उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर बड़ा फैसला आया है। हाईकोर्ट में मंगलवार को चली सुनवाई के बाद ये साफ हो गया है कि चुनावी प्रक्रिया पर फिलहाल रोक बनी रहेगी। कोर्ट ने साफ किया है कि वो चुनाव कराने के खिलाफ नहीं है लेकिन ये प्रक्रिया संविधान और नियमों के हिसाब से होनी चाहिए। बुधवार को फिर से सुनवाई हुई और इस बार मामला करीब दो घंटे तक कोर्ट में चला। इसके बाद अदालत ने कहा कि अब अगली सुनवाई गुरुवार को होगी और तब तक रोक जारी रहेगी।
सरकार की तरफ से कोर्ट में ये कहा गया कि पिछड़े वर्गों को लेकर आयोग की रिपोर्ट के बाद आरक्षण वाला रोस्टर पूरी तरह से खत्म करना जरूरी हो गया था। नौ जून को इसको लेकर नियम बनाए गए और फिर चौदह जून को इसका नोटिफिकेशन भी कर दिया गया। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि पंचायत चुनावों में आरक्षण का रोस्टर तय करना जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 243 टी में इसकी व्यवस्था दी गई है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि राज्य में कितनी सीटों पर रोस्टर को दोहराया गया है और क्या ये पंचायत कानून और संविधान की व्यवस्था का उल्लंघन नहीं है। सरकार की तरफ से ये भी दलील दी गई कि कुछ लोगों की याचिका की वजह से पूरे राज्य का चुनाव नहीं रोका जा सकता। लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि प्रक्रिया नियमों के मुताबिक होनी चाहिए। अब अगली सुनवाई छब्बीस जून को होगी और तभी तय होगा कि आगे क्या होगा।
ये मामला बागेश्वर के रहने वाले गणेश कांडपाल समेत कई लोगों की याचिकाओं से जुड़ा है। उन्होंने सरकार की तरफ से नौ और ग्यारह जून को जारी किए गए नियमों को चुनौती दी है। उनके मुताबिक सरकार ने अब तक के पूरे आरक्षण सिस्टम को एक झटके में खत्म कर दिया और नया रोस्टर बनाकर उसे सीधे चुनाव में लागू कर दिया। जबकि कानून कहता है कि कोई भी नियम तभी से लागू होता है जब उसे गजट में छापा जाए। अब सवाल उठ रहा है कि चौदह जून को नोटिफिकेशन हो जाने के बाद भी सचिवालय और बाकी दफ्तरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी।
करीब पंद्रह और याचिकाएं भी एकलपीठ में लगी थीं जिन्हें अब खंडपीठ को सौंपा गया है। अब सबकी सुनवाई एक साथ होगी और इस बीच पूरे राज्य में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया ठप पड़ी रहेगी।
