उत्तराखंड का लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र इन दिनों चर्चा में है. वजह है यहां शुरू की गई एक खास पहल. दरअसल यहां उत्तर भारत की पहली गोंद प्रजाति की पौधशाला तैयार की गई है. जिसमें उन पेड़ों को उगाया जा रहा है जिनसे गोंद हासिल होता है. यह पूरा काम जैव विविधता को सहेजने और किसानों को नया विकल्प देने के मकसद से किया गया है.
इस काम की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. जब केंद्र में करीब 861 ऐसे पेड़ लगाए गए जो प्राकृतिक रूप से गोंद देते हैं. अब ये पेड़ लगभग तैयार हैं और जल्द ही इनसे गोंद निकालने का काम शुरू होगा. इसके साथ ही इनसे जो बीज मिलेंगे उन्हें दूसरी नर्सरी और जंगलों में रोपने की योजना है. ताकि गोंद देने वाले पेड़ों की संख्या बढ़ाई जा सके.
मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि इस पौधशाला से ना सिर्फ शोधार्थियों को फायदा होगा बल्कि किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा. किसान इन पेड़ों की जानकारी लेकर गोंद की खेती कर सकेंगे. जिससे उनकी आमदनी बढ़ेगी और वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे.
प्राकृतिक गोंद की मांग आज भी बाजार में बनी हुई है. इसका इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है. खाने के सामान में भी गोंद का उपयोग होता है. इसके अलावा पेंट और चिपकने वाले उत्पाद बनाने वाली कंपनियां भी इसका इस्तेमाल करती हैं.
लालकुआं केंद्र में जिन पेड़ों को लगाया गया है उनमें बबूल, ढाक, उदाल, कुंभी, झिंगन, बांकली, अकेसिया सेनेगल और आमड़ा जैसे पेड़ शामिल हैं. इन पेड़ों की छाल से गोंद निकाला जाता है. अब इन पेड़ों से गोंद निकालने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है.
वन अनुसंधान केंद्र की योजना है कि जंगलों में भी बड़े स्तर पर ऐसे पेड़ लगाए जाएं. ताकि प्राकृतिक गोंद का उत्पादन और बढ़ाया जा सके. साथ ही किसानों को जागरूक कर उन्हें भी गोंद वाले पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में गोंद की कीमत अच्छी खासी मिलती है. ऐसे में किसान इस दिशा में आगे बढ़कर अपनी आर्थिक हालत को बेहतर बना सकते हैं.