बदहाल शिक्षा व्यवस्था बनी पलायन की वजहटूटी दीवारें, लीक करती छत, ऐसे स्कूलों में कैसे बनेगा बच्चों का भविष्य?

ताड़ी खेत क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय कारचूली, ख्यूशालकोट सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति देखकर कोई भी दंग रह जाएगा। यहां की टूटी दीवारों, जर्जर…

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ताड़ी खेत क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय कारचूली, ख्यूशालकोट सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति देखकर कोई भी दंग रह जाएगा। यहां की टूटी दीवारों, जर्जर कक्षाएं, बैठने की कोई व्यवस्था नहीं, ऐसे हालातो में बच्चों के भविष्य की क्या ही कामना की जा सकती है?


रानीखेत के ताड़ीखेत क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय की स्थिति काफी बदहाल देखी गई। अब यह सवाल उठा रहा है कि जब गांव के स्कूल ही इस अवस्था में है तो पहाड़ों से हो रहा पलायन आखिर कैसे रुकेगा ?


अल्मोड़ा जिले में 1196 प्राथमिक विद्यालय हैं जिनमें अधिकांश में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। कई स्कूलों में शौचालय, पानी की व्यवस्था ठीक नहीं है। बारिश के दिनों में कमरे पानी टपकने से उपयोग में ही नहीं आ पाते। कारचूली, ख्यूशालकोट जैसे कई विद्यालयों में छात्र संख्या घटने की सबसे बड़ी वजह यही बदहाली है।

गांव में बस्तियां खाली हो रही है जो इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा की काफी कमी है अभिभावक शहरों की ओर जा रहे हैं जिससे बच्चों का भविष्य बन सके। सरकारी दावों के बावजूद ग्रामीण शिक्षा की जमीन पर तस्वीर बेहद निराशाजनक है।

पहाड़ों में पलायन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा ना होना है। यदि प्राथमिक शिक्षा को मजबूत नहीं किया गया तो गांव खाली हो जाएंगे और पहाड़ भी उजाड़ हो जाएंगे।


कारचूली जैसे विद्यालयों की बदहाली इस बड़ी समस्या का सिर्फ एक उदाहरण है। ग्रामीणों का मानना है कि जब तक शिक्षकों की नियुक्ति, आधारभूत ढांचे और शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीरता से काम नहीं होगा, तब तक पलायन थमने की उम्मीद करना मुश्किल है।


ग्रामीण क्षेत्रों में एकल शिक्षा की तैनाती के चलते शिक्षक किसी भी कक्षा पर ध्यान नहीं दे पाए हर कक्षा का स्तर अलग है। उनके सीखने की क्षमता भी अलग है और उनकी आवश्यकता भी अलग होती है। ऐसे में एक ही शिक्षक सभी कक्षाओं को एक साथ संभाल रहा है तो स्वाभाविक रूप से बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पा रही है।


जिले के कई स्कूलों में तो स्थिति और भी गंभीर है। शिक्षक को विभागीय बैठकों में जाना हो या किसी कारणवश वह स्कूल से अनुपस्थित हो तब बच्चों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था मौजूद नहीं रहती। परिणामस्वरूप पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है। लगातार इस तरह की बाधाएं अभिभावकों को यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि बच्चों का भविष्य गांवों में सुरक्षित नहीं है।


शिक्षा अधिकारी ताड़ीखेत हरेंद्र साह, खंड का कहना है कि विद्यालयों के सुधार कार्यों की सूचना उच्चाधिकारियों को भेजी गई है। साथ ही समय-समय पर रिक्त पदों की जानकारी भी विभाग को भेजी जाती है ताकि नियुक्तियों की प्रक्रिया समय पर आगे बढ़ सके।


त्रिलोक महरा, पलायन अल्मोड़ा, गांव ख्यूशाल का कहना है स्कूल की हालत इतनी खराब थी कि बच्चे क्लास में बैठने से घबराते थे। टीन की छत उखड़ी हुई, फर्श टूटा हुआ और दीवारों में दरारें हैं। यह देखकर बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया और आखिरकार शहर का रुख किया।

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