गौरी लंकेश की शहादत दिवस पर विशेष

Newsdesk Uttranews
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प्रसिद् पत्रकार गौरी लंकेश को आज ही के दिन गोली मारकर हत्या कर दी गयी गयी। उनके शहादत दिवस पर हमे उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के देघाट से डॉ नवीन जोशी ने यह लेख भेजा है। डॉ नवीन जाने माने शिक्षक है और समसामयिक मुददो और शिक्षा पर इनके कई आलेख प्रकाशित हुए है।
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         -:-संपादक मंडल उत्तरा न्यूज -:-
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इतिहास बनता सच………….. 

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यह बात आज के भारत के लिए बहुत दुखद है कि विश्व में मानवाधिकार और पत्रकारिता क्षेत्र में सबसे अधिक जानें हमारे देश में जा रही हैं। एक आंकडे के अनुसार देश में पूरे विश्व में पत्रकारों की हत्या के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। यह और भी दुखद है कि जिस देश में महिलाओं को देवी की तरह घर-घर पूजा जाता है। उस देश में एक महिला को मारने के बाद किसी को रोष नहीं अपितु हर्ष होता हो, तो उस समाज पर प्रश्न चिन्ह लगना निश्चित ही दुर्भाग्य पूर्ण है। जबकि वह महिला समाज में जनता के दुखों को लेकर हमेशा से संवेदनशील रही हो। आज इस लेख से हम कोशिश कर रहे हैं।

ऐसी शख्स शहीद गौरी लंकेश के बारे में जानने की, वास्तव में गौरी लंकेश ने हमारे समाज के लिए क्या किया?क्यों उन जैसे प्रगतिशील लोगों को मारा जा रहा है? और उन्होंने मरने के बाद इतनी ख्याति प्राप्त कर ली कि आज उनसे अपरिचित लोग भी उनके बारे में जानना चाहते हैं। उनके विचारों से कुछ लोग सहमत नहीं हों परन्तु आवश्यक है कि उनके विचारों को जानना वे ऐसा क्या कर रही थीं ? कि उनकी हत्या कर दी गई। जो भी हुआ वह एक ऐसी अमानवीय घटना है जिसके कारण आज समाज बहुत दुखी है। इस दुख को हम कैसे प्रेरणा का स्रोत बना सकें लेखक की यही कोशिश है कि हम संक्षिप्त में गौरी लंकेश को जान व समझ सकें। यही उनको हमारी श्रद्धांजलि होगी।

29 जनवरी 1962 कर्नाटक में एक लिंगायत परिवार में गौरी लंकेश का जन्म हुआ। पिता पी लंकेश एक जानेमाने कन्नड लेखक, कवि, पत्रकार और फिल्म निर्माता थे। कई फिल्मों ने उन्हें बड़ेबड़े पुरस्कार भी दिलाए। गौरी लंकेश अपने माता पिता की तीन संतान में से एक थीं। जिनमें गौरी बड़ी, कविता और छोटा भाई इन्द्रजीत हैं। कविता फिल्मी दुनिया मेंहैं। भाई और गौरी लंकेश पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने लगे। परिवार से अच्छी स्थिति में होने पर अच्छे ज्ञान और अच्छी शिक्षा का पर्याप्त मौका उन्हें मिला जिससे गौरी लंकेश ने दुनिया भर के ज्ञान विज्ञान, इतिहास, भूगोल, वाणिज्य व पत्रकारिता पर अच्छी पकड बना ली। इसी के चलते वे मार्क्सवादी साहित्य की ओर बढ़ीं और बहुत गहन अध्ययन करके पत्रकारिता क्षेत्र में एक नामी-गिरामी नाम बन गईं। मानवतावादी सोच एवं गहन अध्ययेता के चलते वे अनेक पत्र पत्रिकाओं संस्थाओं से जुडती रहीं। पहले पहल उन्होंने टाइम्स आफ इंडिया में पत्रकारिता आरम्भ की। चिदानन्द राजभटट से विवाह करके कुछ वर्ष दिल्ली रहीं। उसके बाद नौ साल तक बेगलुरू में संडे मैग्जीन में संवादाता के रूप में काम किया। कन्नड़ भाषा के लिए उनके दिल में अपार श्रद्धा थी वे जमीन से जुड़ी व्यक्तित्व थी अपनी मातृभाषा के लिए काम करने का उनका मन बना और वे कन्नड़ भाषा के उत्थान के लिए काम करने लगीं। इसी मध्य वे दिल्ली आ कर इनडु तेलगु चैनल के लिए काम करने लगी। पिता अपनी एक पत्रिका ‘‘लंकेश पत्रिके‘‘ निकाल कर काम करते थे। जो पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत उच्च नाम थी। 2000 में पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई जिस कारण से पत्रिका का सम्पादन गौरी और भाई इन्द्रजीत ने सम्भाला। दोनों के सम्मलित प्रयास से पत्रिका सही चल रही थी। लेकिन 2001 में ही दोनों में पत्रिका की विचारधारा को लेकर मतभेद हो गए। गौरी के भाई ने गौरी लंकेश पर नक्सलियों के प्रति सहानुभूति पूर्ण लेख लिखने का आरोप लगाया। इन्द्रजीत और गौरी लंकेश इस बात से और अन्य कार्य प्रणाली के कारण 2005 में अलग हो गए।

