उत्तरा न्यूज़ विशेष- संस्कृति संरक्षण की एक कोशिश है होली की पुस्तक ‘फाल्गुनी फुहारें’

Newsdesk Uttranews
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हमारी प्राचीन धरोहर के रूप में होली का बड़ा महत्त्व रहा है। हमारी पहचान, हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हैं जिसकी सहायता से हम दूर देश में भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक त्योहार है होली; रंगों की होली, ठिठोली की होली, हास परिहास की होली, सामुहिक मिलन की होली। इस बार की होलियों में काली कुमाऊं के एक लेखक का होली संग्रह “फाल्गुनी फुहारें” नाम से बाजार में उपलब्ध है।

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फाल्गुनी फुहारें नाम से निकल रही सांस्कृतिक पुस्तक फाल्गुनी फुहारें का यह तीसरा अंक भजन फुहारें नाम से नवल प्रिंटर्स अल्मोड़ा से प्रकाशित हो चुका है। काली कुमाऊं चम्पावत के लोहाघाट से निकलने वाली होली की पुस्तक फाल्गुनी फुहारें का तीसरा अंक भजन फुहारें में विभिन्न राग रंगनी, भजन और खड़ी होलियों का संकलन किया गया है। कुछ होलियां पुस्तक लेखक द्वारा स्वरचित हैं। पुस्तक में विभिन्न अवसरों पर आयोजित होने वाली रात्रि बैठकों के भजन, चुनिंदा प्रचलित राग और खड़ी होली का संकलन बेहद सराहनीय है।

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पुस्तक के लेखक, प्रकाशक और उत्तरा न्यूज से जुड़े पत्रकार ललित मोहन गहतोड़ी ने बताया कि उन्हें आगे भी मौका मिला तो वह कुमाऊं के प्रत्येक गांव और क्षेत्र भ्रमण करते हुए इसी तरह से संकलन इकट्ठा कर अपने पाठकों के सम्मुख प्रकाशित करते रहेंगे। उत्तरा न्यूज से एक भेंटवार्ता में उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के दौर में पुस्तक प्रकाशित करना एक चुनौती भरा कदम है लेकिन उन्हें अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए हर चुनौती स्वीकार है और वह तन मन और धन से संस्कृति संरक्षण के लिए तैयार हैं। उन्हें आशा ही नहीं विश्वास है कि उनकी फाल्गुनी फुहारें संपादकीय टीम संस्कृति संरक्षण के लिए हमेशा तत्पर रहेगी।

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