लेकिन इस घटना ने सरकारी तंत्र की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां प्रशासन इसे मामूली टाइपिंग मिस्टेक बताकर मामले को रफा-दफा करने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे गरीबों के साथ मज़ाक करार दे रहा है।
आय प्रमाण पत्र जैसे गंभीर दस्तावेज़ में इस तरह की गलती ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या ऐसे कागज़ों के भरोसे सरकारी योजनाओं का लाभ वंचितों तक पहुंच पाता होगा? किसान रामस्वरूप के मामले ने यह भी उजागर किया है कि सिस्टम की एक छोटी सी चूक, एक आम आदमी की पूरी गरिमा पर सवाल उठा सकती है।
अब भले ही किसान को नया प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया हो, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हुई उस पुरानी प्रति ने सरकार, प्रशासन और ज़मीनी तंत्र की लापरवाही को सबके सामने ला दिया है। जनता अब यही पूछ रही है—अगर यह मामला सामने न आता, तो क्या किसान रामस्वरूप की पहचान एक ‘तीन रुपये सालाना कमाई’ वाले व्यक्ति के रूप में ही दर्ज रह जाती?
