मौसम और रास्तों की मार से वक्त से पहले थमी अमरनाथ यात्रा, चार लाख श्रद्धालु कर चुके थे दर्शन

अमरनाथ यात्रा इस बार अपने तय समय से पहले ही खत्म कर दी गई है। रविवार को यात्रा को अचानक रोकने का फैसला लिया गया।…

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अमरनाथ यात्रा इस बार अपने तय समय से पहले ही खत्म कर दी गई है। रविवार को यात्रा को अचानक रोकने का फैसला लिया गया। जबकि ये यात्रा नौ अगस्त को रक्षाबंधन के दिन पूरी होनी थी। अब हफ्ते भर पहले ही इसे बंद करना पड़ा है। वजह है लगातार बिगड़ता मौसम और रास्तों की हालत खराब होना।

तीन दिन पहले भी भारी बारिश के चलते यात्रा को अस्थायी रूप से रोका गया था। अब हालात और खराब हो गए हैं। पहलगाम और बालटाल दोनों तरफ के रास्ते काफी जर्जर हो गए हैं। अधिकारियों ने कहा कि इन रास्तों की फौरन मरम्मत की जरूरत है और इस स्थिति में यात्रियों को आगे बढ़ाना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए शनिवार को फैसला लिया गया कि यात्रा अब आगे नहीं बढ़ाई जाएगी।

कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर विजय कुमार बिधूड़ी ने बताया कि हाल की बारिश ने पूरे इलाके को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। कई जगह रास्ते टूट गए हैं। ऐसे में सुरक्षा को देखते हुए ये जरूरी था कि यात्रा को रोका जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक मरम्मत का काम पूरा नहीं होता तब तक यात्रा दोबारा शुरू नहीं की जा सकती। दूसरी तरफ श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक इस बार अब तक करीब चार लाख श्रद्धालु गुफा के दर्शन कर चुके हैं।

हालांकि बीते हफ्ते से श्रद्धालुओं की संख्या में अचानक गिरावट आई है। इसकी बड़ी वजह खराब मौसम को बताया जा रहा है। वहीं सुरक्षा को लेकर इस बार सरकार ने कड़े इंतजाम किए थे। खासतौर पर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा में और ज्यादा बढ़ोतरी की गई। इस बार छह सौ से ज्यादा अतिरिक्त कंपनियां तैनात की गईं जिससे ये तीर्थस्थल देश के सबसे ज्यादा सुरक्षित धार्मिक स्थलों में गिनती में आने लगा। यात्रियों को जम्मू से पहलगाम और बालटाल के बेस कैंप तक भारी सुरक्षा घेरे में ले जाया गया। इसके अलावा श्रीनगर से जम्मू तक जाने वाले हाइवे पर आम लोगों की आवाजाही रोक दी गई थी।

अमरनाथ यात्रा का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत एक मुस्लिम चरवाहे बोटा मलिक द्वारा गुफा की खोज से हुई थी। 2005 से पहले तक यात्रा की व्यवस्था मलिक परिवार ही संभालता था। बाद में ये जिम्मेदारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दे दी गई। हालांकि बीते कुछ सालों में स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों के बीच का रिश्ता कमजोर पड़ा है। अब सिर्फ वही लोग संपर्क में रहते हैं जो यात्रा से सीधे तौर पर जुड़े हैं जैसे घोड़ा चलाने वाले और पालकी उठाने वाले। बाकी लोग यात्रियों से दूर ही रहते हैं क्योंकि पूरी यात्रा कड़े सुरक्षा घेरे में चलती है।