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जानें प्रसिद्ध नानकमत्ता साहिब को

Newsdesk Uttranews
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अमित जोशी टनकपुर। तेज हवा के झोंकों और हल्की-हल्की बारिश के बीच नानकसागर (Nanakmatta Sahib) के किनारे खड़े होकर उसमें उठती लहरों को देखना एक अलग अनुभव है। यह एक बेहद विशाल सागर है जहां तक नजर जाती है बस नीला पानी ही नजर आता है। इन तेज हवाओं में सागर से भी तेज लहरें हैं जो पानी को पूरे आवेग के साथ किनारों पर फेंक रही हैं। इन तेज लहरों में भी दूर कुछ बतखें अपने बच्चों के साथ खेलती हुई भी दिख रही हैं।
नानकमत्ता गुरुद्वारा साहिब भी इस सागर से थोड़ी ही दूर है इसलिये वहां न जाने का तो सवाल ही नहीं उठता सो कुछ समय नानक सागर के पास बिताने के बाद हम गुरुद्वारे की ओर चले गये। नानकमत्ता गुरुद्वारा उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में है जो कि सिखों का पवित्र व ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यहाँ हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह गुरुद्वारा उत्तराखण्ड में स्थित सिखों के तीन प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है। इस गुरुद्वारे के अलावा हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा और श्री रीठा साहिब गुरुद्वारा भी सिखों के पवित्र तीर्थ स्थानों में हैं। नानकसागर बाँध गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब के पास ही है इसलिये इसे नानक सागर के नाम से भी जाना जाता है। गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब के नाम से ही इस जगह का नाम नानकमत्ता पड़ा। वैसे तो यहाँ सभी धर्म के लोग आपसी प्रेम भाव के साथ रहते है पर यहां सिख धर्म के लोगों की संख्या औरों से ज्यादा है।
गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब का इतिहास-
नानकमत्ता का पुराना नाम सिद्धमत्ता है सिखों के प्रथम गुरू नानकदेव जी अपनी कैलाश यात्रा के दौरान यहाँ रुके थे और बाद में सिखों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब भी यहाँ आये। गुरू नानकदेव जी सन 1508 में अपनी तीसरी कैलाश यात्रा, जिसे तीसरी उदासी भी कहा जाता है, के समय रीठा साहिब से चलकर भाई मरदाना जी के साथ यहाँ रुके थे।
उन दिनों यहाँ जंगल हुआ करते थे और गुरू गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास था। गुरु शिष्य और गुरुकुल के चलन के कारण योगियों ने यहाँ गढ़ स्थापित किया हुआ था जिसका नाम गोरखमत्ता था. कहा जाता है कि यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। जब नानक देव यहाँ रुके तो उन्होने इसी पीपल के पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया. कहते हैं कि गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। यह सब देख कर रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी तूफान और बरसात शुरू कर दी। तेज तूफान और आँधी की वजह से पीपल का वृक्ष हवा में ऊपर को उठने लगा, यह देकर गुरू नानकदेव जी ने इस पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष यहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 10-12 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं. वर्तमान समय में इसे पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है कि गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के बाद सिद्धों ने इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया. सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तब वे यहाँ आये और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया। आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केशर के पीले निशान पाये जाते हैं।
गुरुद्वारे के अंदर एक सरोवर है, जिसमें अनेक श्रद्धालु स्नान करते है और फिर गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। कहते हैं गुरुनानक देव का आशीर्वाद सब श्रद्धालुओं को मिलता है और कोई भी यहां से खाली नहीं लौटता।

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नानकमत्ता का दीपावली मेला– नानकमत्ता साहिब के दर्शन के लिये पूरे साल में कभी भी जाया जा सकता है क्योंकि यहाँ का मौसम हमेशा अनुकूल ही रहता है पर यदि दीवाली के अवसर पर यहाँ जाया जाये तो उसका एक अलग ही आकर्षण है क्योंकि उस समय यहाँ हफ्ते भर मेला लगता है और देश भर से हजारों श्रद्धालु दीपावली मेले का आनन्द लेने के लिये यहाँ पहुँचते हैं और दर्शन करते हैं।
दीवाली की अमावस्या से यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. उस समय गुरुद्वारे व नगर की साज-सज्जा देखने लायक होती है। नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा में लगने वाला दीपावली का मेला इस क्षेत्र का विशालतम मेला माना जाता है। इन दिनों प्रतिदिन गुरुद्वारे में लंगर की व्यवस्था की जाती है।
इस मेले के दौरान यहां कई दुकानें भी लगती हैं जिनमें कई तरह के सामान बेचे जाते हैं इसके अलावा सरकस, मौत का कुंआ, कई तरह के झूले, जादू के खेल का आदि भी होते हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

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( गुरुनानक की सिद्धियों का प्रतीक है नानकमत्ता )
पर्यटकों के लिये आकर्षण

पर्यटक यहां पिकनिक मना सकते हैं और फिशिंग व बोटिंग का भी आनंद ले सकते हैं। इस गुरुद्वारे से थोड़ी सी दूरी पर पर्यटकों के लिए गुरुद्वारे के रेस्ट हॉउस में रहने की भी व्यवस्था है।
यह गुरुद्वारा बेहद शांत और साफ है इसके अंदर जाते ही मन बिल्कुल शांत हो जाता है क्योंकि किसी भी तरह का शोरगुल या सामान बेचने वालों का हंगामा या पूजा करवाने वालों की फौज खड़ी नहीं मिलती है। अगर कुछ होता है तो वो है गुरुद्वारे के अंदर लय में गाई जाने वाली गुरुबानी की धुन जिसे देर तक बैठ कर सुने बगैर वापस आने का मन नहीं होता वही आए दिन दर्शन के लिए पर्यटक का जत्था लगा रहता है।