Almora:: जीआईसी शीतलाखेत का नाम हरिओम चंद व भुवनेश्वर पाठक के नाम पर किए जाने की मांग

अल्मोड़ा, 29 दिसंबर 2021- अल्मोडा जनपद के शीतलाखेत में वर्तमान जीआईसी के संस्थापक हरिओम चन्द्र और भुवनेश्वर पाठक के नाम पर किए जाने की मांग…

अल्मोड़ा, 29 दिसंबर 2021- अल्मोडा जनपद के शीतलाखेत में वर्तमान जीआईसी के संस्थापक हरिओम चन्द्र और भुवनेश्वर पाठक के नाम पर किए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। लोगों ने राज्य सरकार पर जनता की मांग को दरकिनार करने का आरोप लगाया है। कहा कि राइका शीतलाखेत का नाम उसके संस्थापक सदस्यों के नाम की बजाय सैनिक को समर्पित किया गया है जबकि सैनिक के नाम पर अन्य कई संस्थाओं को किया जा सकता है जबकि विद्यालय के लिए सब कुछ न्यौछावर करने वाले भुवनेश्वर पाठक व हरिओम चन्द्र के नाम का करने का केवल यही विकल्प है।

लोगों का कहना है कि राजकीय इण्टर कालेज शीतलाखेत से पीटीए व विद्यालय प्रबंधन समिति से दो बार प्रस्ताव पारित कर विभाग को प्रेषित कर दिया गया था कि विद्यालय का नाम इसके संस्थापक सदस्यों हरिओम चन्द व भुवनेश्वर पाठक के नाम पर किया जाय और जिला अधिकारी अल्मोड़ा द्वारा निर्देशित जनसुनवाई के दौरान 6 मार्च 2021 को भी समस्त क्षेत्रीय जनता व जनप्रतिनिधियों व विभिन्न ग्राम प्रधानों द्वारा भी यह लिखकर दिया गया था कि राइका का नाम इसके नींव से लेकर पूर्ण भवन निर्माण तक काम करने वाले, जनता को अशिक्षा व निर्धनता के दुष्चक्र से निकालने वाले , जनता के बीच शिक्षा का प्रचार करने वाले हरिओम चन्द व भुवनेश्वर पाठक के नाम पर हो तथा सैनिक के नाम पर अन्य संस्था का नाम किया जाय।

कौन थे भुवनेश्वर पाठक और हरिओम चन्द्र ?

हरिओम चंद व भुवनेश्वर पाठक द्वारा लगभग 40-50 ग्रामों व तल्ला तिखून मल्ला तिखून व कंडारखुवा पट्टी में शिक्षा का प्रचार प्रसार किया और घर घर जाकर बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित कर इलाके में शिक्षा के लिए विशाल भवन का निर्माण जनसहयोग से कराया।

इन दोनों को नौकरी के बेहतर अवसर भी प्राप्त हुए किन्तु अज्ञानता को मिटाने के लिए इनके द्वारा अपना सब कुछ विद्यालय के लिए न्यौछावर कर दिया आज भी इलाके में इनके पढ़ाये हुए छात्र है उनसे सब कुछ मालूम किया जा सकता है सन् 1960 के दशक में शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य करने वाले हरिओम चंद जी और भुवनेश्वर पाठक के लिए शासनादेश सं 496 दिनांक 20 जुलाई 2013 में बिन्दु सं 4 जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालो के लिए सम्मानित करने की व्यवस्था है के तहत राज्य सरकार से अनुरोध किया गया था लेकिन राज्य सरकार द्वारा इलाके की जनभावनाओं की अनदेखी की और समाज के लिए कार्य करने वाले पुरुषों को हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया है।
कहा कि क्षेत्रीय विधायक रेखा आर्या व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष वंशीधर भगत सहित सभी लोगो को भी अवगत करा दिया गया था लेकिन उसके बाद भी जनभावनाओं की अनदेखी की गई।

राज्य सरकार के फैसले से क्षेत्रीय जनता के साथ साथ उनके परिजन भी राज्य सरकार के इस निर्णय से असंतोष व्याप्त है किसी को सम्मानित करके किसी को अपमानित करने का प्रयास किया जाना भी नैतिक मूल्यों के विपरीत है यह भी राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को समझना होगा।

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परिजनों का कहना है कि हरिओम चन्द व भुवनेश्वर पाठक द्वारा श्रमिकों के साथ दिन और रात विद्यालय निर्माण के लिए परिश्रम किया गया था। जब राज्य सरकार के पास भी कोई संसाधन नहीं थे उस समय सैकड़ों लोगों को राहत दी गई थी ।राज्य सरकार ग्राम सूरी, गडस्यारी, धामस, नौला, सल्ला ,चंपा, बडगल भट्ट ऐंडू खरकिया बड़गल रौतेला मटीला ,ज्योली ,खूंट, रौनडाल, बंगसर, काकड़ीघाट, छिपडिया , स्याही देवी , भाखड़ देवलीखान , कपचून ,पतलना ,सिमोली ,भैसोली ओलियागांव , शीतलाखेत , सड़का ,हरडा़, नौगांव आदि गांवों सहित तल्ला तिखून मल्ला तिखून व कंडारखुवा पट्टी में जाकर इस बात को मालूम कर सकती है। उनके द्वारा विद्यालय के लिए क्या कार्य किए गए तथा नाम परिवर्तन के फैसले पर जनता की क्या राय है ।

कहा कि सैकड़ों घरों में शिक्षा का प्रचार प्रसार कर राज्य सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित करने के बजाय अपमानित किया गया इससे सभी में रोष व्याप्त है।
इधर धीरेन्द्र कुमार पाठक द्वारा अवगत कराया गया कि वर्ष 2016 से ही नाम परिवर्तन के लिए प्रयास किए किन्तु आज तक भी मानवीय संवेदनाओं को किसी ने नहीं सुना । दूसरों की कर्मभूमि पर किसी अन्य को सम्मानित करना लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत नहीं आता । आज भी सैकड़ों संस्थाओं का नाम किसी के नाम पर नहीं है उन संस्थाओं में उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए था।

हरिओम चंद के परिजन सुशील चंद व भुवनेश्वर पाठक के परिजन धीरेन्द्र कुमार पाठक, दिनेश पाठक भागीरथी पाठक द्वारा भी राज्य सरकार के इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त किया है उनका कहना है कि सैनिक को सम्मानित करने के लिए राज्य सरकार के पास हजारों विकल्प है जबकि हरिओम चंद व भुवनेश्वर पाठक के पास विद्यालय के अलावा कोई विकल्प नहीं है ।
उनका कहना है कि जब सैनिक के लिए हजारों विकल्प हैं ।ऐसा फैसले लेने से पहले जमीनी परीक्षण जरूरी था ।
कहा कि उनके परिजनों द्वारा स्वर्गीय हरिओम चंद व भुवनेश्वर पाठक के नाम से इसी विद्यालय का नाम भी परिवर्तन करने की मांग की है और भारत के गृह मंत्री व मुख्यमंत्री, क्षेत्रीय विधायक को भी पत्र प्रेषित किया गया है।