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खास ख़बर : तो आखिर किस वजह से झूठ बोलने पर मजबूर हैं सांसद अनिल बलूनी 

Newsdesk Uttranews
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रामनगर से संजय मेहता की रिपोर्ट


रामनगर। उत्तराखंड की राजनीति में खासा महत्व रखने वाले और भाजपा के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी आजकल अपने कुछ बयानों को लेकर चर्चाओं में है। अपनी राजनैतिक जमीन बचाने के लिए अनिल बलूनी माननीय उच्च न्यायालय के कुछ आदेशों से अपना दामन छुडाते नजर आ रहे हैं।

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दरअसल नैनीताल उच्च न्यायालय में कार्बेट नेशनल पार्क के आसपास चल रही पर्यटन गतिविधियों को लेकर एक जनहित याचिका वर्ष 2012 में दायर की गई थी ।

कार्बेट पार्क के निकट वन एवं वानिकी के संरक्षण के साथ ही पर्यटन गतिविधियों के संचालन को नियंत्रित करने के लिए हिमालयन युवा ग्रामीण विकास संस्था ने वर्ष 2012 में एक जनहित याचिका दायर की थी जिस पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई प्रारंभ की।

लेकिन इसी बीच याचिका संख्या 6/12 में अनिल बलूनी ने हस्तक्षेप प्रार्थनापत्र देकर स्वयं को भी पक्षकार बनाने की बात कही थी। जिस पर माननीय न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए अनिल बलूनी को भी याचिका में सुनवाई के लिए सम्मिलित कर लिया । न्यायालय को दिए शपथपत्र में बलूनी ने वन गूजरों के विस्थापन, टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन और पूर्व में हिमालयन संस्था द्वारा दिए गए तर्को पर अपनी सहमति जताई थी।

इसी याचिका में वन्यजीवों के क्षेत्र में कार्य करने वाली गौरी मौलेखी समेत रामनगर के ढिकुली ग्राम सभा के अधिवक्ता धर्मेन्द्र बर्थवाल समेत कुछ अन्य पक्षकारों ने भी अपने पक्ष रखने की अनुमति मांगी थी। जिस पर न्यायालय ने पूूरे वाद को एक साथ सुनने की प्रक्रिया प्रारंभ की ।

न्यायालय ने अपने हालिया दिए फैसलों में पार्क में पर्यटन गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए सख्त निर्णय दिए हैं । जिसके बाद रामनगर में पर्यटन कारोबारियों में हडकंप मचा हुआ है । अब जनदबाब और आक्रोश का सामना कर रहे और वर्तमान में राज्यसभा सांसद अब याचिका से अपना पीछा छुडाते नजर आ रहे हैं।

बीते दिनों राज्य से प्रकाशित कुछ प्रमुख दैनिक अखबारों में सांसद अनिल बलूनी यह स्पष्टीकरण देते नजर आ रहे हैं कि उन्होंने इस तरह की याचिका नहीं की थी।  दरअसल अनिल बलूनी के इस तरह की प्रतिक्रिया के कई राजनैतिक मायने हैं ।

रामनगर के कार्बेट पार्क में जिप्सी संचालन और टूर आपरेटरो पर न्यायालय के निर्णयों का जो असर पडना माना जा रहा है उससे सांसद बलूनी के कई खास माने जाने वाले लोग प्रभावित हो रहे हैं । लेकिन उससे भी बडा सवाल है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी आ पडी कि सांसद बलूनी को एक याचिका पर अपने स्पष्टीकरण देने पड रहे हैं । साफ है कि भाजपा नेता रहते बलूनी ने पूर्व में याचिका दायर कर जिन बातों पर अंकुश लगाने की बात कही अब सांसद अनिल बलूनी रहते अपने सुर बदलना चाहते हैं ।

यह भी खास बात है कि तब क्योंकि केंद्र में कॉंग्रेस की सरकार थी इसलिए अनिल बलूनी ने न्यायालय से केंद्र सरकार को इस मामले में पक्षकार बनाने और बाघ संरक्षण के आदेश देने के लिए भी प्रार्थनापत्र दिया था। लेकिन यह दीगर बात है कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

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