देहरादून। उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लागू हुए करीब दस महीने बीत चुके हैं, लेकिन लोगों के बीच दुविधा और घबराहट कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है। इसी को लेकर रविवार को देहरादून में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की तरफ से एक सेमिनार हुआ, जिसमें वक्ताओं ने साफ कहा कि यह कानून जनजीवन को आसान करने की बजाय और उलझा रहा है।
सेमिनार में हिस्सा लेने वालों का कहना था कि आम लोग अब यह समझ नहीं पा रहे कि उनकी शादी, बच्चों से जुड़े दस्तावेज, संपत्ति का अधिकार या पारिवारिक मामले किस फाइल में और कैसे साबित किए जाएं। कागजों की उठा-पटक ने लोगों की नींद उड़ा दी है।
“दस्तावेज पूरे नहीं हुए तो अवैध ठहरा देंगे?” सवालों से घिरा जनमानस
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि नगरपालिकाओं की गाड़ियां रोज स्पीकर पर घोषणाएं कर रही हैं और मीडिया के जरिए भी लोगों में डर फैलाया जा रहा है। कई लोग इस चिंता में जी रहे हैं कि अगर कोई कागज कम निकल गया तो कहीं उन्हें ही गैरकानूनी न ठहरा दिया जाए। इसी डर की वजह से रिश्ते भी शक-संदेह के शिकार होने लगे हैं। लोग ही एक-दूसरे पर सवाल उठाने और शिकायतें करने लगे हैं। वक्ताओं ने कहा, “समाज में भरोसा टूट रहा है, आखिर किस दिशा में ले जाया जा रहा है आम नागरिक को?”
“एक देश-एक कानून… लेकिन सबके लिए बराबरी कहां?”
सेमिनार में यह भी कहा गया कि धामी सरकार “एक देश, एक कानून” का नारा देकर यूसीसी को लागू तो कर चुकी है, लेकिन कई समुदायों की परंपराएं समाप्त होने की कगार पर हैं। विवाह से लेकर तलाक, बच्चों की देखरेख और संपत्ति के अधिकार तक…सब कुछ अब सरकारी कागजों के मुताबिक होगा।वक्ताओं का दावा था कि यूसीसी का असर सबसे अधिक महिलाओं पर पड़ेगा। अभी तक जो कुछ अधिकार उन्हें कानून ने सौंपे थे, वह भी छिनने का खतरा है।
सेमिनार में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तन कामी छात्र संगठन, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, भेल ट्रैड यूनियन, उत्तराखंड महिला मंच, परिवर्तन पार्टी, गर्गी महिला टीम, उत्तराखंड मजदूर संगठन, देवभूमि श्रमिक संगठन, चेतना आंदोलन, जमाहिते-उल-हिंद और प्रोग्रेसिव मेडिकोज फोरम जैसे संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
