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं द्वारा स्वैच्छिक रूप से किया जाता है। उक्त महिलाओं द्वारा स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए गतिविधि का चयन स्वयं किया जाता है। तथा उक्त चयनित गतिविधियों का संचालन महिलाओं द्वारा एकल गतिविधि या सामूहिक गतिविधि के रूप में किया जाता है। जिससे समूह की इन महिलाओं को प्रारम्भ में छोटी-छोटी परन्तु धीरे-धीरे प्रतिमाह अच्छी आय प्राप्त हो रही है स्वयं के खर्चे हेतु खुद सक्षम होती है। आज समूह की इन महिलाओं द्वारा उक्त गतिविधियों के माध्यम से अपना व अपने बच्चों की पढ़ाई व अन्य खर्चे स्वयं की मेहनत से ही किये जा रहे हैं।
इन गतिविधियों में ग्रामीण स्तर पर गौपालन (डेयरी व्यवसाय), मुर्गीपालन, सब्जी उत्पादन, दुधारू पशुओं हेतु चारा (साईलेज) तैयार करना, बीज उत्पादन एवं मछली पालन का कार्य किया जा रहा है। जिससे काश्तकारों को स्थानीय स्तर पर लाभ प्राप्त हो रहा है। उक्त गतिविधियों के सफलसंचालन हेतु परियोजना द्वारा वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाता है।