विचारधारा से समझौता गौरी लंकेश को बर्दाश्त नहीं था। गौरी लंकेश आरम्भ से ही मावनीय पक्षों पर जीवित रहने वाली जुझारू महिला थी। गरीब, बेसहारा, लाचार जनता के पक्ष में लिखना ही उनका ध्येय था। वे अक्सर ग्रामीण अंचलों में जा कर गरीब लोगों, मजदूर जनता से रूबरू हो कर घुल मिल जातीं थी। उनके प्रति भी लोग अपार श्रद्धा रखते थे। अपने लिंगायत समुदाय में भी उनको पर्याप्त सम्मान मिलता था। उनकी कलम की मार जनता के पक्ष में और सरमायेदारों के विरूद्ध रहती थी। अनेक आंदोलनों में आगाज और सिरकत करना उनके कार्यभर में एक था। 2005 के बाद गौरी लंकेश ने अपने उद्वेश्य को ध्यान में रखते हुए कन्नड़ भाषा की उन्नित के लिए ‘‘ गौरी लंकेश‘‘ पत्रिका का सम्पादन करना आरम्भ कर दिया। यह एक सप्ताहिक अखबार था जिसका सम्पादन वे स्वयं करती थीं। दक्षिणपंथी फिरकापरस्त लोगों व विचारधारा के खिलाफ अपने पत्र में जमकर लिखती थीं।

विचारधारा के नाम पर वे मानवतावादी लिबरल सोच की विचारधारात्मक महिला थी जिसके मन में गरीब, दमिति, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों मुस्लिमों व महिलाओं के प्रति अपार स्नेह था। एक धर्म विशेष के प्रति बनाए जा रहे माहौल से वे बहुत विचलित रहती थीं। उनके लेख अकसर भाईचारे अमन के लिए होते थे। वे दक्षिणपंथी व फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ लिखती और बोलती थी।

कुछ वर्षों से एक ही विचारधारा की सरकार देश में छा गई थीं जिसके चलते असहिषुणता देश में फैलने लगी। एमएम कुलबर्गी जैसे लिबरल की हत्या, डा दाभोलकर की हत्या, पानसरे की हत्या में भी एक विचारधारा के लोगों की कटटरपंथी सोच काम कर रही थी। इन दक्षिणपंथी फिरकापरस्त ताकतों के चलते गौरी लंकेश के लेख हमेशा वैज्ञानिक चेतना पर और हिन्दु मुस्लिम एकता व समाजवाद पर केन्द्रित रहते थे। वे सत्ता पक्ष के कुप्रचार का भी कड़ा विरोध करती थीं। सत्ता की शक्ति के केन्द्रियकरण के विरूद्ध व विकेन्द्रियकरण के लिए हमेशा वैचारिक द्वन्द चलाती थी। वे सीधे सीधे देश के प्रधानमंत्री पर भी टिप्पणी कर देतीं थीं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री के अगस्त के भाषण पर उनकी टिप्पणी ‘‘बूसी बसिया‘‘ प्रधानमंत्री मोदी जी को दिया नाम (कन्नड, जिसका हिन्दी अर्थ होता है कि जब भी मुह खोलेगा झूठ ही बोलेगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ था। इस कारण सरकार प्ररस्त कुछ भक्त उनके पीछे भी पड़े रहे, गौरी लंकेश के लिए टविट्र और फेसबुक तमाम सोसियल मीडिया पर भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। उनकी हत्या का कारण दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ और सरकार के विरूद्ध लिखने को ही माना जा रहा है। अभी हाल ही में उनके हत्यारे ने यह बात कबूली भी है। क्यांकि गौरी लंकेश उनके धर्म के खिलाफ बोलती थी इसलिए उनकी हत्या करनी पड़ी। गौरी लंकेश की हत्या के बाद तमाम ट्यूटर फेसबुक तमाम सोसियल मीडिया पर खासा विचारधारा के लोगों की बात से ही अनुमान लगाया जा सकता हैं कि गौरी लंकेश के प्रति उन लोंगों में कितनी नफरत भर चुकी थी। जिस कारण उनकी हत्या कर दी गई।

