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उत्तराखंड में संचालित 108 सेवा के खस्ताहाल व्यवस्था का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, न्यायालय ने राज्यसरकार और सेवा दे रही कंपनी को जारी किया नोटिस पढ़े पूरी खबर

Newsdesk Uttranews
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डेस्क— उत्तराखण्ड में खस्ताहाल हो रही 108 सेवा सुविधा को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अनु पन्त की याचिका पर न्यायालय ने सरकार और संचालनकर्ता कंपनी से दो सप्ताह में जबाब देने के लिए नोटिस जारी किया है।
अनु पंत ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका डाल आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा 108 के स्तर में आयी भयंकर गिरावट पर न्यायालय को अवगत कराया था। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2008 में उत्तराखंड ने कई राज्यों की तरह 108 स्वास्थ्य सेवा, आपातकाल स्वास्थ्य सहुलियतों के लिए शुरू की थी।यही नहीं प्रथम दस वर्ष में 10 हजार से अधिक बच्चों का जन्म एम्बुलेंस में हुआ था । वर्ष 2018 में नई कम्पनी कैम्प को 108 स्वास्थ्य सेवा का संचालन सौंप दिया गया। याचिका में मुख्य बात यह है कि, कैम्प कम्पनी ने नियमों को ताक पर रखकर आपातकालीन स्वास्थ सेवा चलाई गई, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों के खिलाफ है।
कहा गया है कि एम्बुलेंस में प्रशिक्षित आपातकाल तकनीकी स्टाफ की जगह अप्रशिक्षित कर्मचारी बैठे है। इन लोगों को तीन दिन के मौखिक प्रशिक्षण के बाद जीवनदायनी कार्य की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दे दी गई है।
कैम्प कम्पनी का अनुभव केवल शव वाहन चलाने का था साथ ही एम्बुलेंस के चालकों को भी, पहाड़ में वाहन चलाने के अनुभव कम था जिस कारण एक माह में ही 11 एक्सीडेंट्स सामने आ गए । याचिकाकर्ता ने कैम्प के निदेशक के उस सार्वजनिक कथन का भी संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने कहा की एम्बुलेंस जान बचाने के लिये नही केवल मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए है। अनु पंत ने न्यायालय को बताया कि एक प्रशिक्षित ईएमटी को बाहर कर दिया गया, जो दो माह से बिना काम के परेड ग्राउंड पर आंदोलन करने को विवश है । मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने सरकार से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है साथ ही 108 का संचालन कर रही कैम्प कम्पनी को भी नोटिस जारी किया है।