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दिल्ली में विभिन्न संगठनों ने दी डॉ शमशेर​ सिंह बिष्ट को श्रद्धांजलि

Newsdesk Uttranews
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दिल्ली। जनांदोलनों के पुरोधा डा शमशेर सिंह बिष्ट को 28 सितम्बर को दिल्ली में संसद के समीप प्रेस क्लब आफ इंडिया में पत्रकारों, राजनेताओं, समाजसेवियों, साहित्यकारों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिवंगत डॉ बिष्ट के सम्मान में दो मिनट का मौन रखते हुए उनके बताये रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। श्रद्धांजलि सभा मेें उपस्थित सभी लोगों ने डॉ शमशेर बिष्ट की तस्वीर पर पुष्प अर्पित करके अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

श्रद्धांजलि सभा में सम्मलित प्रमुख डा बिष्ट के संघर्षों के साथी सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्वा राज्य मन्त्री वह वरिष्ठ कांग्रेसी नेता धीरेन्द्र प्रताप,आन्दोलनकारी देव सिहं रावत, आप नेता बचन सिंह धनोला, माले नेता पुरूषोतम शर्मा व गिरजा पाठक, प्रो .प्रकाश उपाध्याय, पत्रकार श्याम सिंह रावत, हबीब अख्तर व उमाकांत लखेडा, सुनील नेगी, चंदन डांगी, एमएमसी शर्मा, भाजपा नेता एस के शर्मा, पत्रकार सीएम पपने, महेश चंद्रा शर्मा, बीएन शर्मा, बचन सिंह धनोला,चारू तिवारी, उक्रांद नेता प्रताप शाही आदि ने अपनी शब्दांजलि अर्पित कर डा शमशेर सिंह बिष्ट को उतराखण्ड, देश व पूरी मानवता के लिए समर्पित पुरोधा बताया।

4 फरवरी 1947 को जन्में डा शमशेर सिह का निधन 71 वर्ष की उम्र में 22 सितम्बर 2018 की तडके 4 बजे अपने अल्मोडा स्थित आवास में हुआ। डा शमशेर सिंह बिष्ट लम्बे समय से अस्वस्थ थे। दिवंगत बिष्ट का अंतिम संस्कार अल्मोड़ा विश्वनाथ घाट पर किया गया। उनकी चिता को मुखाग्नि बड़े पुत्र जयमित्र बिष्ट ने मुखाग्नि दी।

शोकाकुल परिवार में डॉ बिष्ट की पत्नी रेवती बिष्ट (केन्द्रीय विद्यालय रानीखेत से प्राधानाचार्य के पद से सेवा निवृत ), बडा बेटा जय मित्र व बहु इंदु बिष्ट तथा छोटा बेटा अजय मित्र व बहू अदिति बिष्ट के अलावा डा बिष्ट की छोटी बहिन माधवी देवी सहित अन्य परिजन हैं।

धीरेन्द्र प्रताप ने कहा शमशेर सिंह बिष्ट जनसरोकारों के लिए अग्रणी जनयोद्धा होने के साथ वरिष्ठ पत्रकार भी रहे। उतराखण्ड में नशा नहीं रोजगार दो, वन बचाओ, गढवाल व कुमाऊं विश्व विद्यालय, उतराखण्ड आंदोलन,, आजादी की तीसरी लडाई सहित अनके आंदोलनों के प्रणेता रहे। उनके नेतृत्व में उतराखण्ड जन संघर्ष वाहिनी ने उतराखण्ड के जनांदोलनों को नई दिशा देने के साथ अनैक प्रबुद्ध जनों को जनांदोलनों से जोडा।
1972 में डा बिष्ट ने अल्मोडा में पानी की समस्या के लिए आंदोलन की जो अलख जगाई थी उसके बाद वे पूरी उम्र आंदोलनों में ही पूरी तरह समर्पित रहे। नशा नहीं रोजगार दो, गढवाल व कुमायू विवि गठन आंदोलन, जंगल, भू व शराब माफियाओं के खिलाफ वे ताउम्र संघर्ष करते रहे।

1974 में डा सुन्दर लाल बहुगुणा के सुझाव पर गढवाल व कुमायूं मण्डलों के क्षेत्रों में व्यापक जनजागृति व एकजूटता के लिए उन्होने व प्रो. शेखर पाठक ने कुमायूं मण्डल तथा कुंवर प्रसून व प्रताप शिखर ने गढवाल मण्डल का नेतृत्व करते हुए असकोट से आराकोट तक की 800 किमी लम्बी पदयात्रा 45 दिन में पूरी की । इस यात्रा को डा बिष्ट अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ मानते हैं। 1972 में अल्मोडा महाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे डा बिष्ट गढवाल व कुमाऊं विश्वविद्यालय बनाये जाने के आंदोलन में सक्रिय रहे।

