Poem yuwa kavi lalit yogi

अल्मोड़ा, 25 अक्टूबर 2020-
कविता- रावण , कलयुगी रावणों से कहता
‘ इधर उधर सब खून बहा है
कहां से जाऊं रे!
घर-घर रावण भरे पड़े हैं
किसे जलाऊँ रे!
कभी नाचते!
कभी दबोचते
और कभी सताते हैं
मैं सीता सी ठिठुर रही हूं
अश्रु कहां छुपाऊं रे!
रावण है!
रावण को जलाते
दंभी हैं! घुत्ति दिखलाते
पापी हैं!रावण को जिलाते!
और जोर-जोर से हैं गलियाते
रावण भी अब रावणों से कहता-
कैसे जल जाऊं रे!
घर-घर रावण भरे पड़े हैं
किसे जलाऊं रे!
डॉ. ललित योगी
(कवि शिक्षण से जुड़े हैं)
