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ग्राउंड रिपोर्ट : इस गांव के लोगों को है योजनाओं की दरकार

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हालात: फोर्ती गांव के आधे दर्जन से ज्यादा परिवार आज भी खुले में शौच को मजबूर

ललित मोहन गहतोड़ी
चंपावत। एक ओर जहां सरकार देश में संपूर्ण स्वच्छता को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है। वहीं दूसरी अभी भी बाजार के समीपस्थ एक गांव ऐसा है जहां आज भी लोग खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। इस रिपोर्ट को जांचने में बस एक ही दिक्कत सामने थी वह यह कि अलसुबह इस गांव तक कैसे पहुंचा जाय। मेरी हसरत मेरे एक मित्र ने पूरी कर दी जो उसी गांव के आसपास रहता है। उसने एक रात के लिए मुझे अपने घर में आमंत्रित किया, ताकि दूसरे दिन सूरज उगने से पहले मैं उक्त गांव तक जल्दी पहुंचकर मिली जानकारी पुख्ता कर सकूं।
लोहाघाट विकास खंड के नगर से लगे ग्राम फोर्ती के वार्ड नंबर चार के लोगों को शौचालय के लिए दिशा जंगल की ओर भटकना पड़ रहा है। गांव में पिछले कुछ वर्षों में जो शौचालय मिले वह भी पिछली आंधी में क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। शौचालय विहीन ग्रामीण आज भी दिशा जंगल के लिए सुबह सुबह भटकने को मजबूर हैं।
लोहाघाट मायावती सड़क में पांच किलोमीटर की दूरी पर फोर्ती गांव स्थित है। इस गांव से कई बड़ी बड़ी हस्तियां देश सेवा में अपना योगदान दे रही हैं। गांव की अर्थव्यवस्था स्थानीय उत्पादों की अच्छी पैदावार के चलते खेतीहर है। लेकिन गांव के हालात अभी भी नहीं जस के तस बने हुए हैं। बड़ी समस्या यह है कि यहां आज भी कुछ परिवारों को अल सुबह दिशा जंगल के लिए भटकना पड़ रहा है। धन की कमी के चलते इन परिवारों के सामने आज के समय में भी शौचालय विहीन जीवन जीने की मजबूरी है। जबकि देश में संपूर्ण स्वच्छता को लेकर कमर कसी जा रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि कुछ साल पहले उन्हें शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से 12 हजार रुपये की सहायता धनराशि दी गई थी। जिससे उन्होंने अपने घरों के पास टिन शैड वाले शौचालयों का निर्माण कराया भी था। लेकिन पिछले वर्ष की आंधी से क्षतिग्रस्त यह शौचालय अब उनके किसी काम नहीं रहे। और रिपेयरिंग के लिये आपदा मद से उन्हें एक ढेला तक नसीब नहीं हुआ है। इन परिवारों के पास इतनी जमा पूंजी नहीं कि दोबारा से इन क्षतिग्रस्त शौचालयों को ठीक करा सकें। ग्रामीणों की ओर से अनेक बार ग्राम पंचायत के माध्यम से शासन प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है। पर आज तक इन क्षत विक्षत शौचालयों को ठीक नहीं कराया जा सका है। इस सबके चलते यह कहा जा सकता है कि कागजों में भले ही देश में लाख संपूर्ण स्वच्छता के दावे कर लिये जाए लेकिन धरातल में अभी भी इस दिशा में बहुत ज्यादा ठोस काम किये जाने की और बहुत ज्यादा आवश्यकता है।
गांव में अभी भी जीर्ण-शीर्ण और टिन सेटों के मकानों में रह रहे लोगों के लिये गरीबी अभिशाप बनकर रह गई है।
गांव के कुछेक परिवार अभी भी पुस्तैनी जीर्ण-शीर्ण और टिन शैडो में जीवन गुजर बसर कर रहे हैं। इन पुराने मकानों का किसी भी समय भर-भराकर गिरने का अंदेशा है। इसके चलते ग्रामीण असमय होने वाली अनहोनी से भयभीत हैं। गांव के आंतरिक हिस्सा उबड़-खाबड़ रास्तों में तब्दील है। ग्रामीणों का कहना है कि जहां रहने के लिए बनी झोपड़ी की छतों में छेद पड़े हों, टूटे फ़ूटे मकानों और टिन की छतों का सहारा है वहां शौचालय की बात सोचना भी दूर की बात है। इस व्यस्था के चलते गरीबी इन परिवारों के लिए अभिशाप बनकर रह गई है। 

फोर्ती के नीरज और हेम का परिवार अभी भी हैं योजनाओं से वंचित

इसी गांव में रहने वाले नीरज का परिवार पुस्तैनी जीर्ण-शीर्ण मकान में  रह रहा है। इसी गांव के हेम का परिवार अभी भी टिन के बने छप्पर में शरण लिए हुए है। माता-पिता के देहांत के बाद से  बेसहारा यह युवक नीरज एक अदद आवास सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हैं। जबकि गांव के ग्राम प्रधान भगवती प्रसाद कहते हैं कि उनके द्वारा गांव के सभी पात्र लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिए गए हैं।

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