पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए गए इस्तीफे ने सियासी हलकों में हलचल पैदा कर दी है। हालांकि उन्होंने अपने फैसले के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन जिस तरह से घटनाक्रम तेजी से बदला और इस्तीफे की टाइमिंग सरकार और विपक्ष के बीच टकराव के दौर में आई, उससे कई सवाल उठने लगे हैं।
जानकारी के मुताबिक, धनखड़ के इस्तीफे से ठीक पहले राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष की ओर से लाया गया महाभियोग प्रस्ताव एक अहम मोड़ बनकर सामने आया। बताया जा रहा है कि जैसे ही धनखड़ ने इस प्रस्ताव को नियमों के तहत स्वीकार किया, वैसे ही दो बड़े केंद्रीय मंत्रियों—स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू—ने उनसे बातचीत की।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रिजिजू ने स्पष्ट रूप से धनखड़ को बताया कि यह मामला लोकसभा के जरिए हल किया जाना चाहिए था। इसके साथ ही संकेत भी दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस घटनाक्रम से नाराज़ हैं। धनखड़ ने जवाब में सिर्फ यही कहा कि वह राज्यसभा अध्यक्ष के नाते संसदीय नियमों के दायरे में रहते हुए ही काम कर रहे हैं।
यह बातचीत उस दिन हुई जब राज्यसभा में विपक्ष ने हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था। इस प्रस्ताव पर 63 सांसदों के हस्ताक्षर थे और इसे लेकर विपक्ष काफी आक्रामक था। बताया जा रहा है कि राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की पहली बैठक 12 बजकर 30 मिनट पर हुई, जिसके बाद माहौल बदलने लगा। दूसरी बैठक शाम 4 बजकर 30 मिनट पर हुई, लेकिन इसमें कुछ नेता शामिल ही नहीं हुए।
इस पूरे घटनाक्रम से सरकार को झटका लगा, क्योंकि वह चाहती थी कि अगर महाभियोग की प्रक्रिया हो भी तो वह लोकसभा से शुरू हो। लेकिन धनखड़ ने प्रस्ताव को राज्यसभा में स्वीकार करते हुए नियमों की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी। यहीं से मतभेद और तनाव की नींव पड़ी, जो अंततः उनके इस्तीफे की वजह बन गई।
सरकारी तौर पर भले ही कारण स्वास्थ्य बताया गया हो, लेकिन विपक्ष इसे दबाव में लिया गया फैसला बता रहा है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस पूरे घटनाक्रम पर कोई स्पष्ट बयान देती है या सब कुछ समय के साथ दबा दिया जाएगा। फिलहाल तो सवाल यही उठ रहा है कि क्या एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति सिर्फ नियमों के पालन की वजह से अपने पद से हटने को मजबूर हुआ?
