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पिथौरागढ़ उपचुनाव : कम मतदान से कांटे का हुआ मुकाबला

Newsdesk Uttranews
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एकतरफा जीत से इतर जीत-हार का अंतर कम रहने का अनुमान


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कुन्डल सिंह

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पिथौरागढ़। पचास प्रतिशत का आंकड़ा भी नहीं छू सके मतदान प्रतिशत ने उपचुनाव की लड़ाई कोे रोचक बना दिया है। पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत के निधन से खाली हुई पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर सोमवार को मतदान हुआ। इस उपचुनाव मेें स्व. प्रकाश पंत की धर्मपत्नी चंद्रा पंत भाजपा उम्मीदवार हैं तो उनकेे मुकाबले कांग्रेस से पूर्व ब्लाॅक प्रमुख अंजू लुंठी तथा समाजवादी पार्टी से मनोज कुमार भट्ट मैदान में हैं।

वोटरोें में उत्साह की कमी सत्ताधारी दल के लिए नहीं है अच्छा संकेत

नामांकन के साथ ही पहले से मुख्य मुकाबला भाजपा तथा कांग्रेस प्रत्याशी के बीच माना तथा देखा जा रहा था। सोमवार को हुए उपचुनाव में वोटरों में उत्साह भी नदारद रहा। आम मतदाता घरों से बाहर वोट देने कम ही निकला। चौंकाने वाली बात यह रही कि नगर क्षेत्र में मतदाता वोट देने कम संख्या में पंहुचा। हां भाजपा और कांग्रेस जरूर अपने-अपने कैडर वोट को काफी हद तक बूथों तक लाने में कामयाब रहे, लेकिन आम मतदाता जिसे निर्णायक कहा जा सकता है मतदान में कम रुचि दिखाई। चुनावी राजनीति के जानकार सिर्फ 47.48 प्रतिशत तक पहुंचे कम मतदान को भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले केे रूप में देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि कम वोटिंग सत्ताधारी पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

पिथौरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में इन दिनों खेत-खलिहानों का कामकाज बचा हुआ है। ऐसेे मेें यह माना जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र का वोटर अपने रोजमर्रा के काम की व्यस्तता के कारण मतदान के लिए नहीं आ सका। दूसरी बात कोई भी उपचुनाव, आम चुनाव जैसा उत्साह भी वोटरों में पैदा नहीं कर पाता। मगर इस उपचुनाव में शहरी क्षेत्र के मतदाता ने भी उदासीनता दिखाई। नगर क्षेत्र में भी लगभग सभी बूथों पर सुबह से शाम तक मतदाताओं की लंबी कतार देखने को नहीं मिली। वोेटर तीन-चार या इससे भी कम संख्या में बूथोें पर आते-जातेे रहे। चूंकि मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस केे बीच माना जा रहा है, लेकिन पार्टियों के प्रत्याशी और दल वोटरों को मतदान केंद्र तक खींचने मेें असफल रहे। कम मतदान प्रतिशत कोे चुनाव मैदान में प्रभावशाली प्रत्याशी के न होने से भी जोड़ा जा रहा है, जो कि वोटरों में उम्मीद का नया संचार कर पाता। मतदान प्रतिशत कम रहने से कहा जा सकता है कि वोटरों को प्रत्याशी इस रूप में नहीं नजर आए कि वो उनके मुद्दों का उचित और जल्द समाधान कर पाएंगे।

50 प्रतिशत भी नहीं पहुंचें मतदान को भाजपा-कांग्रेस के बीच मानी जा रही टक्कर

वोटिंग कम होने को हाल में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इस उपचुनाव में बूथों तक युवा और बुजुर्ग वोटर कम ही संख्या में पहुंचे। अनेक बुजुर्ग जोे पंचायत चुनाव में बूथों तक पहुंचे थे, इस बार नहीं आए। इससे यह भी अंदाजा होता है कि मतदाता बार-बार होने वाले चुनावों से थक जाता है। और उसकी समस्याएं यदि ज्यूं की त्यों बनीं रहीं तो वह वोट देने में उकता जाता है और एक तरह से अपना रोष जाहिर करता है। बहरहाल मतदान का कम होना सत्ताधारी भाजपा के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। विश्लेषक इसे किसी की एकतरफा जीत से इतर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे के मुकाबले के तौर पर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि उपचुनाव में जीत चाहे किसी की हो, लेकिन जीत-हार का अंतर ज्यादा नहीं रहने वाला है।

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