बागेश्वर में ‘सांड-से-सुरक्षा बीमा योजना’ की‌ जरूरत

सांड ओलंपिक 2025 उर्फ नरक पालिका के बॉडीबिल्डर सांड वरिष्ठ पत्रकार केशव भट्ट के फेसबुक पोस्ट से साभारबागेश्वर नगर अब सिर्फ मंदिरों और नदियों का…

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सांड ओलंपिक 2025 उर्फ नरक पालिका के बॉडीबिल्डर सांड

वरिष्ठ पत्रकार केशव भट्ट के फेसबुक पोस्ट से साभार
बागेश्वर नगर अब सिर्फ मंदिरों और नदियों का नगर नहीं रहा, यह अब ‘सांड ओलंपिक’ का भी स्थायी आयोजन स्थल बनने लगा है. यहां के हर मुख्य सड़क के बीचो-बीच रोज अघोषित वक्त में सांडों के मुकाबले होते रहते हैं, जिनमें कोई टिकट नहीं लगता, बस हिम्मत चाहिए, वो भी दोपहिया, पैदल चलने वालों के साथ ही दुकान स्वामियों की.
भराड़ी जीप स्टैंड, विकास भवन पुल, तहसील रोड, नुमाईश मैदान हो या सरयू घाट, हर जगह सांडों ने अपनी कॉलोनी बसा ली है. ऐसा लगता है जैसे नरक पालिका ने इनके लिए बाकायदा आवासीय योजना, ‘प्रधानमंत्री आवारा पशु निवास योजना’ के अंतर्गत इन्हें आवंटित कर दिया हो।
राहगीरों की हालत कुछ यूं है कि अब सड़क पार करना वैसा ही है जैसे महाभारत का युद्धक्षेत्र पार करना. हर मोड़ पर डर लगा रहता है कि कहीं कोई गुस्सैल गोवंश अचानक डब्लू डब्लू एफ स्टाइल में टक्कर न दे दे।
वाहन चालकों ने तो नया ट्रेंड शुरू कर दिया है, अब गाड़ी चलाने से पहले हॉर्न नहीं, ‘नमो नमो बोलना पड़ता है. क्योंकि कभी-कभी सांड डिप्रेशन में होते हैं और आपके स्कूटी की चुप्पी उन्हें आहत कर देती है.
नरकपालिका के बयान भी कम दिलचस्प नहीं हैं. नाम छापने की शर्त पर एक ने बताया कि, वो प्रयास कर रहे हैं कि सांडों की सांडों को मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की जाए, उन्हें भावनात्मक सहारा दिया जाए।
वहीं एक और साहेबान का कहना है कि, हम नरक पालिका वाले इन पर अंकुश लगाएंगे, जैसे ही हमें पता लगे कि किस पार्टी से ये सांड खड़े हैं और किस पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.
स्थानीय जनता भी अब दो भागों में बंट चुकी है, एक पक्ष नमो नमो का जाप करते हुए कहता है कि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. दूसरा पक्ष कहता है कि ये हमारी हड्डियों का हिस्सा तोड़ते आए हैं. ये हड्डी तोड़ संस्कृति का प्रतीक हैं.
कमीने टाइप के मित्र रूपी सूत्रों के अनुसार, जल्द ही नगर पालिका ‘सांड-से-सुरक्षा बीमा योजना’ लाने पर विचार कर रही है जिसमें जनता को हर भिड़ंत पर मुफ्त पट्टी, तीन दिन की सिक लीव और मूव पेन रिलीफ स्प्रे का वाउचर मिलेगा.
वैसे यदि आप कभी बागेश्वर आएं तो, तो लाठी, हेलमेट, और थोड़ा सा साहस अपने साथ लाना न भूलें. क्योंकि यहां गाड़ी नहीं, किस्मत चलती है.. और बीच सड़क पर सांडों का तांडव..!!
वरिष्ठ पत्रकार केशव भट्ट के फेसबुक पोस्ट से साभार—–