‘डॉन’ के निर्देशक चंद्रा बारोट का 86 साल की उम्र में निधन, अमिताभ बच्चन को स्टार बनाने वाले इस फिल्मकार ने हिंदी सिनेमा को दी थी एक कल्ट फिल्म

हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्मों में शामिल ‘डॉन’ के निर्देशक चंद्रा बारोट का रविवार को मुंबई में निधन हो गया। 86 वर्षीय इस दिग्गज फिल्मकार…

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हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्मों में शामिल ‘डॉन’ के निर्देशक चंद्रा बारोट का रविवार को मुंबई में निधन हो गया। 86 वर्षीय इस दिग्गज फिल्मकार ने बांद्रा स्थित गुरु नानक अस्पताल में आखिरी सांस ली। चंद्रा बारोट बीते सात सालों से पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक फेफड़ों की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उनकी पत्नी दीपा बारोट ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए बताया कि वे लंबे समय से बीमार थे और पिछले कुछ महीनों से अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। इससे पहले वे मुंबई के जसलोक अस्पताल में भी भर्ती रह चुके थे।

चंद्रा बारोट के निधन की खबर सामने आते ही फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई। फिल्म निर्माता-निर्देशक फरहान अख्तर, जिन्होंने ‘डॉन’ को साल 2006 में नए अंदाज़ में पर्दे पर उतारा और उसे एक सफल फ्रेंचाइज़ी में बदल दिया, उन्होंने भी बारोट के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। फरहान ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “यह जानकर बहुत दुख हुआ कि ओरिजिनल डॉन के डायरेक्टर अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति मेरी संवेदनाएं।” फरहान के इस संदेश से साफ है कि चंद्रा बारोट सिर्फ एक निर्देशक नहीं, बल्कि एक प्रेरणा थे, जिन्होंने सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी।

1978 में रिलीज हुई ‘डॉन’ न सिर्फ अमिताभ बच्चन के करियर का टर्निंग पॉइंट बनी, बल्कि उस दौर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक साबित हुई। फिल्म की शुरुआत में दर्शकों से इसे खास प्रतिक्रिया नहीं मिली थी, लेकिन जैसे-जैसे इसका प्रचार बढ़ा और मुंहजबानी तारीफें हुईं, वैसे-वैसे फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए रिकॉर्ड बना दिए। आज भी ‘डॉन’ के संवाद और संगीत लोगों की जुबान पर हैं। “डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है…” जैसे डायलॉग भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो चुके हैं। इस फिल्म ने न सिर्फ अमिताभ बच्चन को एक नया सुपरस्टार बनाया, बल्कि खुद चंद्रा बारोट को भी एक ऐसे निर्देशक के रूप में स्थापित किया, जिसकी सोच समय से कहीं आगे थी।

कम ही लोग जानते हैं कि चंद्रा बारोट ने फिल्म निर्देशन की शुरुआत बतौर सहायक निर्देशक की थी। उन्होंने अपने शुरुआती करियर में दिग्गज अभिनेता और फिल्म निर्माता मनोज कुमार के साथ काम किया। ‘पूरब और पश्चिम’, ‘शोर’ और ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में उन्होंने मनोज कुमार के सहायक के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। चंद्रा बारोट हमेशा कहा करते थे कि मनोज कुमार ही उनके गुरु हैं और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने ‘डॉन’ जैसी फिल्म को जन्म दिया। बताया जाता है कि ‘डॉन’ का विचार उन्हें ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के सेट पर ही आया था, जब उन्होंने एक अलग तरह की कहानी कहने की कल्पना की थी।

चंद्रा बारोट के निधन से फिल्म इंडस्ट्री ने एक ऐसा फिल्मकार खो दिया है, जिसने महज एक फिल्म के जरिए हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा दी। भले ही उन्होंने ज्यादा फिल्में नहीं बनाईं, लेकिन ‘डॉन’ जैसी एक कल्ट क्लासिक उन्हें हमेशा के लिए अमर कर गई। उनका योगदान केवल एक निर्देशक तक सीमित नहीं था, बल्कि वे उन गिने-चुने लोगों में शामिल थे जिन्होंने सिनेमा को लेकर अपनी सोच, अपने नजरिए और अपनी संवेदनाओं से दर्शकों को झकझोर दिया।

उनका जाना एक युग का अंत है। लेकिन ‘डॉन’ जैसी फिल्म के ज़रिए चंद्रा बारोट का नाम और काम भारतीय सिनेमा में हमेशा जीवित रहेगा। आज भी जब कोई डॉन का ज़िक्र करता है, तो उसके पीछे चंद्रा बारोट की वो सोच, मेहनत और विजन झलकता है, जिसने एक साधारण कहानी को असाधारण बना दिया। भारतीय फिल्म इतिहास में उनका योगदान अमिट रहेगा।