1974 में डा बिष्ट ने अर्थशास्त्र से पीएचडी करने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्र के रूप में 6 माह तक अध्ययन किया और उसके बाद पीएचडी की उपाधि कुमायूं विवि से पूरी की। डा बिष्ट ने 1974 से 1978 तक व्यापक रूप से चले वन आंदोलन का नेतृत्व किया।  1978 में उन्होने गोपेश्वर में उतराखण्ड जनसंघर्ष वाहिनी का गठन किया।
जनांदोलनों के ही दौरान वे अपने कुछ साथियों के साथ 26 मार्च 1984 से 3 मई 1984 यानी 38 दिन के लिए अल्मोडा जेल में भी बंद रहे।

1984 में ही वे देश के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्र जनसत्ता के स्थानीय पत्रकार बन कर जनांदोलनों को नयी धार देने लगे। 1983 में उन्होने टिहरी बांध के विरोध में चले आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1991 में अल्मोडा-पिथोरागढ संसदीय सीट से जद प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरे थे। 1993 से उतराखण्ड राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे।

डा शमशेर सिंह बिष्ट केवल उतराखण्ड के जनांदोलनों तक सीमित नहीं थे। वे पूरे देश के जनांदोलनों से जुडे थे। वे स्वामी अग्निवेश व मेघा पाटेकर के करीबी साथी रहे उनके साथ देशभर में जनांदोलनों में जुडे रहते थे। वे जहां दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय के साथ देशभर में आजादी की तीसरी लडाई का देशव्यापी संघर्ष करके एक नया विकल्प बनाने के लिए वर्षों तक समर्पित रहे।

वे जातिवाद, क्षेत्रवाद, धार्मिक कटरपंथ के विरोधी होने के साथ भ्रष्टाचार के भी प्रबल विरोधी रहे और इसके खिलाफ व्यापक जनांदोलन चलाते रहे। वे लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप से नाखुश थे। डा बिष्ट, हमेशा गरीब, उपेक्षित, मजदूर, मेहनतकश लोगों की आवाज रहे और भ्रष्टाचारियों, शराब, जल जंगल व भू माफियाओं के खिलाफ ताउम्र संघर्ष करने के साथ उनसे दूरी बनाये रखते थे। उतराखण्ड में तीन चार दशक पहले उनके नेतृत्व में चले जनसरोकारों के आंदोलनों की ऐसी गूंज थी कि हर जागरूक छात्र -छात्रायें व सामजसेवी उनके आंदोलनों में जुड कर खुद को शौभागयशाली समझता था। जीवन के अंतिम समय भी डा बिष्ट भले अस्वस्थता के कारण सडक पर उतर कर संघर्ष करने में खुद को असमर्थ रहे परन्तु वे मन से इस बात से बेहद व्यथित थे कि उतराखण्ड में शराब व राजधानी गैरसैंण न बनाये जाने से बर्बाद हो रहा है।

कार्यक्रम को सफल बनाने वालों में एम एमसी शर्मा, कुशाल जीना, अनिल पंत, महेन्द्र रावत, मोहन जोशी आदि प्रमुख थे। श्रृद्धांजलि अर्पित करने वालों में देश के प्रख्यात साहित्यकार मंगलेश डबराल, वरिष्ठ पत्रकार बाबा विजयेन्द्र, राजेन्द्र रतूडी, कांग्रेसी नेता राजेश्वर पैेनूली व नंदन रावत, खुशहाल सिंह बिष्ट डा एस एन बसलियाल, उक्रांद नेता कुंदन सिंह बिष्ट,यू एस नेगी, कांग्रेसी नेता ईश्वर रावत, जे पी थपलियाल, महेश प्रकाश, राजा खुगशाल, डा के एस रावत, साहित्यकार पूरन चंद्र काण्डपाल, विनोद चंदोला, महावीर सिंह पुष्पा डांगी, खेमराज कोठारी, हनीफ मोहम्मद, पत्रकार बसंत पाण्डे व हरीश लखेडा, कैलाश धूलिया, ग्यान भद्रे, किशोर रावत, नीरज बवाडी शिशिभूषण खण्डूडी, विनोद ढोंडियाल, सुरेन्द्र सिंह नेगी, देवसिंह फोनिया, अमरचंद, पत्रकार प्रदीप बेदवाल, अनु पंत, भगत सिंह नेगी, नीरज जोशी महेन्द्र वोरा, अमित कुन्द्रा, उमेश चंद पंत, वी पी भट्ट, पुरूषोतम चैनियाल, राकेश धस्माना, एस एस नेगी, प्रताप थलवाल, कांग्रेसी नेता रामेश्वर गोस्वामी, शिव प्रसाद जोशी, फिल्म निर्माता मनोज चंदोला, मेजर एस के ठाकुर , सहित अनैक प्रमुख आंदोलनकारी सम्मलित थे।श्रद्धांजलि सभा का संचालन अवतार नेगी व अध्यक्षता डा शमशेर सिंह बिष्ट को अपना आदर्श मानने वाले राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा ने की।