गर्मियों का मौसम आते ही बाजार में लौकी और तोरई की भरमार हो जाती है। हर गली मोहल्ले की सब्जी की दुकान पर ये खूब बिकती हैं। वजह भी साफ है। ये दोनों सब्जियां हल्की होती हैं। पेट के लिए बढ़िया मानी जाती हैं। ऊपर से गर्मी में शरीर को ठंडक भी देती हैं। लेकिन अब जो सब्जियां मिल रही हैं। उनमें से कई में केमिकल की मिलावट की जा रही है। ताकि सब्जी जल्दी बड़ी हो जाए। देखने में भी चमकदार लगे। और ग्राहकों की नजर उसी पर जाए।
अब दिक्कत ये है कि देखने में लौकी और तोरई ताजा लगती हैं। लेकिन सेहत पर भारी पड़ सकती हैं। क्योंकि इनमें जो चमक होती है। वो नैचुरल नहीं होती। उन पर एक परत चढ़ाई जाती है। जो केमिकल से बनी होती है। यही परत धीरे धीरे शरीर के अंदर जाकर नुकसान करती है।
अगर आप सोच रहे हैं कि असली और नकली में फर्क कैसे करें। तो ये इतना मुश्किल भी नहीं है। खरीदते वक्त अगर सब्जी की स्किन जरूरत से ज्यादा चमकदार लगे। एकदम प्लास्टिक जैसी। तो समझ जाइए। इसमें कुछ तो गड़बड़ है। क्योंकि ताजा सब्जी दिखने में थोड़ी मटमैली होती है। उस पर हल्के फुल्के दाग धब्बे भी हो सकते हैं।
दूसरी बात। अगर लौकी या तोरई को हाथ लगाते ही चिपचिपापन महसूस हो। या कोई अजीब सी गंध आए। तो वह केमिकल की वजह से हो सकता है। असली सब्जी में न तो ऐसी चिपचिपाहट होती है। और न ही कोई केमिकल जैसी स्मेल आती है।
एक और तरीका है पहचान का। अगर कोई लौकी या तोरई चार पांच दिन तक वैसे की वैसी दिख रही हो। न मुरझाए। न नरम पड़े। तो समझ जाइए कि उसमें प्रिजर्वेटिव्स मिलाए गए हैं। जबकि असली सब्जी दो दिन में ही अपनी ताजगी खोने लगती है।
जब आप लौकी या तोरई छीलते हैं। तो भी थोड़ा गौर कीजिए। अगर बाहर का रंग बहुत गहरा हरा हो। और अंदर का हिस्सा एकदम सफेद या स्पंज जैसा दिखे। तो यह शक की बात हो सकती है। क्योंकि केमिकल वाली सब्जियों में बाहर और अंदर का रंग अलग अलग होता है।
आखिरी तरीका। सब्जी को पकाने से पहले अगर आप उसे साफ पानी में कुछ मिनट भिगो कर रखें। और पानी का रंग हल्का बदल जाए। या ऊपर कोई तेल जैसा लेयर तैरता नजर आए। तो यह साफ इशारा है कि सब्जी पर केमिकल की परत चढ़ी हुई है।
ऐसे वक्त में जब हर कोई हेल्दी खाना चाहता है। तो जरूरी है कि सब्जी खरीदते वक्त थोड़ी सावधानी बरती जाए। ताकि सेहतमंद दिखने वाली सब्जियां सेहत को नुकसान न पहुंचा सकें।