अल्मोड़ा के कई गांवों में भी होगी वन हल्दी(Forest Turmeric)की खेती काश्तकार होंगे लाभांन्वित


आयुर्वेद में शटी (या ‘शठी’) को कटु, तिक्त, उष्णवीर्य एवं मुख के वैरस्य, मल एवं दुर्गध को नष्ट करनेवाली और वमन, कास-श्वास, घ्राण, शूल, हिक्का और ज्वर में उपयोगी माना गया है। इसकी जड़ों में मुख्य रसायनिक तत्व सिरोस्टीरोल तथा ग्लूकोसाइड पाए जाते हैं। यह पदार्थ क्षयरोग, खांसी, पेचिस, उल्टी, सिरदर्द और चर्मरोगों में लाभकारी होता है। इसके अलावा अन्य रोगों के लिए भी वन हल्दी(Forest Turmeric) को रामबाण माना जाता है। इसके तेल में साइनियोल, टर्पोनिन, लिमीनीन डी सेनिनीन जैसे रसायनिक तत्व मिलते हैं।
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अमेरिका के औषधि संघ ने अपने चिकित्सकों और औषधि विशेषज्ञों को आयुर्वेद की पद्धति अपनाने की अनुमति दे दी है। पश्चिनमी देशों के नागरिक अब जीवन का यथार्थ ढूंढने में लगे हैं और वैदिक पद्धति से ज्ञान की यथार्थता को समक्षने का प्रयास करने लगे हैं।
बीते साल भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया कि पौड़ी गढ़वाल के वीरान गांवों में जंगली जानवरों की आबादी बढ़ रही है और खाली मकानों में तेंदुए बसने लगे हैं। यहां उनके छिपने के लिए मुफीद जंगली घास उग आई है और उसे हटाने के लिए कोई नहीं है। आज इन गांवों की सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने के लिए कोई नहीं बचा है।
वहीं कई गांवों में इतने कम लोग हैं कि वहां नेपाली आकर खेती कर रहे हैं। उनकी बदौलत वो गांव आबाद हैं। पिथौरागढ़ जिले में चीन सीमा से लगे गांव खाली होना भी चिंताजनक है। आज पहाड़ का पानी और जवानी दोनों ही उसके काम नहीं आ रही है। उत्तराखण्ड अनइंप्लायमेंट फोरम में 9 लाख रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं जबकि गैरपंजीकृतों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
पहाड़ के अधिकतर युवा सुबह 4 बजे दौड़ लगाते दिख जाते हैं क्योंकि वे आज भी रोजगार के लिए सेना की भर्ती पर निर्भर हैं। पहाड़ की जवानी को पलायन से रोकना है तो सरकार को पर्वतीय इलाकों में भी रोजगार पैदा करने होंगे। इसके लिए सरकार पहाड़ की कुदरती खूबसूरती की मदद ले सकती है। यहां के ऊंचे पर्वत, कल-कल करती नदियां और हरे-भरे बुग्याल पर्यटन और एडवेंचर का जरिया बन सकते हैं। कुछ खाली हो चुके घरों को खरीदकर उन्हें होम स्टे में तब्दील किया जा सकता है, जहां पर्यटकों को रहने में पहाड़ी जीवन-शैली का अनुभव हो। यहां के फल-फूल और औषधियों को भी बढ़ावा देकर जॉब पैदा की जा सकती है। हालांकि मौजूदा बीजेपी सरकार ने रिवर्स पलायन को लेकर पलायन आयोग का गठन किया था. सरकार आवा आपणु घौर ( अपने घर आओ ) की अपील भी कर रही है।
राज्य सरकार की कोशिशों से ये फूलों की खेती से अब राज्य के कई हिस्से गुलजार होने लगे हैं, जिससे किसानों को सीधे तौर पर रोजगार का एक नया विकल्प भी मिला है। लेकिन वर्तमान में अज्ञानतावश यह प्रजातियां या तो पशु चारे अथवा ईंधन के रूप में उपयोग की था।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं.

