पहलगाम नरसंहार का गुनहगार निकला आदिल, पढ़ाई के नाम पर पाकिस्तान जाकर बना खूंखार आतंकी,काश्मीर में बहाया खून

पहलगाम में हुए हमले के बाद सेना ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े 14 स्थानीय आतंकियों की पहचान कर ली है। ये वह लोग हैं…

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पहलगाम में हुए हमले के बाद सेना ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े 14 स्थानीय आतंकियों की पहचान कर ली है। ये वह लोग हैं जो बाहर से आए आतंकियों को पनाह देते हैं, उन्हें बचाते हैं, ताकि मासूमों को मौत के घाट उतारा जा सकें। पुलवामा, कुलगाम, शोपियां और अनंतनाग में अब तक सात आतंकियों के घर जमींदोज कर दिए गए हैं। अब सरकार ने ठान चुकी है कि जो भी भारत की मिट्टी से गद्दारी करेगा, उसका नाम-ओ-निशान मिटा दिया जाएगा, उसको मिट्टी में ही मिला दिया जाएगा।

बैसरन के खूबसूरत मैदान में 22 अप्रैल को जो खूनखराबा हुआ, उसने पूरे देश को दहला दिया। इस हमले के बाद सुरक्षाबलों ने 175 संदिग्धों को पकड़ा और धीरे-धीरे साजिश की परतें खुलने लगीं। पता चला कि इस नृशंस हमले का मास्टरमाइंड आदिल अहमद थोकर था, जो अनंतनाग के गुर्रे गांव का रहने वाला है।

यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। आदिल साल 2018 में पढ़ाई के बहाने स्टूडेंट वीजा पर पाकिस्तान गया था। लेकिन वहां पहुंचकर उसने कलम छोड़कर बंदूक थाम ली। उसने लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होकर हथियार चलाने और नफरत फैलाने की ट्रेनिंग ली। अपने गांव से जाते वक्त भी उसके विचारों में ज़हर भर चुका था। पाकिस्तान में उसने अपना अतीत भुला दिया। परिवार को छोड़ दिया। भारत से नाता तोड़ दिया। सुरक्षा एजेंसियां भी उसकी तलाश में खाली हाथ रहीं।

सात साल बाद जब आदिल वापस आया, तो वह वही लड़का नहीं था जिसे गांव वालों ने स्कूल जाते देखा था। अब वह एक खूंखार आतंकी बन चुका था। 22 अप्रैल को उसने अपने साथियों के साथ मिलकर पहलगाम के बैसरन मैदान को गोलियों से छलनी कर दिया। 26 मासूम जिंदगियों को बेरहमी से खत्म कर दिया और कई परिवारों को कभी न भरने वाला जख्म दे गया।

अब आदिल अहमद थोकर, हाशिम मूसा उर्फ सुलेमान और अली भाई उर्फ तल्हा भाई जैसे नाम घाटी में आतंक का दूसरा नाम बन चुके हैं। इनकी तलाश तेज कर दी गई है और सरकार ने इन पर बीस लाख रुपये का इनाम भी रखा है।

सेना ने एक बार फिर कसम खाई है कि घाटी के हर कोने से आतंक की परछाइयों को खत्म कर वहां फिर से शांति और उम्मीद की रौशनी लौटाई जाएगी। इस बार लड़ाई सिर्फ बंदूक से नहीं, जिद से लड़ी जा रही है — कि कश्मीर फिर मुस्कुराएगा।