महिला सशक्तिकरण पर गौरी लंकेश एक व्यावहारिक कार्यकर्ता थीं जो उनके काम में, लेख में नजर आता है। विचारधारा के धरातल पर वे बहुत सशक्त थी जिस कारण उन्होंने अपने पारिवारिक रिश्तों को भी अहमियत नहीं दी। वे अपने बड़े परिवार व पिता के स्तर के अनुसार भी बहुत कुछ हासिल कर सकती थीं किन्तु वे इस सब से ऊपर उठ चुकीं थी। उनका कार्य क्षेत्र ईमानदार पत्रकारिता को करना था। जीवन की निजी कठिनाईयों को झेलते हुए। मात्र 55 वर्ष की महिला शहीद होने पर अपने जैसे अनगिनत महिलाओं को लड़ने को आवाज दे गईं।

महान संत बसन्ना का जीवन उनके लिए बहुत प्रेरणा का स्रोत रहा । वे लिंगायत समुदाय में पैदा हुई थीं और इस समुदाय को हिन्दु धर्म से एक अलग धर्म विचार मानती थी। इस कारण भी हिन्दु धर्म के तथाकथित मठाधीश उनकी जान के पीछे पड गए थे। वे गणेश चतुर्थी पर दक्षिणपंथी कटटरपंथियों के द्वारा किए हमले की साजिश के विरूद्ध हिन्दु मुस्लिम एकता को बनाए रखने के प्रयास कर रही थी। जिसे दक्षिणपंथी फिरकापरस्त ताकतें दंगें में बदल कर सत्ता के लिए वोटों का केन्द्रियकरण करना चाहते थे। इस सब के खिलाफ गौरी लंकेश अपनी पत्रिका में भी लिख रहीं थी। लोगों को सदभावना भाईचारा सीखा रही थी जिसे दक्षिणपंथी ताकत कतई बदार्शत नहीं कर रहे थे। हिन्दु धर्म के तथाकथित अपमान के लिए गौरी लंकेश पर कई अदालतों में मानहानी के मुकदमें, केस चल रहे थे। वहीं भ्रष्टाचार के विरूद्ध कई सांसदों के भी धमकी भरे फोन और मैसेज उन्हें आए दिन मिलते रहते थे। पत्रकार होने के नाते उन्हें क्या कुछ नहीं सहना पड़ा होगा, आज उनके शहीद होने के बाद उनके प्रति फैली दक्षिणपंथी नफरत सब बया करती हैं। वे कितनी सक्रियता से मानवीय पक्ष के प्रति काम कर रही थीं। यह बेमतलब की घृणा दिखाती ही है। भाई चारे, ईमानदार कार्य प्रणाली, महिला, आदिवासी हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रति गौरी लंकेश का महान कार्य आज के सामंती जड़ लोगों के कैसे अच्छे लग सकते थे। दक्षिणपंथी पुराने समाज के तरीके की तरह बर्बर समझ को बनाए रखनाचाहते हैं। फिरकापरस्त अपने कुकृर्त कटटरपन के कारण आज भी देश को मध्यकालीन पिछड़े युग में ले जाना चाहते हैं। वैज्ञानिक अविष्कारों के होने के बाबजूद आंखें बंद करके पुरानी परम्परा के नाम पर धर्म को स्थापित करना चाते हैं जो असल में अधर्म का राज है। आज हम लोकतंत्र में जी रहे हैं जहां समानता भाईचारे और समान अवसर की बात की जा रही है। समाजवाद के प्रथम चरण में नवजनवाद की एक सीढ़ी पर चढ़ कर दुनिया के तमाम प्रगतिशील देश दुनिया व समाज को बदलने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं। प्रगतिशील युग ऐसे युग को गले लगाने को लालायित हो रहा है। इस महान मानवता प्रेमी सोच में आज भी हम पुरानी रीति रिवाज के चलते वैज्ञानिकता को दर किनारा कर दें तो यह अंधे युग में ही जीना हुआ। ऐसे महान विचार के लिए गौरी लंकेश ने अपना सारा जीवन लगा कर बलिदान कर दिया। महिला, दमित, दलित, आदिवासी, मुस्लिमों और अपने लिंगायत समुदाय के प्रति महान समर्पण करके युग प्रवर्तक के रूप में 5 सिम्बर 2017 की सायं को हत्यारों की गोली का शिकार हो कर हमेशा-हमेशा के लिए अमर शहीद हो गईं। उनके कार्य हमेशा देश दुनिया को प्रेरण देते रहेंगे। जनता में भाईचारा, गरीब की लड़ाई, आदिवासी की लड़ाई, प्रगतिशील सामाज की लड़ाई, को हमेशा ही प्ररेणा देगे ताकि आने वाले युग को और बेहतर मानवतावादी युग बनाया जा सके।

“हर किसी के इतिहास में, नहीं मिलते अवशेष“
“शहीद हो कर भी जिंदा हो, साथी गौरी लंकेश“

डा नवीन जोशी
जोशी साहित्य सदन, देघाट, अल्मोड़ा

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