मारुति सुजुकी ने अपनी पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी ई विटारा तैयार कर ली है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में बने मारुति के प्लांट से इस गाड़ी को लॉन्च के लिए हरी झंडी दी। माना जा रहा है कि कंपनी सितंबर में इसे भारतीय बाजार में उतार सकती है लेकिन फिलहाल यह मॉडल विदेशों में भेजा जाएगा।
ई विटारा खास इसलिए है क्योंकि यह मारुति की पहली पूरी तरह इलेक्ट्रिक कार है। अभी तक भारत के इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों का दबदबा रहा है लेकिन अब मारुति ने भी इसमें एंट्री कर दी है।
न्यूयॉर्क बेस्ड रिसर्च फर्म रोडियम ग्रुप की रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक भारत की इलेक्ट्रिक कार बनाने की क्षमता पच्चीस लाख यूनिट सालाना तक पहुंच सकती है। यह मौजूदा क्षमता से करीब दस गुना ज्यादा होगी। अगर यह अनुमान सही साबित हुआ तो भारत चीन यूरोप और अमेरिका के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक कार निर्माता बन जाएगा। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में टिके रहने के लिए प्रोडक्शन की लागत घटानी होगी ताकि चीन जैसे बड़े देशों से मुकाबला कर सके।
रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत में इलेक्ट्रिक कारों की डिमांड चार लाख से चौदह लाख के बीच रहेगी जबकि उत्पादन पच्चीस लाख तक पहुंच सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि जितनी गाड़ियों की जरूरत होगी उससे कहीं ज्यादा कारें तैयार होंगी और उनका बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट के लिए जाएगा। लेकिन ऐसा तभी संभव होगा जब हमारी कंपनियां अपनी लागत को कम करें और तकनीक के मामले में मजबूत बनें।
सरकार का मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड वाला प्लान अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों में भी दिखने लगा है। टाटा मोटर्स महिंद्रा और एमजी जैसी कंपनियां अभी घरेलू बाजार का करीब नब्बे प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखती हैं। लेकिन दुनिया के बाजार में टिकने के लिए सिर्फ कारें बनाना काफी नहीं है। कीमत और क्वालिटी के मामले में भी हमें आगे रहना होगा। चीन बहुत सस्ती और बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक कारें बना रहा है और यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। भारत की कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने और लागत घटाने के नए तरीके अपनाने होंगे तभी वे मुकाबले में टिक पाएंगी।
भारत 2030 तक इलेक्ट्रिक कार उत्पादन में जापान और दक्षिण कोरिया को पीछे छोड़ सकता है। फिलहाल जापान की क्षमता ग्यारह लाख यूनिट और दक्षिण कोरिया की पांच लाख यूनिट है। भारत इस समय दो लाख यूनिट बना रहा है लेकिन कई नए प्रोजेक्ट्स शुरू हो रहे हैं जिनके बाद क्षमता तेजी से बढ़ेगी।
बैटरी निर्माण में भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। अनुमान है कि 2030 तक बैटरी सेल बनाने की क्षमता पांच सौ सड़सठ गीगावॉट ऑवर तक हो जाएगी। यह आंकड़ा चीन अमेरिका और यूरोप के बाद चौथे नंबर पर होगा। हालांकि रिपोर्ट ने यह भी कहा है कि भारत की ग्रोथ ज्यादातर उन प्रोजेक्ट्स पर निर्भर है जो अभी निर्माणाधीन हैं।
दूसरी ओर ईवी खरीदने के मामले में भारत अभी पीछे है। वियतनाम में दो साल में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री तीन प्रतिशत से बढ़कर सत्रह प्रतिशत हो गई जबकि भारत में 2024 तक यह आंकड़ा केवल दो प्रतिशत रहा। इसका मतलब है कि बाजार बड़ा है लेकिन लोगों का भरोसा जीतना अभी बाकी है। इसके लिए सरकार की नीतियों में स्थिरता जरूरी है। कीमतें कम होनी चाहिए और चार्जिंग जैसी सुविधाएं आसान होनी चाहिए। तभी लोग बड़ी संख्या में इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीद पाएंगे और भारत की ईवी इंडस्ट्री सच में आगे बढ़ सकेगी।
